जब कोई ट्रेन
हवा से बातें करते हुए
पुल पार करती है
बहुत शोर करता है
पुल
शांत दिखती है
नदी।
आदमियों को
लोहे के घर में बैठ
बिना छुए
ऊपर ऊपर से
यूं जाते देख
दुख तो होता होगा नदी को?
क्या जाने
कितना रोई हो
जब बन रहा था
पुल!
किसी के
चन्द सिक्के फेंक देने से
खुश हो जाती होगी?
हमारे सिक्कों का
कर पाती प्रयोग
तो सबसे पहले
तोड़ देती
बांध
फिर तोड़ती पुल
और अंत में
अधिक क्रोध करती तो
बहा कर ले जाती
पूरा गांव।
.... देवेन्द्र पाण्डेय।
धन्यवाद.
ReplyDeleteनदी तो माँ है..माँ का क्रोध भी सार्थक होता है..
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