17.12.11

वृक्षों की बातें



भोर की कड़ाकी ठंड में, घने कोहरे की मोटी चादर ओढ़े गहरी नींद सो रहे पीपल की नींद, नीम की सुगबुगाहट से अचकचा कर टूट गई। झुंझलाकर बोला, तुमसे लिपटे रहने का खामियाजा मुझे हमेशा भुगतना पड़ता है ! इत्ती सुबह काहे छटपटा रहे हो ?” नीम हंसा..वो देखो..! वे दोपाये मेरी कुछ पतली टहनियाँ तोड़ ले गये। देर तक चबायेंगे। पता नहीं क्या मजा मिलता है इन्हें ! पीपल ने उन्हें ध्यान से देखा और बोला, हम्म...ये हमें भी बहुत तंग करते हैं। कल एक गंजा फिर आया था मेरी शाख में मिट्टी का घड़ा बांधने । समझता है मैं घड़े से पानी पीता हूँ। तब तक आम ने जम्हाई ली...लगता है सुबह हो गई। तुम लोग इन दोपायों की छोटी मोटी हरकतों से ही झुंझला जाते हो ! ये तो रोज मेरी डालियों को काटकर ले जाते हैं। जलाकर आग पैदा करते हैं फिर घेर कर गोल-गोल बैठ जाते हैं। इसमे उनको आनंद आता है। उनकी बातें सुनकर, घने जंगली लताओं के आगोश में दुबके, पूरी तरह सूख चुके, पत्र हीन कंकाल में बदल चुके एक बूढ़े वृक्ष की रूह भीतर तक कांप गई ! उसने लताओं से फुसफुसा कर कहा...सुना तुमने..! तुम ही मेरे सहारे नहीं पल-बढ़ रहे हो। मैं भी तुम्हारे सहारे जीवित हूँ। जब तक लिपटे हो तुम मुझसे, इन दोपायों की नज़रों से दूर हूँ मैं। शाम को एक बुढ्ढा दोपाया, छोटे-छोटे बच्चों के साथ अक्सर यहां आता है। मैने सहसूस किया है कि वह मुझे देख बहुत खुश होता है और बच्चों को अपने सीने से लगा लेता है।

नीचे, पेड़ों के पत्तों से धरती पर टप टप टप टप अनवरत टपक रही ओस की बूंदों से निकलती स्वर लहरियों में डूबी एक बेचैन आत्मा, इन वृक्षों की बातों से और भी बेचैन हो, धीरे से सरक जाती है।  
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31 comments:

  1. वाह देवेन्द्र जी ! मूंह अँधेरे प्रकृति की गोद में जाकर पेड़ पौधों का वार्तालाप सुनना तो एक कवि हृदय मानुष का ही काम हो सकता है । बहुत खूबसूरती से पर्यावरण पर सार्थक सन्देश दिया है ।

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  2. यह रचना सबके बस की नहीं.....
    शुभकामनायें देवेन्द्र भाई!

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  3. लोग कहते हैं कि पीपल के पेड़ से दोपायों को बड़ी मोहब्बत है .......मरने के बाद भी नहीं छोड़ते .....प्रेत बन कर फुनगी पर बैठे रहते हैं .....बेचारे पीपल की पत्तियाँ थर-थर कांपती रहती हैं दिन-रात. पाण्डेय जी ! कल सुबह पीपल से पूछ कर देखिएगा, यह बात सच्ची है क्या?

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  4. उस बेचैन आत्मा के लिए ज़रूर हमारी बेचैनी है जो दिन-रात अपने अस्तित्व के खो जाने से भयभीत है !

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  5. बहुत बढ़िया
    आप के प्रकृति प्रेम को दर्शाती हुई रचना

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  6. सन्देश परक पोस्ट ..बहुत बढ़िया

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  7. प्रकृति का भी अपना राग है ..... कण कण में सुकूनदायी संगीत ,

    हैरानी होती सुबह की सैर पर निकले लोगों के कानों में इअरप्लग्स लगे देखकर ..... :(

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  8. कौशलेन्द्र जी...

    दोपायों को पीपल से बड़ी मोहब्बत है। घर के आस पास कहीं उगता दिख जाये तो घबड़ाकर मजदूर से कहते हैं..अरे, जरा इसको भी उखाड़ देना...! डरो नहींss कुछ नहीं होगा, बेकार की बातें हैं!!
    मजे की बात यह कि पीपल भी जानता है दो पायों की मोहब्बत। जो वाकई मोहब्बत करते हैं उन्हें बुद्ध बनाया है उसने।

    ..वैसे यह बेचैनी पीपल से आगे की है। आप यहीं रूक गये!

