26.6.11

बहुत अच्छा शहर है क्या..!


पिछले पोस्ट मैं बनारस बोल रहा हूँ  में आपने समग्र बनारस दर्शन को पढ़ा। इस लेख को पसंद करने वालों में कई ऐसे लेखक भी थे जो यहाँ पहली बार आये। कई नियमित पाठक अपनी व्यस्तताओं के कारण नहीं पढ़ सके। मैं सभी का आभारी हूँ जिन्होने मेरा श्रम सार्थक किया। अरूण प्रकाश जी ने लिखा कि आज कल बनारस कि क्या दुर्गति हुई है इस पर आप ने प्रकाश नही डाला शायद इस समय आप बनारस मे नही है ....। उनके इसी कमेंट को आधार बनाते हुए प्रस्तुत है एक व्यंग्य गीत जो बनारस के यश गान के विपरीत बनारस की दुर्दशा का आंशिक चित्रण है। अभी इसमें खस्ता हाल सड़कों का वर्णन नहीं है। उसके लिए तो अलग से पुराण ही लिखना पड़ेगा।


बड़ी तारीफ करते हो
बहुत अच्छा शहर है क्या !

ये गंगा घाट की नगरी
ये भोले नाथ की नगरी
यहां आते ही धुल जाते
सभी के पाप की गठरी

जहां हो स्वर्ग की सीढ़ी
कहीं ऐसा शहर है क्या !

[बड़ी तारीफ करते हो....]

कहीं चोरी कहीं डाका
कहीं मस्ती कहीं फांका
यहां के भांड़ भौकाली
यहां हर बात में झांसा

पढ़ी क्या आज की खबरें
कहीं अच्छी खबर है क्या !

[बड़ी तारीफ करते हो....]

यहां चलती है रंगदारी
यहां मरते हैं व्यापारी
यहां मरना ही मुक्ति है
यहां जीना है लाचारी

यहां हर मोड़ पर गुंडे
शरीफों का बसर है क्या !

[बड़ी तारीफ करते हो....]

सड़कें जाम रहती हैं
कभी बिजली नहीं रहती
जनता चीखती मन में
जुबां से कुछ नहीं कहती

चढ़ी है भांग की बूटी
उसी का ये असर है क्या !

[बड़ी तारीफ करते हो....]

यहां हर घाट पर बगुले
मुसाफिर को कहें मछरी
लुटाते पुन्य का दोना
चलाते पाप की चकरी

कहाँ की बात करते हो
बनारस भी शहर है क्या !

[बड़ी तारीफ करते हो....]

38 comments:

  1. Mera anubhav v kuchh achchha nahi hai.Banaras ne aisa jakham diya hai jo bhulaye nahi bhulti.badhiya likha hai.

    ReplyDelete
  2. sahi re sahi.....
    khoob kahi

    badhaai !

    ReplyDelete
  3. बनारस की दुर्दशा को व्यक्त करती एक सार्थक कथा के लिए आभार...

    ReplyDelete
  4. चुभने वाला व्यंग्य है। वाकई, बनारस को देखकर कई विरोधाभास सामने आते हैं।

    ReplyDelete
  5. इसे गेय रचना को कई बार गाया। बहुत प्रवाहपूर्ण रचना द्वारा तीखा व्यंग्य किया है और कई बार मन को मथ डाला इस रचना ने।

    ReplyDelete
  6. लिखा तो आपने बनारस के लिये है ,पर क्या आपको ऐसा नहीं लगता है को कमोबेश हर शहर इन्ही हालात का सामना कर रहा है ..... लिखा बहुत अच्छा है आपने ......

    ReplyDelete
  7. Mai Banaras me rah chukee hun! Badhiya rachana hai!

    ReplyDelete
  8. यहां हर घाट पर बगुले
    मुसाफिर को कहें मछरी
    लुटाते पुन्य का दोना
    चलाते पाप की चकरी

    कहाँ की बात करते हो
    बनारस भी शहर है क्या !
    ज़बर्दस्त व्यंग्य !!
    हमारे उत्तर प्रदेश के अधिकतर शहरों का यही हाल हो रहा है

    ReplyDelete
  9. भैया यह तो सभी शहरों का हाल है मगर यहाँ जो मुक्ति की व्यवस्था है और कहीं है क्या ? काश्याम मरणात मुक्तिः!
    और यहाँ रहते हुए दूसरे शहरों के लोगों ने जो gahre jakhm दिए हैं वह भी क्या बनारस के हिस्से में आयेगा ?

