22.10.10

आशीर्वाद

 
”नमस्कार !”

“पण्डित जी, नमस्कार !”

“नमस्कार, पाण्डित जी !”

“पा लागी पंडित जी !”

“पंडित जी ‘पा.s.s लागी’ !”

(क्रोध से तमतमा कर दोनो कंधे झकझोरते हुए....)

“‘बही.s.s.र’ हो गयल हौवा का ? ढेर घमंड हो गयल हौ ?”

“अरे बाबू साहब, का बात हौ ? काहे चीखत हौवा ? का हो गयल ?”

(दोनो हाथ नचाते हुए, गुस्से से.....)


“पाँच दाईं नमस्कार कर चुकली...एक्को दाईं जवाब ना मिले, त का होई ?” ईहे न मन करी, “जा सारे के, कब्बो नमस्कार ना करब..!”


“अरे..रे... के तोहरे नमस्कार कs जवाब नाहीं देत हौ ! नमस्कार…..!”


बाबू साहब चुप !


‘पण्डित जी’ फिर से काम में मगन !


(बाबू साहब फिर चालू....)


“हमरे ई ना समझ में आवत हौ कि तू कौन जरूरी काम करत हौवा ? तोहीं से पूछत है पंडित जी…! तोहीं के पाँच दाईं नमस्कार कैले रहली....! ई कम्प्यूटर न हो गयल चुम्बक हो गयल ससुरा...अच्छे-भले मनई के पगला देत हौ..! जा अब तोहें कब्बो नमस्कार ना करब....!”


(पंडित जी घबड़ाकर.....)


“दू मिनट बाबू साहब....नाहीं तs हमार सब करल-धरल 'गुण गोबर' हो जाई..”


‘हम जात है पंडित जी...तू यही में चपकल रहा...ससुरा कम्प्यूटर ना हो गयल सनीमा कs ‘हीरोईन’ हो गयल...!”


(आसपास खड़े लोग जो बाबू साहब की बातें ध्यान से सुन रहे थे...ठहाके लगाने लगते हैं ..उसी में कोई चुटकी लेता है...’झण्डूबाम हुई...कम्प्यूटर तेरे लिए…!’फिर एक जोरदार ठहाका लगता है...!हरबड़ी में पंडित जी कम्प्यूटर बंद करते हैं और बाबू साहब को जबरिया कुर्सी पर बिठाकर पूछते  हैं.....)


“हाँ, तs बतावा का हल्ला करत रहला...?”


“कुछ नाहीं पंडित जी, ‘पलग्गी’ कैली, तs चाहत रहली की आप कs आशीर्वाद मिले...कौनो काम ना हौ,,आखिर नमस्कार कs जवाब तs देवे के न चाही ?


“देखत ना रहला कि इतना लम्बा अंक लिखले रहली...अंत में जोड़ न करीत, ओह के कम्प्यूटर में ‘सेव’ न करीत तs कुल ‘गुण गोबर’ ना हो जात ? ...तोहें तs बस… पलग्गी कs जवाब नाहीं देहला...!पलग्गी कैला तs हम तोहरी ओर तकले ना रहली...! कौनो जबरी हौ..? जे आशीर्वाद नाहीं देई, ओहसे जबरी आशीर्वाद लेबा...?”


“ए पंडित जी, ई त कौनो बात ना भईल…! ‘पलग्गी’ कैली… तs आशीर्वाद तs तोहें देवे के पड़बै करी..!” (दूसरे लोगों की ओर देखते हुए....) का भाई, आपे लोग समझावा ‘पंडित जी’ के....!”

 
(बाबू साहब की बात सुनकर लोग दो खेमे में बंट गए...कोई बाबू साहब को चढ़ाता….”हाँ बाबू साहब, आशीर्वाद तs  पंडीजी के देवे के चाही...” कोई कहता...”जायेदा, बाबू साहब, तू ‘पा लागी’ करबे मत  करा..!” कोई कहता....”आशीर्वाद देना कोई जरूरी नहीं।“)


पंडित जी बोले,    "तोहार माथा गरम हौ। पहिले पानी पीया...। सब तोहें चढ़ा के मजा लेत हौ...तू तनिको बतिया समझते नाहीं हौवा..(मंगरू को आवाज देते हुए...) जाओ जल्दी से बाबू साहब को चाय पिलाओ….!”

