16.6.18

लोहे का घर-45

दून में भीड़ है आज। पुरुलिया जिले के यात्रियों के जत्थे के बीच बैठा हूं। इनकी भाषा बांग्ला है। ये हरिद्वार, बद्रीनाथ, गंगोत्री, जमुनोत्री की तीर्थ यात्रा के बाद वापस अपने घर जा रहे हैं। इनके ग्रुप में लगभग पचास यात्री हैं। वेशभूषा और खान पान से गरीब मध्यमवर्गीय दिखते हैं। धार्मिक तीर्थ यात्रा का मोह इनसे यात्राएं करवाती हैं। मेरे बगल और सामने के बर्थ में पुरुष और साइड लोअर बर्थ पर दो महिलाएं हैं। खिड़की के पास एक प्लास्टिक का बोतल रखा है जिसमें चने भीग कर फूल चुके हैं। एक स्टील का बड़ा सा कटोरा है जिसमें सत्तू घोल कर महिलाएं खा रही थीं। बड़े बोतल में पानी रखा है जो प्लेटफॉर्म की टोंटी से भर कर लाया गया है। मिनरल वाटर नहीं है। इनके पास बैठ कर थोड़ी ही देर में घुलमिल गया। ट्रेन की लेट लतीफी से दुखी नहीं लग रहे थे। कहने लगे वो पहाड़ की १३०० फिट गहरी खाई की तुलना में ये यात्रा बड़े सुकून वाली है। सही है.. इतनी कठिन यात्रा के बाद इन्हें रेल की यात्रा सुख पहुंचा रही है। बड़े श्रम के बाद छोटा श्रम सुख की अनुभूति कराता है।

पहली बार उन्होंने पुरुलिया का नाम लिया तो मैं समझा नहीं। मैंने पूछा.. आपके जिले में खास क्या है? एक ने याद दिलाया.. जहां आसमान से हथियारों की बारिश हुई थी। ओह! तो ये आधुनिक भारत के सबसे रहस्यमय कांड, पुरुलिया हथियार कांड वाले जिले के लोग हैं!! मैंने हंस कर पूछा.. एकाध ए के ४७ रायफल छुपाए कि नहीं? उसने भी हंस कर जवाब दिया.. सब काम आ गए।

आंखों के आगे १७ दिसम्बर १९९५ के भयानक हथियार कांड के चर्चे नाचने लगे। मैंने उस वक़्त एक लाइन लिखी थी...कफ़न ओढ़ कर सोने की आदत डालो, अब तो बरसने लगे हैं हथियार। गूगल सर्च किया तो घटना के कई समाचार मिले...

(18 दिसंबर, 1995 को पश्चिम बंगाल के पुरुलिया कस्बे के ग्रामीण सुबह-सबेरे जागने के बाद रोजमर्रा की तरह अपने खेतों की ओर जा रहे थे. इस दौरान उन्हें अचानक जमीन पर कुछ बक्से दिखाई दिए. जब इन बक्सों को खोला गया तो ग्रामीणों की आखें खुली की खुली रह गईं. इनमें भारी मात्रा में बंदूकें, गोलियां, रॉकेट लांचर और हथगोले जैसे हथियार भरे हुए थे. जितने विस्फोटक ये हथियार थे यह खबर भी उतने ही विस्फोटक तरीके से देशभर में फैल गई. यह इतनी बड़ी घटना थी कि सरकार को इस मामले में तुरंत ही देश के सामने नतीजे पेश करने थे. सरकार के लिए यह राहत की बात थी कि जांच एजेंसियों को चार दिन बाद ही एक बड़ी सफलता मिल गई. 21 दिसंबर को भारतीय उड्डयन अधिकारियों ने थाईलैंड से कराची जा रहे एक ‘संदिग्ध’ एयरक्राफ्ट को मुंबई के ऊपर उड़ते वक्त ट्रैक किया और उसे नीचे उतरने पर मजबूर कर दिया. इस जहाज में सवार लोगों से पूछताछ के बाद पता चला कि पुरुलिया हथियार कांड के तार इसी एयरक्राफ्ट और इसमें सवार लोगों से जुड़े हैं.

