21.12.20

मन बहुत बेचैन मेरा

 मन बहुत बेचैन मेरा

तू मिले तो चैन आए।


तू धरा में तू गगन में

जर्रे-जर्रे में छुपा तू

है पढ़ा हमने भी लेकिन

वही दिन औ रैन आए!


मन बहुत बेचैन मेरा

तू मिले तो चैन आए।


मूर्तियाँ तेरी अनेकों

और अनगिन प्रार्थनाएँ

रूप हैं तेरे अनेकों

दे दरश! अब नैन छाए।


मन बहुत बेचैन मेरा

तू मिले तो चैन आए।


इन खिलौनों पर नज़र

मेरी कहीं टिकती नहीं है

गाँठ बाँधा है तुम्ही ने

दूसरा कैसे छुड़ाए!


मन बहुत बेचैन मेरा

तू मिले तो चैन आए।

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8 comments:

  1. बहुत सुन्दर

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  2. भावपूर्ण भक्तिमय सुंदर रचना

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  3. तू मिले तो चैन आए ... विचलित मन को वो कब शांत कर जाएगा पता नहीं ... पर कभी कभी उसकी ज़रुरत ज्यादा महसूस होती है ...
    भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...

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  4. बहुत बढ़िया।

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  5. तू मिले तो चैन आये | अप्राप्य को स्नेहिल पुकार !

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