“चाय-वाय नाहीं पीयब ! पहीले ई बतावा, आशीर्वाद देना काहे जरूरी ना हौ ?”

“चाय पी ला, अब छेड़ देहले हौवा..कम्प्यूटर बंद हो गयल हौ, तs तोहें तबियत से समझावत हई।“


(चाय पीने के बाद के बाद पंडित जी ने प्रश्न किया...)


“ई बतावा, संकटमोचन में हनुमान जी के लड्डू चढ़ावला..? हनुमान जी कs दर्शन हो जाला तs मस्त हो के चल आवला...! ई तs अच्छा हौ कि हनुमान जी नाहीं बोललन ..बोल्तन त का तू उनहूँ से जबरी आशीर्वाद लेता..?”

“देखा पंडित जी, बेवकूफ मत बनावा...पहिली बात कि तू हनूमान जी नाहीं हौवा......!”


(बीच में ही बात काटकर.....)


“हाँ,...आ गइला न रस्ते में....हम हनुमान जी नाहीं है...ठीक कहत हौवा...एकर मतलब ई भयल कि जितना ‘श्रद्धा’ तोहार हनुमान जी बदे हौ. उतना हमरे बदे नाहीं हौ……हमरे बदे ‘श्रद्धा’ में कमी हौ । हौ... मगर उतना नाहीं हौ, जितना हनुमान जी बदे हौ..?”


“हाँ, ठीक कहत हौवा...तs एकर मतलब ई भयल कि तू आशीर्वाद नाहीं देबा..?”

नाहीं…s..s…एकर मतलब ई भयल कि ‘पालागी’ ओही के करे के चाही जेकरे बदे तोहरे मन में भरपूर श्रद्धा हो…। ’श्रद्धा’ होई... तs ‘संशय’ अपने आप मिट जाई...। ‘पंडित जी’ देख लेहलन कि हम ‘पा लागी’ करत हई... यही बहुत हौ...! अऊर यहू जरूरी नाहीं हौ कि ‘पंडित जी’ के पा लागी करबे करा....! कौनो डाक्टर बतौले हौ कि ‘पंडित जी’ के पा लागी करा तबै स्वस्थ रहब...?भ्रष्ट हौ..चोर हौ..व्यभिचारी हौ..मगर ‘पंडित’ हौ तs पा लागी करबे करा...?  ई कौन बात हौ...! ‘पा लागी’ ओहके करा जे ऊ योग्य हो...! फिर चाहे कौनो जात बिरादरी कs होखे...! ’पा लागी’ ओहके करा..जेकरे प्रति मन में श्रद्धा जागे...! ‘अइरू गइरू नत्थू खैरू’ जौन मिल गइलन ओही के ‘पंडित जी पा लागी..’ ई कौन बात हौ..?”                                                                                                                                                           


“तू ‘अइरू गइरू’ हौवा...?”

“नाहीं..हम ‘अईरू गईरू’ ना है..हमरे प्रति तोहरे मन में श्रद्धा हौ..तs हम आशीर्वाद ना देहली..तोहार ‘श्रद्धा’ छण भर में खतम...! ई कैसन ‘श्रद्धा’ ? ई कैसन विश्वास...? अऊर यहू समझा कि आशीर्वाद जबरी लेबs तs का ऊ फली ?.. ई हमरे अधिकार कs बात हौ ..ई हमरे मन कs बात हौ....जे आशीर्वाद कs पात्र ना हौ, ओहू के आशीर्वाद दे देई....?” जैसे सबके ‘पा लगी’ नाहीं करल जाला वैसे सबके आशीर्वादो नाही देहल जाला...! ई कौनो जबरी कs सौदा ना हौ...। जे आशीर्वाद देला ओकर शक्ति कम होला...जे आशीर्वाद पावला ओकर शक्ति बढ़त जाला..। ऐही बदे ऋषी-मुनी सालन तपस्या कै के शक्ति जुटावत रहलन कि संसार में बहुत अभागी हौवन ...उनकर कल्याण कs जिम्मा उनहीं के ऊपर रहल.. ..