जांच एजेंसियों के मुताबिक ‘एन्तोनोव-26’ नाम के इस रूसी एयरक्राफ्ट ने ही 17 दिसंबर, 1995 की रात को पुरुलिया कस्बे में हथियार गिराए थे. पैराशूटों की मदद से गिराए गए उन बक्सों में बुल्गारिया में बनी 300 एके 47 और एके 56 राइफलें, लगभग 15,000 राउंड गोलियां (कुछ मीडिया रिपोर्टें राइफलों और गोलियों की संख्या इससे कहीं ज्यादा बताती हैं), आधा दर्जन रॉकेट लांचर, हथगोले, पिस्तौलें और अंधेरे में देखने वाले उपकरण शामिल थे. ‘एन्तोनोव-26’ में मौजूद एक ब्रिटिश हथियार एजेंट पीटर ब्लीच और चालक दल के छह सदस्यों को फौरन गिरफ्तार करके उनके खिलाफ जांच शुरू कर दी गई. लेकिन इस कांड का असली सूत्रधार बताया जाने वाला किम डेवी, आश्चर्यजनक रूप से हवाई अड्डे से बच निकलने और अपने मूल देश डेनमार्क पहुंचने में कामयाब हो गया.)

आगे अधिक जानकारी आप खुद गूगल सर्च कर के पढ़ सकते हैं। कभी कांग्रेस पर, कभी आंनद मार्गियों पर इस काण्ड के आरोप लगे। जिसकी गुत्थी आजतक नहीं सुलझ पाई है। यह आज भी रहस्यमय बना हुआ है। इसके किस्से आज भी रोचक और विस्मयकारी हैं। एक विदेशी एयर क्राफ्ट भारतीय रडार की आंखों में आए बिना कैसे इत्ते हथियार गिराकर सकुशल वापस भी चला गया! यह समझ से परे है।

कहीं बारिश हुई होगी, आज हवा में गर्मी नहीं है। अपने अपने अंदाज में समय काट रहे हैं यात्री। ट्रेन रोज की तरह ही स्टेशन स्टेशन रुकते हुए चल रही है। आज लोहे के घर ने पुरुलिया हथियार कांड की याद ताजा कर दी।

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आज अपने इलाके में मौसम की पहली बारिश हुई है। गरम पकौड़े खा कर ट्रेन में बैठे हैं। बोगी में काम चलाऊ भीड़ है। बाहर खेतों की मिट्टी गीली है। गीली मिट्टी की सोंधी खुशबू लिए खिड़की से ठंडी हवा आ रही है। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि लोहे के घर का मौसम आज सुहाना है।

गांव के लड़के कटाई के बाद खाली पड़े खेत को मैदान बनाकर क्रिकेट खेल रहे हैं। कहीं चर रहे हैं चौपाए कहीं बकरियों के झुंड को हांकती हंसती/कूदती चली जा रही हैं बच्चियां और कहीं पंछियों के झुंड इत उत उड़ उड़ आ/जा रहे हैं। एक्सप्रेस ट्रेन है, हर स्टेशन पर धीमी हो रही है मगर अभी तक कहीं रुकी नहीं है।