    ReplyDelete
  10. देवेद्र बाबू! पंडित अरविन्द मिश्र जी की बात से सहमति जताते हुए यही कहुँगा कि अभी किसी पोस्ट पर पटना की गौरव गाथा और तरक्की पर मैंने लिखा था कि सिर्फ यही देखकर खुश हो लेना सही नहीं है, ज़रा उन मुख्य सड़कों को भी देखें जिन्हें बाकायदा कूड़ा घर में बदल दिया गया है..

    बनारस और इलाहाबाद, इन दो शहरों के साथ 30 साल का सम्बन्ध रहा है..लेकिन जितनी तेज़ी से बनारस को तरक्की करते देखा मैंने, उतना इलाहाबाद को नहीं..
    अच्छाई बुराई दोनों के साथ ही शहर हमें प्यारा लगता है.. चाहे बनारस हो, पटना हो या इलाहाबाद!

    आपकी कविता की बात तो रह गई.. दिल खुश हुआ!!

    ReplyDelete
  11. बनारस का ही क्या बहुत से शहरों का यही हाल है ..अच्छी प्रस्तुति

    ReplyDelete
  12. आपकी यह रचना एक कोशिश है समाज में जागरूकता फ़ैलाने की ...

    ReplyDelete
  13. भाई जान , बनारस ही नहीं , पृथ्वी पर कहीं भी स्वर्ग नहीं मिलेगा । आखिर है तो मनुष्य द्वारा विकसित स्थल ही । इसलिए सभी सांसारिक व्यसन होने लाज़मी हैं ।

    सच को प्रदर्शित करती रचना ।

    ReplyDelete
  14. बनारस एक यैसा शहर है जहां रिक्शा या टेम्पो ही मन में घूमते रहते हैं,हर वहाँ की चीज को इन्ही दोनों के प्रभाव में दबे रहना पड़ता है.इन्ही दोनों ने वातावरण को जाम कर दिया है.
    वैसे वहाँ की भांग और लस्सी काबिले तारीफ़ है.

    ReplyDelete
  15. तीखा व्यंग्य .....

    ReplyDelete
  16. यहां हर घाट पर बगुले
    मुसाफिर को कहें मछरी
    लुटाते पुन्य का दोना
    चलाते पाप की चकरी


    -बहुत पैना...सटीक!!

    ReplyDelete
  17. बनारस का ये रूप इमेजिन तो किया था आज आपकी रचना में साक्षात पढ़ लिया ...

    ReplyDelete
  18. गंगा घाट, भोलेनाथ की नगरी जैसी दो तीन विशेषताओं को हटा दें तो ये हर शहर की कहानी है।
    ये आपके लेखन की सफ़लता ही है कि हर कोई इसे अपने शहर से जोड़ कर देख सकता है।

    ReplyDelete
  19. - पिछली टिप्पणी से आगे -
    अभी जहाँ बैठा हूँ, साढे सोलह घंटों के बाद बिजली आई है।

    ReplyDelete
  20. जो अंग सुदृढ़ थे, वही ढीले पड़ते हैं।

    ReplyDelete
  21. बहुत बढ़िया!
    --
    बनारस शहर
    उल्टी मंगा!
    मन चंगा
    तो कठौती में गंगा!

    ReplyDelete
  22. बहुत जरूरी है कि हम अपनी कमियों को भी देखें ! चिंतनीय स्थिति कमोवेश हर जगह दिखाई देती है !शुभकामनायें !!

    ReplyDelete
  23. आदरणीय अरविंद जी, सलिल जी....