“तs का तू ‘चमार’ के भी पा लागी करबा...?”


“काहे नाहीं...! ऊ योग्य हौ…..हमे ओहसे शिक्षा मिलत हौ...हमार जीवन ओकरे कारण सुधरत हौ, तs ई हमार परम सौभाग्य हौ कि हम उनकर पैर पकड़ के उनसे आशार्वाद लेई...! उनहूँ के खुशी होई की हमरे शिक्षा क मोल हौ...! तs ऊ जब आशीर्वाद देई हैं.. तs समझा जनम सफल हो जाई...!”


“तू धन्य हौवा पंडित जी...! आजू से हमार आँख खुल गयल.....! तोहार चरण कहाँ हौ....?  पालागी...!”


“जा खुश रहा..! मस्त रहा..!”

( सभा बर्खास्त हुई...लोग अपने-अपने घर को चले गए..लेकिन बहुतों के मन में यह भाव था कि ‘पंडित जी’ ने बड़ी चालाकी से ‘बाबू साहब’ को मूर्ख बना दिया...! हम आपसे जानना चाहते हैं कि क्या पंडित जी गलत थे ?)

26 comments:

  1. आज बहुत दिनों बाद कंप्यूटर पर बैठी हूँ ,आपकी सभी पोस्ट्स पढ़ डाली ,मज़ा आया ,आग बहुत अच्छी लगी .अच्चा लिखते हैं आप । विजयादशमी की मंगल कामनाएं ।

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  2. सौ बात की एक बात - ‘पलग्गी’ कैली… तs आशीर्वाद तs तोहें देवे के पड़बै करी...

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  3. अमूमन पालागी वाले मुद्दों से कन्नी काटता हूं...बोली में थोडी सी समस्या थी ! इसे तीन बार पढा और अब स्वीकार कर रहा हूं कि आपने सार्थक और सुन्दर सन्देश दिया है पालागी के माध्यम से !

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  4. देवेन्द्र जी,

    सबसे पहले तो इतनी शानदार रचना पर हार्दिक बधाई..........पोस्ट की भाषा मुझे बहुत अच्छी लगी इसने इस पोस्ट में और जान डाल दी है.......बहुत खूब....ये पैराग्राफ मुझे बहुत पसंद आया ............

    "नाहीं…s..s…एकर मतलब ई भयल कि ‘पालागी’ ओही के करे के चाही जेकरे बदे तोहरे मन में भरपूर श्रद्धा हो…। ’श्रद्धा’ होई... तs ‘संशय’ अपने आप मिट जाई...। ‘पंडित जी’ देख लेहलन कि हम ‘पा लागी’ करत हई... यही बहुत हौ...! अऊर यहू जरूरी नाहीं हौ कि ‘पंडित जी’ के पा लागी करबे करा....! कौनो डाक्टर बतौले हौ कि ‘पंडित जी’ के पा लागी करा तबै स्वस्थ रहब...?भ्रष्ट हौ..चोर हौ..व्यभिचारी हौ..मगर ‘पंडित’ हौ तs पा लागी करबे करा...? ई कौन बात हौ...! ‘पा लागी’ ओहके करा जे ऊ योग्य हो...! फिर चाहे कौनो जात बिरादरी कs होखे...! ’पा लागी’ ओहके करा..जेकरे प्रति मन में श्रद्धा जागे...! ‘अइरू गइरू नत्थू खैरू’ जौन मिल गइलन ओही के ‘पंडित जी पा लागी..’ ई कौन बात हौ..?” "

    बहुत गहरी बात को अपने सरल तरीके से अपने अंदाज़ में कहा है...वाह
    मेरी शुभकामनाये|

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  5. सार्थक एवं प्रभावी पोस्ट के लिए सादर बधाई.......

