रजाई से
सर बाहर निकाल कर
दोनों कानों को
बन्द खिड़की के उस पार फेंको!
कुछ सुनाई दिया?
बारिश!
नहीं sss
ओस की बूंदें हैं
थाम नहीं पा रहे पत्ते
टप टप टपक रहीं हैं
धरती पर।
मौन
कभी, कहीं नहीं होता
भोर में तो और भी शोर होता है!
आंखों से
न दिखाई देने वाले जीव
कलियां, फूल, पत्ते
सभी करते हैं संघर्ष
जहां संघर्ष है
वहीं शोर है
ओस की पहली बूंद से
सूर्य की पहली किरण तक
जो मौन है
उसमे भी शोर है
सब
दिखाई नहीं देता
सब
सुनाई नहीं देता।
यह जो मौन का शोर है न?
बड़ा तिलस्मी है
सुनो!
पहली दफा
मधुर संगीत सुनाई देता है
आगे
तुम्हारी किस्मत!
...............
मौन का शोर बहुत तिलस्मी है । बहुत शानदार अभिव्यक्ति ।।
ReplyDeletepls read me also http://againindian.blogspot.com/
Deletehttp://justiceleague-justice.blogspot.com/
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गजब
ReplyDeleteमौन के शोर के तिलस्म का जादू बिखेरती सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeletegood said about
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