रविवार, 1 अप्रैल 2012, अंतर्राष्ट्रीय मूर्ख दिवस के अवसर पर बनारस के राजेन्द्र प्रसाद घाट पर हमेशा की तरह इस वर्ष भी 43वें महामूर्ख मेले का आयोजन हुआ। मेले का शुभारंभ सिद्ध संचालक पंडित धर्मशील चतुर्वेदी के मंच माईक से उच्चारित चीपों-चीपों की गर्दभ ध्वनि और नगाड़े की गूँज से हुआ। जर्मनी से आईं मिस बेला ने अलबेले अंदाज में शुभकामनाएं अंग्रेजी में पढ़ीं बाद में उसका हिंदी अनुवाद भी पढ़ कर सुनाया गया। प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य डा0 लक्ष्मण प्रसाद दुल्हन बने ठुमकते-लजाते तो उनकी पत्नी दूल्हे के भेष में इतराते-इठलाते नजर आईं। अशुभ लग्न सावधान ! की जोरदार घोषणा के साथ अगड़म-बगड़म मंत्रोच्चारण प्रारंभ हुआ। प्रसिद्ध गीतकार पं0 श्री कृष्ण तिवारी ने मंच पर खड़े हो ऊट पटांग मंत्रोच्चार से विवाह संपन्न करावाया। हर वर्ष तो यह विवाह मंच पर पहुँचते-पहुचते टूट जाता था लेकिन इस बार पति-पत्नी का रोल घर में ही अदल बदल हो जाने के कारण दोनो ने हमेशा एक दूसरे का साथ निभाने का वादा किया। इसके अलावा उनके पास कोई चारा नहीं था। उन्हें घर भी जाना था।
विवाह संपन्न हो चुकने के
पश्चात हास्य-व्यंग्य कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ। इसमें न जाने कहां कहां से आये
अड़े-बड़े कवियों ने
रात्रि 12
बजे तक खूब अंड-बंड
कविता सुनाकर हजारों मूर्ख समुदाय से ठहाका लगवाकर, खिसियाये कबूतरों, गंगा में तैरती मछलियों, दूर खदेड़ दिये गये सांड़ों और
भी न जाने कितने जीव जंतुओं को चमत्कृत किया। वैसे मंच पर भी एक सांड़ विराजमान थे जिन्हें बनारस के लोग उनके अथक
श्रम और अमेरिका काव्य पाठ रिटर्न होने के कारण बहुत बड़ा कवि सांड़ बनारसी मान
लेते हैं। काशी के बड़े बड़े साहित्यकार,
छोटका गुरू, बड़का गुरू,
भवकाली गुरू, आश्वासन गुरू मेरा मतलब सभी प्रकार के बुद्धिजीवी दो पाये यहाँ उपश्थित
होकर मूर्ख कहलाये जाने पर गर्व महसूस कर रहे प्रतीत हो रहे थे। वास्तव में कर रहे
थे या नहीं यह तो उनकी आत्मा ही जानती है। मैने अभी तक किसी को सामने से मूर्ख
कहने की हिम्मत जुटाने का प्रयोग नहीं किया है। आपने किया हो तो बता सकते
हैं। इस मेले में मूर्ख कहाने में गर्व महसूस करने के पीछे वही कारण हो सकता है
जिससे हमारे देश में भ्रष्टाचार पल्लवित है। अरे वही वाला भाव... जैसे सब, वैसे हम,
काहे करें शरम ! कवि भी चुन चुन कर ऐसी कविताएं सुना रहे थे जो मूर्ख को भी समझ में आ
जाय। यह अलग बात है कि तालियाँ मिलने पर कवि महोदय खुश हो हो कर बनारस की जनता को
बुद्धिमान बताने का कोई मौका भी नहीं छोड़ रहे थे।:)
सभी कवियों का तो नहीं लेकिन मेले में सतना, मध्य प्रदेश से आये कवि अशोक सुन्दरानी जिनको सर्वश्रेष्ठ कवि का पुरस्कार भी मिला, उनकी कविताई की कुछ झलक यहाँ प्रस्तुत करने का प्रयास करता हूँ। वे सबके दिवंगत हो चुकने के बाद अंत में रात्रि 12 बजे के करीब मंच पर आये और अपनी काव्य प्रतिभा से सबको मस्त कर दिया। इससे पहले जबलपुर से पधारीं कवयित्रि अर्चना अर्चन ने बुजुर्गों को वैलिडिटी खतम, आउट गोइंग बंद कह कर मजाक उड़ाया था तो सबसे पहले उन्होने मंच पर खड़े होते ही बनारस के बुढ्ढों की तारीफ में कसीदे पढ़ने शुरू कर दिये...
जलते हुए कोयले पर बाई दवे अगर सफेद राख जमा हो जाय अर्चना तो यह भ्रम कभी मत पालना कि अंदर आग नहीं होती।
इतना सुनना था कि पूरी भीड़ उछलकर हर हर महादेव का नारा लगाने लगी। उन्होने आगे कहा...