    बढ़ती जनसंख्या का दबाव झेलना बड़े शहरों, महानगरों की मजबूरी है। सुविधा, व्यवस्था भी उसी अनुसार होनी चाहिए। छोटे शहरों का भी विकास होना चाहिए ताकि शिक्षा, स्वास्थ जैसी सुविधाओं के लिए लोग महानगरों की ओर पलायित न हों। सिर्फ यह कहने से काम नहीं चलेगा कि बाहर वालों ने आकर इस शहर को गहरे जख्म दिये।

    एक तथ्य यह भी है कि छोटे शहरों से महानगरों की ओर पलायित होने वालों में छोटे शहरों से छनकर आने वानी प्रतिभाएँ भी होती हैं। ये प्रतिभाएँ महानगरों को समृद्ध भी करती हैं।

    ReplyDelete
  24. jaisa bhee hai banaras hai .....


    jai baba banras........

    ReplyDelete
  25. देव बाबू.....गीतरुपी ये पोस्ट दिल को छू लेने वाली है......हैट्स ऑफ आपको इस पोस्ट के लिए..........कमोबेश सभी शहरों की खास कर उत्तर प्रदेश में यही कहानी है , न बिजली है न पानी है......हो सके तो सड़कों पर पुराण लिखने की टाल करें.....नहीं तो ज़ख्मों के नासूर बन जाने का खतरा हो जाएगा|

    आपकी यहाँ दी गयी टिपण्णी से मैं १००% सहमत हूँ............कुछ छोटे शहरों का विकास होना ही चाहिए ताकि महानगरों से जनसँख्या का दबाव कम हो सके......एक बार फिर बहुत ही लाजवाब पोस्ट|

    ReplyDelete
  26. क्‍या बनारस,क्‍या बंगलौर और क्‍या भोपाल सबका एकसा ही है हाल।

    ReplyDelete
  27. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 28 - 06 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    साप्ताहिक काव्य मंच-- 52 ..चर्चा मंच

    ReplyDelete
  28. बहुत बढ़िया भाई जी यह तो बनारस पर सीधा प्रसारण हो गया,अच्छी पोस्ट.

    ReplyDelete
  29. यहां चलती है रंगदारी
    यहां मरते हैं व्यापारी
    यहां मरना ही मुक्ति है
    यहां जीना है लाचारी

    यहां हर मोड़ पर गुंडे
    शरीफों का बसर है क्या !

    बहुत अच्छा लिखा है ....
    बधाई...

    ReplyDelete
  30. यहां हर घाट पर बगुले
    मुसाफिर को कहें मछरी...

    बनारस ही नहीं हर शहर की एक सी ही दास्तान है यहाँ ....मगर अपना शहर अपना ही लगता है ...
    अपने शहर की दुर्दशा क्षोभ भी उत्पन्न करती है और ऐसी कविता लिखवा देती है ...

    ReplyDelete
  31. पांडे जी आपकी मनोभावना प्रतिनिधित्व करती है आम भावना की ,आपकी रहबरी काव्य [अभिव्यक्ति ] के माध्यम से प्रशंसनीय है , सहस ,सृजन बधाई दोनों को .../

    ReplyDelete
  32. लुटाते पुन्य का दोना
    चलाते पाप की चकरी---- बनारस की दुर्दशा के माध्यम से देश के हर शहर का दर्पण दिखाया है। सुन्दर रचना।

    ReplyDelete
  33. इस कविता में प्रस्तुत विशेषताओं से देश का कोई भी नगर अछूता रह सका है क्या ?

    ReplyDelete
  34. pande ji yeh tasveer ka dusra rukh hai.

    aur yahi haal kewal banaras ka nahi sabhi shehro ka hai.

    sunder abhivyakti.

    ReplyDelete
  35. हमारे परिवेश की दुदशा को अत्यंत ही प्रभावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करती एक सार्थक
    प्रस्तुति ...

    ReplyDelete
  36. vyawastha par bahut bhari vyang karti rachna padhna achha laga...
    ...sachhi tasveer ke baangi sabke liye dekhne aur mannansheel hai...aabhar

    ReplyDelete
  37. सार्थक प्रस्तुति

    ReplyDelete
  38. यहाँ मरना ही मुक्ति है ,यहाँ जीना है लाचारी .
    बद अच्छा बदनाम बुरा ,बिन पैसे इंसान बुरा ,
    काम सभी शहरो का यकसां ,बनारस का है नाम बुरा .अच्छी अभिव्यक्ति .

    ReplyDelete