मॉर्निंग वॉक के समय लॉन में शर्मा जी मिल गए। घूम घाम कर लौटे थे और बेंच पर, मुँह लटकाकर विश्राम कर रहे थे। मैने पूछा...मुँह क्यों लटकाए हैं शर्मा जी? आपके तो तीन-तीन बेटे हैं, क्या हुआ?
बड़ा लड़का बहुत दुःखी रहता है। जब देखो तब पैसे मांगता रहता है।
अच्छा! दूसरा वाला?
वह भी दुखी रहता है लेकिन कभी किसी से कुछ नहीं मांगता। स्वाभिमानी है। जितना कमाता है, उतने में ही गुजारा करता है।
गनीमत है और तीसरा? वो तो कमाने के लिए अमेरिका गया था न?
हाँ, वह बहुत खुश है। बचपन से बहुत तेज था। हर सप्ताह वीकेंड पर पत्नी के साथ पार्टी करता है, नई-नई जगह घूमने जाता है और फेसबुक, इंस्टाग्राम में खूबसूरत तस्वीरें पोस्ट करता है।
तब तो खूब डॉलर भेजता होगा?
नहीं, कभी एक पैसा नहीं भेजा। मैने मांगा भी नहीं। कल शाम ही तो उसका फोन आया था। पूछ रहा था, "पिताजी! आप रिटायर्ड हो जाएंगे तो ग्रेच्युटी, भविष्य निधि और सब मिलाकर कुल कितना मिल जाएगा? सोच रहा हूँ यहाँ एक मकान खरीद लूँ और आपको भी यहीं बुला लूँ। रिटायर्ड होने में अभी कितने दिन हैं?"
अरे!!!
कल बैंक गया था। मैनेजर कह रहा था, "आपने बेटे को अमेरिका पढ़ाने के लिए घर की जमानत पर जो एजूकेशन लोन लिया था, बढ़कर 50 लाख से ऊपर हो चुका है। कम से कम हर महीने ब्याज तो चुकाते रहिए। रिटायर्ड होने में अभी कितने दिन हैं?"
बहुत व्यवहारिक है आज की पीढ़ी, समय रहते समझ आ जाये तभी ठीक है.
ReplyDeleteबेहतरीन लघु कथा । जीवन की सच्चाई को कहती हुई ।
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteअन्तर्मन को तार तार करती कड़वी सच्चाई बयां कर गई आपकी ये लघु कहानी, समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी भ्रमण करें, सादर शुभकामनाएं देवेन्द्र जी ।आपकी आज की रचना में टिप्पणी का कॉलम नहीं दिख रहा ।
ReplyDeleteभूल से छूट गया था। खोल दिया हूँ। कष्ट के लिए खेद।
Deleteनयी रचना पर प्रतिक्रिया कर पाने में असमर्थ हूँ।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना सोमवार 31 मई 2021 को साझा की गई है ,
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।संगीता स्वरूप
एकदम सत्य और सामयिक। समाज की भटकी ऐसी पीढ़ी को आइना दिखाती लघु कथा।
ReplyDeleteजीवन की सच्चाई बयान करती कथा ।
ReplyDeleteआदरणीय सर, बहुत ही यथार्थपूर्ण लघु-कथा । बहुत से सेवा-निवृत पिता इसी प्रकार की दुविधा और उदासी को झेलते हैं । पता नहीं क्यूँ माता - पिता जिन बच्चों का पालन -पोषण करने में अपना सारा जीवन लगा देते हैं, वही बच्चे बड़े हो कर माता-पिता की ज़िम्मेदारी नहीं उठाना चाहते। हृदय से अत्यंत आभार व आपको प्रणाम ।
ReplyDeleteमार्मिक, स्थितियाँ इतनी न बहकें।
ReplyDeleteओहो, शानदार यथार्त नाना प्रकार के मानवीय मुखड़े. बस कुछ कुछ ऐसे ही हैं ये चेहरे , नकाब वाले असली,
ReplyDeleteओह! माता- पिता केप्रति आज की सबसे भयावह कड़वी सच्चाई।
ReplyDeleteअर्थयुग में सरकारी औसत आमदनी वाले पिता की उलझन और वेडना कौन समझ पाया। । असमर्थ भी, समर्थ भी -----सब एक से। भावपूर्ण अभिव्यक्ति देवेन्द्र जी। हार्दिक शुभकामनाएं।
आप सभी मित्रों का आभार। कमेंट देखकर फिर ब्लॉग जगत में लौटने का मन हो रहा है। अभी तो सिर्फ पोस्ट कर के भाग जाता था।
ReplyDeleteThanks, Apke dwara prstut ki gyi sabhi jankari bahut hi achhi hoti hai, jisse logo ko bahut hi madad milti hai, apse benti hai aap ese hi hum sab ki madad krte rahe, apka bahut bahut shukriya. Free me Download krein: Mahadev Photo
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