16.6.18

व्यंग्य क्षणिकाएं

अपराधी कौन ?
................

नदियाँ 
सूखती हैं 
समुंदर के प्यार में 
समुंदर प्यार करता तो
नदियां
पहाड़ चढ़ जातीं!

किसी नदी की मृत्यु के लिए
कोई मनुष्य
जिम्मेदार नहीं।
...............

खिलाड़ी 
.........................

दर्शकों को लगा
और रेफरी का भी यही निर्णय था
कि ड्रा पर समाप्त हुई
शतरंज की यह बाजी
लेकिन खिलाड़ियों के चेहरे पर
एक कुटिल मुस्कान है
दोनो के
अर्जित अंकों में
मनोवांछित उछाल आया है।
.............

पानी 
.........

पानी होता
पानी पी कर
गाली देते!

हम प्यासे
कुआं बेपानी,
कितना रोएं?
.............

चाल
...............

चाल तो 
अच्छी चली थी 
यार मैंने
मोहरे खाते मलाई! 
क्या पता था।
....................

धूप 
..........

बादलों से 
धूप को 
यूं ना डराओ

धूप पल में 
बादलों को 
चीरती है।
..................


6 comments:

  1. क्या बात है बहुत ही शानदार क्षणिकायें है👌👌

    ReplyDelete
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-06-2018) को "पूज्य पिता जी आपका, वन्दन शत्-शत् बार" (चर्चा अंक-3004) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

    ReplyDelete
  3. बहुत खूब ...
    सभी क्षणिकाएं मजबूत ... प्रखर तीव्रता से अपनी बात गंतव्य तक पहुंचा रही हैं ...
    लाजवाब जी ...

    ReplyDelete
  4. बाखूबी लिखा है आपने ...

    ReplyDelete