ये जितने बुजुर्ग तुम्हारे सामने बैठे हैं अर्चना, ये आदरणीय तो हो सकते हैं लेकिन विश्वसनीय कतई नहीं हो सकते। बनारस के बुजुर्ग यदि सिगरेट पीते हों...सिगरेट का तंबाकू खतम हो जाये तो आधे घंटे तक फिल्टर में मजा लेते हैं। इसीलिए कहता हूँ... हे अर्चना !
मत उलझना कभी बनारस के इन बड़े-बूढ़ों से
ये सुपारी तक फोड़ देते हैं, अपने चिकने मसूढ़ों से।
इसके बाद उन्होने ढेर सारे चुटकुले सुना कर लोगों को मस्त कर दिया, साथ ही एक अच्छी व्यंग्य कविता भी सुनाई जिस कविता ने उन्हें मेले का सर्वश्रेष्ठ कवि बनाया। कविता का शीर्षक था 'जूता'। मैं चाहता तो था कि उसे यहाँ चलाऊँ ! मेरा मतलब है कविता लिख कर पढ़ाऊँ मगर ई डर से नहीं लिख रहे हैं कि कहीं आप हमारा ब्लगवे पढ़ना ना छोड़ दें..अपनी पढ़ा-पढ़ा कर झेलाता ही था अब दूसरों की भी लम्बी-लम्बी झोंक रहा है!:)
मोबाइल से टेप किया हुआ पॉडकास्ट लगा रहा हूँ । कुछ चुटकुलों साथ ही 'जूते' का भी मजा लीजिए।
(चित्र जागरण याहू डाट काम से साभार। मेले के संबंध में अधिक जानकारी जागरण समाचार से प्राप्त कर सकते हैं)
मोबाइल से टेप किया हुआ पॉडकास्ट लगा रहा हूँ । कुछ चुटकुलों साथ ही 'जूते' का भी मजा लीजिए।
badhiya magar aapne baki jaankari aur di hoti to maja aa jata
ReplyDeleteनीचे जागरण लिंक में क्लिक करें तो पूरी जानकारी मिल जायेगी।
Delete'मध्यप्रदेश' वाले ने 'मध्य' प्रदेश को लक्ष्य कर कवितायें बांचीं ! अर्चना के राग पर बूढों की आग की शेष रही संभावनाओं को ध्यान में रखकर जूतम पैजार का इरादा पाण्डेय जी ने त्याग दिया :)
ReplyDeleteप्राचीन मध्यप्रदेश(वर्तमान छत्तीसगढ़) वाले भी मध्य प्रदेश का दर्द तुरत भांप लेते हैं!
Delete'मध्य' प्रदेश को दर्द स्थान क्यों मान रहे हैं आप :)
Deleteमध्य प्रदेश 'को' नहीं मध्य प्रदेश 'का' दर्द..मेरा मतलब छत्तीस गढ़ वालों को तो अधिक होगा जो कभी मध्य प्रदेश 'में' रहते थे।:)
Deleteकहीं इंसान के मध्य वाले प्रदेश के दर्द के बारे में तो बात नहीं हो रही ...
Deleteहरी ओम! हरी ओम!
Deleteझील को फैला के यूँ समुंदर न करो
हम तो कपड़े में हैं, दिगंबर न करो।
Aisabhi hota hai ye pata nahee tha!
ReplyDelete...बुझे कोयले में अंदर कितनी आग है यह तो हाथ जलने के बाद ही पता लगता है !
ReplyDeleteजूता कविता किसी और ब्लॉग पर लिखकर पढ़वा दी जाये। बहुत होगा त उसका बहिष्कार हो जायेगा। :)
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteजय हो!!!!!
कुछ नया पता चला ... शुक्रिया ... :)
ReplyDeleteसटीक प्रस्तुति ।
ReplyDeleteविद्वानों से डर लगता है , उनकी बात समझना मुश्किल ।
आशु-कवि कह देते पहले, भटकाते फिर पंडित बे-दिल ।
अच्छा है सतसंग मूर्ख का, बन्दर का नकुना ही काटे -
नहीं चढ़ाता चने झाड पर, हंसकर बोझिल पल भी बांटे ।
सदा जरुरत पर सुनता है, उल्लू गधा कहो या रविकर
मीन-मेख न कभी निकाले, आज्ञा-पालन को वह तत्पर ।
प्रकृति-प्रदत्त सभी औषधि में, हँसना सबसे बड़ी दवाई ।
अपने पर हँसना जो सीखे, रविकर देता उसे बधाई ।।
कुछ ज्यादा हो गया है ।
माफ़ करना ।।
बहुत बढ़िया। आभार कविराज।
Deleteaap ka lekhan hi
Deletekavita gungunane par
majbuur kar deta hai |
saadar
महामूर्ख सम्मेलन के बारे में पढ़ते पढ़ते अपनी आई क्यू पर शक सा होने लगा है । :)
ReplyDeleteजय हो बनारस के बुड्ढों की ।
कुछ पंक्तियाँ चुरा ली हैं , अपनी आई क्यों बढ़ाने के लिए :)
Deleteयार पोस्ट आर्काइव क्यों नहीं लगाते !