हम कंकरीट के तपे जंगल में रहने वाले शहरी जैसे पहली बारिश देख उछल पड़ते हैं वैसी खुशी नहीं दिख रही गांवों में। खेत कटे हैं, अभी जुताई हुई नहीं है, ग्रामीण शायद तौल रहे हैं बादलों का वज़न। जानते हैं कल फिर निकलेगी चिलचिलाती धूप। ये वो बादल नहीं हैं जिनसे तपी धरती की प्यास बुझ सके। कहीं कहीं खेतों में चिड़ियों के चोंच भर जो पानी लगा है इससे तो काम बनने वाला नहीं।
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आज मौसम गर्म है। शाम के ६ बजा चाहते हैं और धूप अपने शबाब पर है। तपा हुआ है लोहे का घर। मेरे पास दो नन्हीं बच्चियों वाला एक जोड़ा बैठा है। इंदौर से पटना जा रहे हैं। पटना में घर है। घर में शादी पड़ी है। युवक इंदौर में किसी दवा कम्पनी में काम करता है। युवती बच्चे संभालती है। गरीब मध्यम वर्गीय परिवार है। इंदौर के काम से तो लड़का खुश है लेकिन आने जाने से हलकान। एक बड़ा सा नया पैकेट कीन कर ले जा रहा है। शायद शादी का गिफ्ट है। दोनों बच्चियां घुटनों के बल बैठ, एक एक खिड़की की रॉड पकड़ कर बाहर हर पल बदलने वाले दृश्यों को देखने में मगन हैं। छोटकी कभी ठुनकते हुए मां की गोदी में समा जाती है, कभी फिर खिड़की के बाहर झांकने लगती है।

बाहर का संसार बच्चियों के लिए नया है। ये देख रही हैं हरे वृक्ष, सूखे खेत, चौपाए, क्रिकेट खेलते बच्चे, नदी, नाले, पुल और अनवरत साथ साथ चलने वाली पटरियां। जितना ज्ञान इन्हें पूरे साल स्कूल की किताबों में पढ़कर नहीं मिला होगा उतना ये एक रेल यात्रा से सीख पा रही होंगी। पूछती हैं पापा से.. ऊ का है? पापा गोदी में ले समझाते हैं.. ताड़ का पेड़ है।

साइड लोअर में दो लड़के, आधे बैठे, आधे लेटे, मोबाइल में डूबे हैं। ऊपर के बर्थ पर भी लोग हैं। ट्रेन को जौनपुर से बनारस के बीच कहीं नहीं रुकना चाहिए मगर यह हर स्टेशन और स्टेशन से पहले आउटर पर भी पैसिंजर की तरह रुक रुक कर चल रही है। हर स्टेशन पर मालगाड़ियां दिखती हैं। रुके स्टशन पर, बाहर निकल कर यात्री भर रहे हैं बोतल में पानी। प्लेटफॉर्म से पानी पाना हर आम आदमी के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। पैसे वाले पन्द्रह रुपए का मिनरल वाटर बीस में खरीद कर भी प्रसन्न हैं। इतनी गर्मी में मिल रहा है, यही क्या कम है!

ट्रेन रुकी नहीं रहती। रुक रही है, रुक कर चल भी रही है। गाड़ी का पटरी पर चलना सुकून देता है। पटरी पर खड़ी हो तो बेचैनी बढ़ जाती है। पटरी से उतर जाए तो आदमी पागल हो जाता है। अभी पटरी पर चल रही है अपनी गाड़ी। बिक रहे हैं मैंगो शेक, बिक रहा है ठंडा पानी और बिक रहा है गरम चाय भी।

सूरज ढल चुका है, ताप बरकरार है। जैसे सख्त अधिकारी के दफ्तर से उठ जाने के बाद भी पूरे दफ्तर पर बनी हो उसकी हनक। होते-होते कम होगा ताप। चुगते-उड़ते घुस जाएंगे पंछी अपने-अपने घोसलों में। निकलते-निकलते निकलेगा चांद। यूं ही चलते-चलते पहुंच ही जाएंगे लोहे के घर के सभी यात्री अपने-अपने घर। 
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आज मौसम ठंडा है। सुबह नींद खुली तो कालोनी में जमे पानी को देख एहसास हुआ कि कल रात बारिश हुई थी। लोहे के घर में रोज के यात्री पंछियों की तरह चहक रहे हैं। कुछ अखबार पढ़ रहे हैं, कुछ बातों में मस्त हैं। वाराणसी से सुबह सात बजे चलकर सुल्तानपुर तक जाने वाली #sjv पैसिंजर बनारस से लगभग ठीक समय पर छूटी है।
आकाश में अभी भी टंगे हैं पानी वाले बादल। निकल चुके हैं मिलिट्री छावनी के बबूल के जंगल, शिवपुर स्टेशन और कंकरीट के जंगल वाले कीचड़ भरे रास्ते। #ट्रेन अब ग्रामीण इलाके से गुजर रही है। इधर भी हुई है बारिश। गीली है खेतों की मिट्टी। फावड़े और खुरपियां लेकर निकल चुके हैं किसान खेतों में। धूप भींगी बिल्ली बन बादलों के पीछे कहीं दुबकी पड़ी है।

