पत्नी की रहनुमाई में,
दिवाली की सफाई में,
दृश्य एक दिखलाता हूँ
क्या पाया, बतलाता हूँ।
एक पुराना बक्सा था
जिसमें मेरा कब्जा था
जब बक्सा मैने खोला
धक से मेरा दिल डोला
एक गुलाबी रुमाल मिला
तीर चुभा दिलदार मिला
और टटोला भीतर तो
अक्षर अक्षर प्यार मिला
खत में प्यारी बातें थीं
धूप छाँव की यादें थीं
'रानू' की किताब भी थी
मर मिटने की बातें थीं।
बहुत पुराने पन्ने थे
पलटा मानों गहने थे
दिल मे अब फुलझड़ियाँ थीं
चूर-चूर पँखुड़ियाँ थीं
खोया, हंसी खयालों में
मयकश डूबा, प्यालों में
बिजली चमकी, घन गरजे
कहाँ देर से हो उलझे?
अपना बक्सा बन्द करो,
चलो, उठो, अब वहाँ चढ़ो!
तुमसे काम नहीं होता
सब आसान नहीं होता
मकड़ी जाले साफ करो
यार! हमें तुम माफ करो
जब कुछ काम नहीं करना
व्यर्थ यहाँ क्यों बैठे हो?
दो-कौड़ी किताब है वह
उसमें अब क्यों उलझे हो?
मैने कहा.लो! खुद देखो
ये सब खत तुम्हारे हैं!
यह किताब तो मेरी है,
इसमें फूल तुम्हारे हैं
घर के जाले छोड़ो तुम
मन के जाले साफ करो
इस दीवाली में साथी
प्रेम दीप भी एक धरो।
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 29 अक्टूबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-10-2019) को "भइया-दोयज पर्व" (चर्चा अंक- 3503) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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दीपावली के पंच पर्वों की शृंखला में गोवर्धनपूजा की
हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण प्रस्तुति।बेहतरीन सृजन।
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ReplyDeleteएक गुलाबी रुमाल मिला
तीर चुभा दिलदार मिला
और टटोला भीतर तो
अक्षर अक्षर प्यार मिला
पुराने सामान और साफ-सफाई में प्यार भरी यादें...
बहुत ही खूबसूरत भावपूर्ण रचना
वाह!!!
बहुत प्यारी प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत प्यारी सी रचना देवेन्द्र जी | , बक्से में कोई शुरू में लगता था , बड़ी दारुण प्रेम कथा निकलेगी गुलाबी रुमाल और तीर चुभे दिलदार के पीछे | पर अंत में संतोष हुआ जीवनसंगिनी के ही प्रेम की थाती है | सुंदर रोचक रचना के लिए बहुत बधाई और शुभकामनायें |
ReplyDelete😊
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