वाह भाई देवेन्द्र जी ... मुर्ख लोगो की पहचान में आप माहिर है ... दर लगता है ॥ पता नहीं आप किसे मुर्ख बना दे ॥ हा हा ॥ सुंदर पोस्ट .
ReplyDeleteअंड बंड क्या ल*......
ReplyDeleteतो आप यहाँ पर थे जब हम अर्थ आवर मना रहे थे ...
वो सुपारी तोड़ने की मसूढ़ों वाली बात प्रामाणिक है -कतई संदेह नहीं ?:)
अंड बंड क्या लम्बा है?
Delete..जी बहुत लम्बा था, इसीलिये पूरा लिखे नहीं पॉडकास्ट लगा दिये सुनिये तो सही:)
तो मध्यप्रदेश वाले बनारस में भी डंडा गाड़ आए। जय हो।
ReplyDeleteमध्यप्रदेश पर बनारस क्या दुनियाँ फिदा है:)
Deleteतो आपभी वहां पहुँच ही गए थे , इसीलिए तो मै कहता हूँ अनुभव हमेशा बोलता है .
ReplyDeleteदेवेन्द्र जी,
ReplyDeleteबनारस की लहालोट सैर करवाने का बहुत बहुत शुक्रिया। आधे घंटे मस्त कविता पाठ रहा। रह रह कर कोई भड़का-भड़की भी चल रही थी जिससे माहौल और जीवंत हो गया :)
इस बात की तो दाद देनी पड़ेगी कि आप अपनी पसंद की पोस्ट पर पहुँच ही जाते हैं भले से महीनो ब्लॉग में झांका न हो!
Deleteदरअसल जब सुंदरानी जी कविता पाठ कर रहे थे तो दो बार विघ्न पड़ा। एक बार एक पागल सा दिखने वाला शख्स कुर्ता उतार कर, अंगोछा पहन कर सीढ़ी पर उछल कूद करने लगा। लोग कहते बैठ जाओ कविता सुनने दो तो वह कहता तू चुप रहा हमहूँ कविता सुनत हई..बड़का आयल हौवा कविता सुने वाला। बवाल ढेर मचा तो लोगों ने किसी तरह उसको वहाँ से हटाया।
दूसरी बार तो एक चैनल वाला बीचों बीच आ कर जब फोटू खींचने लगा तो सामने बैठे दर्शकों ने उसे मना किया। लोग कविता की मस्ती में इत्ते डूबे हुए थे कि उन्हें उसका सामने आ कर फोटू खींचना भी खल रहा था। फोटोग्राफर भी अपने पत्रकारिता की ताव में था। उसे इस बात का जरा भी एहसास नहीं हो रहा था कि लोगों को उससे तकलीफ हो रही है और कविता सुनने में विघ्न हो रहा है। वह नहीं माना तो दो-चार लोग गुस्से में आकर उसे कोने में हींच ले गये..! उसका क्या हाल किया यह तो ठीक ठीक नहीं जानता लेकिन हाँ उसके बाद वह कहीं नज़र नहीं आया। यहाँ के लोग अपनी मस्ती के आगे किसी की परवाह नहीं करते फिर चाहे वह कित्ता ही बड़ा आदमी क्यों न हो:)
:)
Deleteये बनारसी बूढ़े कोऊ कौन थे वहाँ ... भगवान इनसे बचा के रखे कवित्रियों को ...
ReplyDeleteकिस्मत वाले हैं ऐसे सम्मेलनों में जाने का सौभाग्य मिल रहा है आपको ...
बहुत ही बढ़िया......बनारस के बूढों से सावधान .....:-))
ReplyDelete:) chaliye kahin to ye murkha utsav mane ja rahe hain.accha laga ye post padhkar....
ReplyDeleteआनंद की क्या बात करें...भाई ..परम आनंद की प्राप्ति हो गयी...आप की जय हो...
ReplyDeleteनीरज
काश, हम भी वहाँ होते..
ReplyDeleteगुरू, ईर्ष्या हो रही है तुमसे
ReplyDeleteबहुत खूब ।
ReplyDeleteबेहतरीन बनारसी रंग में लिखा उत्कृष्ट व्यंग्य लेख |आभार
ReplyDeleteआकर्षक...
ReplyDeleteजागरण लिंक तो खुला नहीं पर शादी और अड़ मड कवियों की कविताओं का खूब आनंद लिया ....
ReplyDeleteउम्मीद है इस आयोजन से बेचैन आत्मा को जरुर शांति मिली होगी .....:))
अंदाज़े बयां यह क्या कहने
ReplyDelete:) जय हो
ReplyDeleteसुंदर चित्रों से सजी अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteकाश हम भी वहां होते।
बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबेहतरीन रंगों से सजी प्रस्तुति
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति....देवेन्द्र जी! बनारस का रंग ब्लाग पर प्रस्तुत करने के लिये बहुत बहुत बधाई...मुझे लगा मैं वहीं हूँ.....
ReplyDeleteकाश हम भी होते देवेन्द्र भाई !
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
आज लगता है मुर्ख सम्मलेन में आप नहीं जा रहे ......
ReplyDelete