बाबतपुर में देर से रुकी थी ट्रेन। एक हवाई जहाज लैंड किया फिर चल दी। यात्रियों में से किसी ने हवा में ट्वीट किया..आज हवाई जहाज से क्रासिंग थी!

एक पानी से बदल चुकी है खेतों की रंगत। सूखी/बंजर धरती हरी भरी लग रही है। सुंदर सुंदर मेढ़ बना रहे हैं किसान। उखड़ चुके है सूरजमुखी के पौधे। छोटे से वर्गाकार टुकड़े में रोपे जा चुके हैं धान के बीज। कहीं कहीं हो चुकी है खेतों की जुताई। मिट्टी के बड़े बड़े ढेले बिखरे पड़े हैं आयताकार टुकड़ों में। इनके बच्चे भले वर्ग और आयत के सवालों पर कक्षा में डांट सुने, ये अनपढ़ किसान वर्गाकार, आयताकार, सम और समानांतर टुकड़ों वाले खेत कितने कलाकारी से तैयार कर लेते हैं!

कहीं महिलाएं धान के बीज वाले टुकड़े के किनारे अगल बगल सट कर बैठी, काम कम बातें अधिक करती दिख रहीं हैं, कहीं चल रहे हैं खेतों में फावड़े। पहली बारिश ने जैसे जान फूंक दिया हो भगवान भरोसे जीवन यापन करने वाले प्राणियों के जीवन में! किशोरों/युवाओं की टीम भी खेतों के इर्द गिर्द मंडरा रही है। पंछी चहकने लगे हैं, नए जोश से पंख फैलाए उड़ रहे हैं बकुले और टर्राने लगे हैं दादुर भी।

सामने वाली पटरी से एक मालगाड़ी अप से डाउन की ओर पटरी खड़खड़ाते हुए गुजरी है। आतंकित हो हवा में उड़ने लगे खेतों में चैन से चुग रहे सभी पंछी। एक लंबी सीटी मार कर फिर पटरी पर चलने लगी है अपनी पैसिंजर। 
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मौसम परिवर्तन का समय है। गर्मी जा रही है, बरखा रानी आ रही है। प्राकृतिक सत्ता के इस स्थानांतरण में खूब जोर आजमाइश होती है। कभी बादल धूप को रूई का फाहा बनाकर अपने काख में दबाए उड़ने लगता है, कभी धूप बादलों को चीर, चिन्नी-चिन्नी फाड़ कर अपनी सत्ता फिर स्थापित कर लेती है। यह ताकत का खेल है। भारतीय लोकतंत्र में भी कभी कभी सत्ता हस्तानांतरण में यह खेल देखने को मिल जाता है।

गर्मी जाते-जाते बड़े बवाल काटती है। वर्षा सत्ता में काबिज होने के लिए खूब बल प्रयोग करती है। कभी आंधी, कभी ओलावृष्टि और कभी जोरदार बिजली कड़कती है। इस युद्ध में निर्दोष प्राणी नाहक मारे जाते हैं। प्रकृति का हो या मनुष्यों का, सत्ता हस्तांतरण का यह खेल आम जन के लिए बड़ी त्रासदी लेकर आता है। 


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