सभी फेस
बुक की तरह होते हैं
कुछ छपते हैं
सिर्फ सजने के लिए
बड़े घरों की आलमारियों में
कुछ इतने सार्वजनिक
कि उधेड़े जाते हैं
खुले आम
बीच चौराहे
चाय या पान की दुकानो में
कुछ शीशे की तरह पारदर्शी
खुलते ही चले जाते हैं
पृष्ठ दर पृष्ठ
कुछ आइने की तरह
रहस्यमयी
करते
सबका चीर हरण।
कुछ जला दिये जाते हैं
बिन पढ़े
दफ्ना दिये जाते हैं
बिन खुले
कुछ ऐसे भी होते हैं
जो संसार का फेस चमकाने का
बीड़ा उठाये
बूढ़े घर के सिलन भरे कमरे में कैद
घुटते रहते हैं सारी उम्र
जिन्हें
बेरहमी से
चाट जाते हैं
वक्त के दीमक।
..............................
भावपूर्ण प्रस्तुति
ReplyDeleteगुड है जी!
ReplyDeleteबहुत खूब चिंतन ....शुभकामनायें !!
ReplyDeleteक्या बात है एक नयी दिशा मे चिन्तन , बधायी
ReplyDeleteकुछ ऐसे भी होते हैं
ReplyDeleteजो संसार का फेस चमकाने का
बीड़ा उठाये
बूढ़े घर के सिलन भरे कमरे में कैद
घुटते रहते हैं सारी उम्र
जिन्हें
बेरहमी से
चाट जाते हैं
वक्त के दीमक।
sahi kaha
गहन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteIt`s a very nice poem.The last lines r too sensitive,u r a poet and has entered into the damp rooms of many true men,who`s labourious works will change the world.
ReplyDeleteHere,i disagree with u....कुछ जला दिये जाते हैं
बिन पढ़े
दफ्ना दिये जाते हैं
बिन खुले
without reading,most face books are burned,not only few.
देव बाबू,
ReplyDeleteफेसबुक की मिसाल क्या खूब दी है आपने......बहुत ही शानदार पोस्ट.......भूले-भटके हमारे ब्लॉग पर भी आ जाया कीजिये|
गहन और प्रभावशाली चिंतन........ जिंदगी की सच्चाई है, इसमें...
ReplyDeleteफेस और बुक की शानदार जुगलबंदी ।
ReplyDeleteलेकिन फेसबुक के बारे में क्या कहेंगे ?
सही कह रहे हैं आप, हर फ़ेस एक बुक है।
ReplyDeleteकुछ मत पूछिए यी वक्त के दीमक साले बड़े खतरनाक होते हैं !
ReplyDeleteमजे की बात यही है कि ये अंतिम प्रकार के फेस ही फेसबुक पर नजर आते हैं।
ReplyDelete@Prm Ballabh Pandey...
ReplyDeleteYa...I agree with your disagree..most is better .
काश कोइ ठाकुर आए, देखे कि वक्त की दीमक ने उन चेहरों को खोखला नहीं किया और निकाली जाएँ किसी शोधार्थी के द्वारा!!
ReplyDeleteवाह कमाल की प्रस्तुति है । आज तक फ़ेसबुक की ऐसी परिभाषा पहले नहीं पढी कभी
ReplyDeleteअच्छा विश्लेषण
ReplyDeleteकाफी दिन हो गये थे आपको बांचे बिना !
ReplyDeleteहमेशा की तरह आपका अपना अंदाज मुखर हुआ है मेरे ख्याल से एक सच्चाई और भी जोड़ी जा सकती है इसमें ...
और कुछ फेस
मिटकर भी
जीवित रह पाते हैं !
सभी चेहरे पुस्तकों की तरह स्वयं को व्यक्त कर देते हैं।
ReplyDeleteबात बात में बड़ी गहरी बात कह डाली आपने..
ReplyDeleteवाह बहुत बढ़िया...
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत कविता
ReplyDeleteआखिरी टुकड़ा सबसे ज्यादा पसंद आया। बढ़िया लिखा है।
ReplyDeleteबहुत खूब ... सच है की सभी फेस किसी बुक की तरह होते हैं ... कुछ कहते .. कुछ छिपा कर कहते ... कुछ सीधे शब्दों में कहते ...
ReplyDeleteरचना को जबरदस्त अंदाज़ में बाँधा है ...
गहन भावपूर्ण अभिव्यक्ति जिसमें शब्द 'फेस' दिखला रहें हैं.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
achhi kahi
ReplyDeleteबढ़िया रचना के लिए बधाई|
ReplyDeleteफेसबुक को आधार बना कर साहित्य जगत की तस्वीर खींच दी है आपने...बहुत खूब!
ReplyDeleteएकदम सच है।
ReplyDeleteकाश, सभी फेस बुक की ही तरह होते।
ReplyDelete------
TOP HINDI BLOGS !
"फेसबुक" शब्द का इस्तेमाल करते हुए कितनी गहरी बात कह दी आपने...सच तो है, हर चेहरा एक किताब है...पर हर किताब का हस्र एक सा नहीं होता...
ReplyDeleteबहुत खूब !फेस बुक के बहाने सब कही अन कही कह दी साहित्य जगत की -सच मुच कुछ किताबें लाइ -ब्रेरी में चाटतीं हैं सिर्फ धूळ,कुछ होती हैं निर्मूल ,नया प्रतीक और बिम्ब विधान ओढ़े कविता नटी सबकी कह गई बात .
ReplyDeleteseveral faces !..Some are fake, some genuine...Beautifully written .
ReplyDeleteaap ki kavita part dr part khulti chali gai aur ek naya chehra samne aaya is duniya ka .aap ne to sach ke drshan kara diye .bahut sunder kavita
ReplyDeleterachana
मेरी सूचना वाकई टिप्पणी नहीं दिख रही ।
ReplyDeleteबहुत गहन बात कही आपने रचना के माध्यम से ।
ReplyDeleteवाह्ह अत्यंत रोचक शब्दचित्र सर।
ReplyDeleteशब्दशः सटीक अभिव्यक्ति।
सादर।
हृदय को बिंधती सराहनीय अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteगज़ब का दर्शन है।
सादर
बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक रचना देवेन्द्र जी।फेसबुक पर चमक कर भी कोई बड़ा तीर नहीं मार लेते लोग।मन के घरौंदों में छिपी व्यथाओं को कौन कलम लिख पाई कभी 🙏
ReplyDeleteगहन चिंतनपरक एवं लाजवाब भावाभिव्यक्ति ।
Deleteवाह!!!
सभी फेस
ReplyDeleteबुक की तरह होते हैं….
क्या बात है ?