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  9. पहली दो लाईनों से भरम हुआ कि यह अल्लसुबह रजाई में दुबके दोपायों की कुनमुनाहट है ..आगे पता चला कि अरे यह तो कोई बेचैन आत्मा है जो इत्ती ठन्ड में पता नहीं किस बेचैनी के चलते बहार निकल निसर्ग से नाता जोड़ रही है ... :)

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  10. दोपायों ने आतंक मचा रखा है, काश सारे हरे पत्ते बूढ़े वृक्ष को घेरे रहें, यूँ ही। और हम भी उनसे कुछ सीख लें...

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  11. पेड़ों और प्रकृति का दर्द जैसे आपको बेचैन करता है वैसे ही दूसरों को भी करे तो प्रकृति का संरक्षण स्वंम हो जायेगा.

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  12. vrikshon kee bhasha , mann ka prawah- natmastak hun

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  13. पांडे जी!
    कभी कभी तो बहुत बकबक कर लेता हूँ मैं.. लेकिन कभी सिर्फ मौन..!!स्वीकारो, महानुभाव!!

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  14. बहुत सुन्दर,प्रकृति सरक्षणवादी रचना.
    लगता है ये येक काल्पनिक रचना है,मगर यथार्थ भी हो सकता है.ओशो ने कहा है,कि जब कोई किसी पेड को काटने के विचार से कुल्हाड़ी उठाने लगता है,तो उस पेड को यह पता चल जाता है.मधुर संगीत का पौधों पर अछ्छा प्रभाव पडता है,उनकी वृद्धि अछ्छी होती है.

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  15. बेचैनी बेचैन कर गयी ..

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  16. क्षमा करें वृक्ष-बंधु... अपने दोपाया भाइयों की इन तमाम ओछी हरकतों के लिए!!

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  17. वाह बेजोड़ कल्‍पना है। बढिया चित्रण।

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  18. सुंदर व नन को छूती प्रस्तुति पांडेय जी

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  19. देव बाबू आप वाकई कमाल हैं.......हैट्स ऑफ इस उत्कृष्ट पोस्ट के लिए|

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  20. बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  21. पहला पैरा अंतिम लाइन की शुरुवात ...मैंने 'सहसूस' किया, को अब मैं ऐसा ही पढूंगा , वो क्या है कि यह शब्द भले ही आपने गलती से टायप किया हो पर इसके मायने बनते हैं ! महसूस करने से अलग सहअस्तित्व / सहवास / सहभागिता /समागम से जोड़कर देखा 'सहसूस' करना ! 'एक अनुभूति जो साहचर्य से उदभूत हो' ! देवेन्द्र जी अगर आपने इसे सायास लिखा है तो साधुवाद और अगर अनजाने में तो साधु साधु कि अचेतन में भी आप बेहतर उत्पाद दे गये !

    बाकी कथा अत्यंत सन्देशपरक और बोधकारी है !एक्चुअली आपको अपना नाम 'बा-चैन आत्मा' रख लेना चाहिए जो बखुद शांत रहते हुए सोये हुओं को झंझोड देती है ,बेचैन कर देती है !

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  22. अली सा...

    आपने गलती बताई वह भी इस तरह
    हमको अपनी गलतियाँ अच्छी लगीं।

    मैं करूँ एहसास तो महसूस हो गया
    सह करें एहसास तो सहसूस हो गया
    क्या बतायें हम कि अनायास हो गया
    आपने जो अर्थ दिया उसमें खो गया

    महसूस के साथ जुड़ा शब्दकोष में
    सहसूस की बातें मुझे अच्छी लगीं।

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  23. पेडों की गुफ्तगू के बहाने मनुष्य-जीवन की कड़वी सच्चाई उजागर हो गयी...

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  24. लघु मगर बहुत कुछ कहती रचना .
    खूबसूरत

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  25. सामयिक और प्रासंगिक रचना.......बेहतरीन रचना का आभार.

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  26. सुन्दर सन्देश देती हुई उम्दा रचना लिखा है आपने! दिल को छू गई!

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  27. पहले भी कभी कहा था देवेन्द्र जी, ये बेचैनी एक संवेदनशील आत्मा की बेचैनी है जो सिर्फ़ अपने लिये या अपनों के लिये नहीं बल्कि दूसरों के लिये भी अनुभूति रखती है। बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट।

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  28. वाह! यह बोटानिकल बातचीत है या कविता?! लगता है बड़े मन से देखा है वृक्षों को!

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  29. बहुत पसंद आया ऐसा लिखना आपका!
    बहुत!

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