क्वचिदन्यतोअपि से लौटकर........
जेहके देखा वही करत हौ अब कवियन पर चोट
व्यंग्यकार, आलोचक के अब ना देबे हम वोट
कमेंट कवियन पर होई!
ज्ञानी रहतीं, लिख ना देहतीं, एक अउर रामायण
रोज उठाइत ब्रत अउर रजा, रोज करित पारायण
बतिया एक्को न मानब !
यार-मित्र जब ना सुनलन, संपादक रोज लौटावे
रोज लिखी कविता चौचक, शायद अब छप जावे
मु्श्किल से ब्लॉग मिलल हौ !
ई त हमहूँ के पता कि हमरे में नाहीं कुछ्छो दम
बहस होई सभा मा बोलब खुलके, केहसे हई कम
देखिया सम्मानो पाईब !
..........................................
............तुरत-फुरत व्यंग्य शैली में लिखा है। आलोचक कमियाँ बतावें..व्यंग्यकार आलोचना करें..मीडिया वाले चर्चा करें..हम जल्दी से महाकवि घोषित हों। इसी क्षुद्र कामना के साथ।
क्या धार है व्यंग्य की...क्या भाषा है...प्रशंसा को शब्द नहीं मेरे पास..एकदम निःशब्द हूँ...
ReplyDeleteMaza aa gaya padhke!
ReplyDelete.
ReplyDeleteहे महाकवि देवेन्द्र ,
हम कृतार्थ हुए आपकी रचना पढ़कर । इतनी सुन्दर रचना मैंने पहले कभी नहीं पढ़ी । आनंद आ गया ।
प्रणाम गुरुवर।
.
हे महाकवि देवेन्द्र ,
ReplyDeleteबड़ रोपचिक लिखल हौ..
पढ़ि के हमनी के मन जुड़ा गयल !
आलोचक के परुवाह नैखे करै क चाहीं, बस रउवा लिखल जाईं !!
देखिया सम्मानो पाईब !
ReplyDeleteअपने ऊपर ऐसा निर्मल विश्वास कवियों को भी दुर्लभ है :-) सहर्ष सम्मान देते हैं आपको पाण्डेय जी !
ज्ञानी रहतीं, लिख ना देहतीं, एक अउर रामायण
ReplyDeleteरोज उठाइत ब्रत अउर रजा, रोज करित पारायण
बतिया एक्को न मानब !
गजब .....गजब ....बस गजब .....!
बहुत शानदार व्यंग... आभार सहित...
ReplyDeleteतुरत-फुरत व्यंग्य महाकवि ! आपको सलाम ।
ReplyDeleteबढ़िया सरकाई है , भाई ।
बहुते बढिया लागल!
ReplyDeleteबहुत सुंदर व्यंग
ReplyDeleteबड़ा सन्नाट!!
ReplyDeleteयार-मित्र जब ना सुनलन, संपादक रोज लौटावे
रोज लिखी कविता चौचक, शायद अब छप जावे
मु्श्किल से ब्लॉग मिलल हौ !
:)
अगर हम
ReplyDeleteपुरस्कार पीठ में होते - आपको कविराज सम्मान दे देते
चर्चा दल में होते - हर रोज़ आपकी ही काव्यचर्चा करते
संगीतकार होते - हर फिम के गीत आपके ही होते
मगर, फिलहाल - आपकी शानदार रचना के लिये बधाई!
देखिया सम्मानो पाईब !
ReplyDeleteएक उत्कृष्ट रचना -बार बार मुस्करा रहा हूँ और दाद दे रहा हूँ आपको -खुजाते रहिएगा !:)
स्मार्ट इंडियन जी ने जो कहा उस पर हमारी भी मुहर. अरविन्द जी के पोस्ट के बाद ही यह कविता पढ़ी मजा दुगना हो गया.
ReplyDeleteअवधी में हमारी लिखने की सीमायें हैं... सो अमरेन्द्र के विचार में हमारा स्वर भी शामिल समझिये....."हे महाकवि देवेन्द्र ,
ReplyDeleteबड़ रोपचिक लिखल हौ.. पढ़ि के हमनी के मन जुड़ा गयल"
बहुते नीमन लागल .....परनाम !
ReplyDeleteदेव बाबू,
ReplyDeleteक्या बात है......जब आप अपनी भाषा में होते हैं....तो ज़बरदस्त होते हैं.....अगर कोई सभा या जलसा (मुझे तो सिर्फ ये भीड़ ही लगती है )......कोई तमगा पकड़ा भी देता है तो इससे क्या फर्क पढ़ता है .......असली बात तो तब है जब आपके पाठक आपको सम्मान देते हैं.........क्यूँ?
SUNDAR KAVITAI, MAN KO BHAI.
ReplyDelete............
ब्लॉ ग समीक्षा की 12वीं कड़ी।
अंधविश्वास के नाम पर महिलाओं का अपमान!
कोई कमी नहीं दिखती है, यही कमी है।
ReplyDeleteइत्ता बढ़िया लिखेंगे तो बाकी क्या करेंगे?
मीडिया तक(भी) अपनी पहुँच नहीं, होती तो हमीं न छप जाते:)
महाकविराज तो आप हैं ही।
सड़कें ठीक हुईं कि नहीं अभी? कब होंगी यार?
और गुरू आखिरी पंक्तियाँ पढ़कर आचार्य की पोस्ट और उसपर आपकी टिप्पणी फ़िर से याद आ गई:)
ReplyDeleteपाण्डेय जी आज जो आपने कविताई लिखी बड़ी जबदस्त बा एक समय था जब इस तरह के दुमदार शेर बहुत लिखे जाते थे क्योंकि यह दमदार भी होते थे
ReplyDeleteसंजय जी...
ReplyDeleteसड़क ससुरी ठीक का हुई ! इट्टी-गिट्टी पटी तब तक जलकल वाले आये बोले रूको...! अभी जल पाइप बिछाना है। आजकल जलकल वाले खोद रहे हैं। बनारस में जिधर देखो उधर खुदा है।
सुन्दर रचना .....आनंद आ गया ।
ReplyDeleteबढ़िया व्यंग्य है,...
ReplyDeleteवाह वाह।
ReplyDeleteपांडे जी!
ReplyDeleteब्यंग्य का बूटी छानकर एकदम सराबोर कर दिए हैं भाई!! का मालूम केतना लोंग के छूट जाई कबिताई.. मन परसन्न!!
यार-मित्र जब ना सुनलन, संपादक रोज लौटावे
ReplyDeleteरोज लिखी कविता चौचक, शायद अब छप जावे
मु्श्किल से ब्लॉग मिलल हौ ...
ओ हो .... अब ई का लिख दिए हो ... भाई ग़ज़ब कमाल करते हो ... बहुत मज़ा आइबे ...
जबरदस्त!!
ReplyDeleteछा जाने वाली कविता है देवेन्द्र जी, बनारस घुमा लाते हैं आप ऐसा लिख के।
इसका शुक्रिया कहूँ तो कम होगा। :)
’बनारस में जिधर देखो उधर खुदा है’ - सब बनारस वाले ये जानते हैं क्या?
ReplyDeleteस्मार्ट इन्डियन से सहमत :)
ReplyDeleteसुन्दर रचना ..शानदार व्यंग
ReplyDeleteशानदार व्यंग्य !
ReplyDeleteसुन्दर रचना, बहुत सुंदर व्यंग
ReplyDeleteमहाकवि की जय हो!
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