5.8.18

चिड़िया

तिनका-तिनका बटोरकर
एक अच्छा सा घंरोदा बनाने का खयाल
हर चिड़िया करती है

आँधियों में पंख फैलाकर
सूरज को
चोंच में दबा लेना चाहती है

उषा की पहली किरण
उसे उत्साहित करती है तो
दोपहर की चमक
संवेदनशील

मेरे आंगन से
अपना महल उठाते हुए
बच्चों के सुख की चिंता होती है

सुबह के गीत गाती है,
ओस में नहाती है,
धूप में कपड़े निचोड़कर
बच्चों से ठिठोली करती है

दिन ढले
अपने आप से सशंकित,
घर लौटना चाहती है

चोंच से फिसलकर
पीला सूरज
समुद्र में डूबने लगता है
उस वक़्त वह
बहुत चीखती है

रोज एक सूरज उगता,
एक डूब जाता है
सुबह शाम का यह अंतराल
उसके संघर्ष की कहानी कहता है

सूरज को चोंच में दबाने का खयाल
वह नहीं छो़ड़ पाती
अंधेरे में चोंच गड़ाना
उसे पसंद नहीं।
..................

11 comments:

  1. बहुत सुंदर कविता

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (07-08-2018) को "पड़ गये झूले पुराने नीम के उस पेड़ पर" (चर्चा अंक-3056) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. चिड़िया का यही संघर्ष उसे जिलाए रखता है हर दिन को नये उत्साह के साथ स्वागत करने की ताकत भी देता है..सुंदर भावपूर्ण कविता !

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