नाच मेरी बुलबुल! तुझे पैसा मिलेगा।
इत्ते जाड़े/कोहरे में क्यों नाचें? ये चावल के दाने बहुत हैं।
आज रात को नया साल आने वाला है। खुशी मनाओ।
हाय राम! मतलब बम फोड़ोगे? शोर मचाओगे? मेरे घोसले में अभी अंडों से निकले दो बच्चे हैं।
नव वर्ष में हम बम नहीं फोड़ते हैं पगली! चिंता मत कर। मगर ये बता तुम लोगों के जीवन में नया साल कभी नहीं आता?
आता है न! साल में दो बार आता है। जब जब फसल कटती है, नया साल आता है। खूब दाने मिलते हैं खेतों में। तुम्हारी कृपा पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। मगर रुको! मुझे दो पायों पर कभी भरोसा नहीं होता। बिना शोर किए ये कोई खुशी मना ही नहीं सकते। सच सच बोलो! क्या-क्या करोगे?
मुर्गा खाएंगे, शराब पीएंगे, नाचेंगे, गाएंगे, केक काटेंगे और सुबह से शाम तक सबको नए साल की शुभकामना देंगे और क्या!
बस बस बस...बिचारे मुर्गे! हमको तो नहीं खाओगे?
तुम्हारे जिस्म में मांस ही कितना है! कभी खाया तो नहीं, एक दिन चखूं क्या?
राक्षस कहीं के! तुम लोग अपनी खुशी के लिए कुछ भी कर सकते हो। तुम्हारी प्रार्थनाएं, तुम्हारी शुभकामनाएं, तुम्हारे दान/पुण्य, पूजा-पाठ, दुआ/सलाम सब एक ढोंग है। बहुरूपिए और दोहरे चरित्र वाले हो। तुम्हें जिसने अच्छा समझा, धोखा खाया।
अरे चुप! चुप! इतना गुस्सा मत कर। हम जिसे प्यार करते हैं उसे थोड़ी न खाते हैं। नए साल का मजा ले।
बोल! हैप्पी न्यू ईयर।
अब ज्यादा मुंह न खुलवाओ। तुम सब मतलबी और स्वार्थी हो। प्रत्येक प्राणी को सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए पालते हो। किसी को मीठी बोली के लिए, किसी को उसके मांस के लिए तो किसी को उसके दूध के लिए। कल एक गौरैया कित्ता सच कह रही थी....
आदमी से रहना, साथी जरा संभल के। ये जिसको प्यार करते, उसपे इनके पहरे। हमको सिखा रहे हैं, गोपी कृष्ण कहना। जानते नहीं जो प्रेम के ककहरे।
और बुलबुल फुर्र से उड़ गई।
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ये सुबह की बातें ..... सूक्ष्म अवलोकन ।
ReplyDeleteलाजवाब अभिव्यक्ति ।।
आभार।
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