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  6. पंडित जी सही थे। आशीर्वाद किसी का भी हो फलता है। इसी बात पर आपको भी आशीर्वाद।

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  7. mastttttt.
    bahut badhiyaa.
    thanks.
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  8. मुझे तो नहीं लगा कि पंडित जी ने बाबू साहब को मूर्ख बनाया। पंडित जी ने बहुत मार्के की बातें कहीं। जो तर्क उन्‍होंने दिए वे एकदम खरे हैं।

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  9. आशीर्वाद तो आशीर्वाद है फ़लता ही है, इसी बात पर हम भी आपको पालागी कर लेते हैं तनि आशीर्वाद दे दिजिये.

    रामराम.

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  10. ताऊ का तो आशीर्वाद चाहिए..उल्टी गंगा नहीं बहेगी..पा लागी ताऊ..

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  11. @ पांडेय जी, कभी कभी गंगा को भी गंगोत्री मे चढना पडता है इसलिये आज तो आशीर्वाद दे ही दिजिये. ताऊ तो स्वभावत: रोज ही आशीर्वाद देता है.:)

    रामराम.

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  12. हे बाबा विश्वनाथ...मेरो ताऊ को लम्बी उमर दे..उनका परिवार खुशहाल रहे....अभनपुर नरेश महाराज ललिता नंद, कनाडा नरेश समीरा नंद, दिल्ली नरेश, काशी नरेश, जर्मनी नरेश सभी खुश रहें..मस्त रहें..आज गधे पर हैं, कल हाथी पर हों..जय हो..जय हो..

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  13. ये हुई ना कोई बात. अब समझिये अगली सवारी हाथी पर ही निकलेगी.:)

    रामराम.

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  14. बहुत गहरी बात को अपने सरल तरीके से अपने अंदाज़ में कहा है....सार्थक एवं प्रभावी पोस्ट के लिए सादर बधाई.......

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  15. बहुत सरलता से और बहुत ही रोचक शैली में लिखें हैं आप .... मज़ा आ गया ... हमारी भी पाय लागूँ ...

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  16. पालागी पाँड़े बाबा! देरी भय गईल ई बदे कि समाज में लोगन के बीमारी में सेवा टहल के दायित्त में लागल रहनीं... काहे गुसियाएल हौवा की आसीर्बादो नाहीं देत हौवा.. हई त एकदम उत्तम सिच्छा हो गईल जऊन नीचो से गरहन करे में परहेज नाहिं बा.. अब देबेंदर पाँड़े के बात काट सकेला केहू!!

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  17. पांडेजी!

    आपने पंडितजी को निरंहकारी और आडम्बर किहीन दिखाकर सौमनस्य का वातारवरण तैयार किया है। आज इसी विचार आंदोलन का युग है। युग के साथ चलना बुद्धिमत्ता है।

    अपनी बानी बोली में एक सार्थक रचना ..बधाई

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  18. पंडित जी काहें झूठ बोलने लगे लैपटाप मुबारक !

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  19. अंत तक रोचकता बरकरार रही, सुन्‍दर लेखन ।

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  20. ओह...क्या बात कह डाली आपने.....

    इस सुन्दर पोस्ट पर तो पालग्गी नहीं साष्टांग दंडवत करती हूँ आपको....

    पोस्ट की भाषा और शिक्षा दोनों ने ही एकदम मन बाँध लिया ...आनंदित ,तृप्त कर दिया...

    आठ दस टन आभार आपको.....

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  21. वैसे हमरा भी मन भारी ललचा गया है..दुनो हाथ उठाकर तनिक आशीर्वाद हमको भी दे दें कि हम भी अच्छा सोच पायें और सार्थक कर्म कर पायें...

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  22. A nicely written humorous short drama.Certainly the pandit is right.

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