4.6.12

अपना अपना सबेरा


एक सुबह इनकी


सूरज नवजात शिशु सा और लहरें गोया स्वागत में हुलकना शुरू ही कर रही हों ! नदी के उस छोर से इस छोर तक सुनहले पुल सा पसर गया है आलोक !





नाव पर पैसे और बे पैसे वालों की सुबह है ये जबकि बाकी जनता को नगर निगम और उसकी जलापूर्ति से कोई लेना देना नहीं !


नदी घाटी योजनाओं का नियंत्रण / सुपरविजन और खर्चे का सारा दारोमदार श्वानों के हाथ में है!


जल ठहर सा गया है विदेशी मेहमान को आराम की ज़रूरत है ! उसके आराम और चप्पू पे चिपकी हथेलियों से छूट रहे     पसीने से कुछ पेट पलेंगे !


परिंदों को उम्मीद दानों की और दाने वाले हाथ पुण्य की लालसा में !

एक सुबह इनकी



बिजली के नंगे तारों संग जीना मरना स्तब्ध पेड़ कुछ डरे डरे !



आम (की) उम्मीद खास सबके लिए !



एक सुबह इनकी


                          परिंदों को दाने बिखेरती पुण्यात्माओं का इंतज़ार है !


कौओं की जो सुबह हुई तो गौरैयों की सुबह नहीं !


खिड़की पर के ए सी और बरामदे पर खड़ी बाइक का स्वाद इस जन्म में तो मिला नहीं, स्तब्ध मोर !

एक सुबह इनकी






एक सुबह इनकी


                 जब पेड़ की मोटी शाखों से पत्तों संग टहनियाँ टपकेंगी, वह सुबह कभी तो आयेगी!


फ्रेश एयर, ऑक्सीजन की तलाश तुम्हें होगी हमे तो रोजी रोटी का सवाल है !

नोटः अली सा ने एक-एक चित्र की नम्बरिंग करते हुए उन पर सुंदर कमेंट किये। मैने उन्हें यथा स्थान पहुँचा दिया। इस पोस्ट पर आयें कमेंट्स से श्रम सार्थक हुआ। ..आभार।

63 comments:

  1. फोटो तो सुन्दर हैं,मगर लगता है बहुत गर्मी के कारण आप लिखना भूल गये हैं.

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  2. वाह क्या फोटो हैं ? महराज आपके हुनर का कमाल है या कैमरे का या बनारस की सुबह का ?

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    1. कैमरा तो एकदम झण्डू है। यह बनारस की सुबह का ही कमाल है। आप सुबह निकलिए तो घर से। चमत्कारिक परिवर्तन होंगे।:)

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  3. बनारस घूमने का आनन्द आपके साथ ही आयेगा।

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  4. wahhh kya tasvire hai sir ji......maja aa gya ji

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  5. सबकी अपनी अपनी सुबह है .....और सबके अपने अपने कर्म हैं ....जीवन का एक एक पल अद्भुत है .....सबके लिए ....यही कुछ कह रहे हैं आपके यह सुंदर चित्र ...!

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    1. बहुत सुंदर। इसी अर्थ की तलाश थी। कर्मों में फर्क भी नज़र आता है। कुछ कर्म खा कर पचाने के लिए, कुछ खा पाने के लिए। सूरज एक ही निकलता है। सबके हिस्से अपना-अपना सबेरा आता है।

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  6. फिर सब्र से बैठूँ,
    एक नुक्कड़ पर
    कि अगला नुक्कड़,
    भगा नहीं जा रहा

    फिर सुकून से देखूँ,
    एक ही अशोक गाछ
    कि आमों का गुच्छा,
    एक दिन में नहीं बौरा रहा

    लौट सकूँ एक रोज
    अपने उसी पुराने ठांव,
    रोजाना साँस ले मुझमे,
    रोजनामचों की तरह

    कभी यूँ भी तो हो।


    :)
    चित्र बहुत सुन्दर हैं।

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    1. होगा अविनाश भाई होगा। आप आयेंगे इस बार तो मुझसे मिले बिना नहीं जायेंगे।

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  7. महाराज,
    इतने ख़ूबसूरत चित्र खींचे हो और अभी सतीश सक्सेना जी के कैमरे पर नजर है? this is not fair:)

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    1. धन्यवाद संजय जी। नज़र तो आपके फत्तू पर भी हैं मगर मिल थोड़े न जायेगा।:)

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    2. गुरुवर,
      फत्तू तो कब से बनारस की सड़कों के ठीक होने के इन्तेजार में है, ऐसा सूना गया है :)

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    3. हा हा हा...आजादी के पहले से खराब है।:)

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  8. इस फन के तो आप महारथी निकले ..
    कमाल के चित्र .. सुबह अपनी अपनी

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    1. मेरी कोई महारथ नहीं। यह बनारस की सुबह और आप सब का आशीर्वाद है।

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  9. १. आप एक अच्छे फोटोग्राफर भी हैं।
    २. तस्वीरें बहुत कुछ अपने आप बयां करती हैं।
    ३. अंतिम फोटो सबसे पहला है।

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    1. धन्यवाद सर जी। फोटोग्राफी का ए बी सी डी नहीं जानता। ये तो कोरी मन की भावनायें हैं जो किसी न किसी रूप में प्रकट हो जाती हैं।

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  10. एक दिन मैं भी कैमरा लेकर सुबह-सुबह निकल ही पड़ता हूं। देखूं कलकत्ते की सुबह बनारस से किन मामलों में एक है या अलग!

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    1. रोज सुबह टहलिये, सूर्योदय देखिये, कैमरा अपने आप उठा लेंगे। हुगली नदी पर..दूर हावड़ा ब्रिज , नैया पर बैठ, सूर्योदय का नाजारा..क्या खूब तश्वीरे आयेंगी! :)

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  11. पहला चित्र और आखिरी से तीसरा कलात्मक कोटि की फोटोग्राफी का नमूना है|

    ...आखिरी चित्र काश आखिरी होता...!

    आमों की तरुणाई का मौसम है !

    बुजुर्ग भी युवा बनने की राह पर...!

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    1. ...बच्चे और परिंदे यकसा मगन हैं !

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    2. आभार आपका..सुंदर कमेंट के लिए।

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  12. इत्ते सारे चित्र लगा के कन्फ्यूजियाय दिये हैं आप हमको !

    चित्र एक...
    दूर पेड़ों से रात का खुमार अभी उतरा नहीं है , सूरज नवजात शिशु सा और लहरें गोया स्वागत में हुलकना शुरू ही कर रही हों ! नदी की उस छोर से इस छोर तक सुनहले पुल सा पसर गया है आलोक !

    चित्र दो...
    नाव पर पैसे और बे पैसे वालों की सुबह है ये जबकि बाकी जनता को नगर निगम और उसकी जलापूर्ति से कोई लेना देना नहीं !

    चित्र तीन...
    नदी घाटी योजनाओं का नियंत्रण / सुपरविजन और खर्चे का सारा दारोमदार श्वानों के हाथ में है !

    चित्र चार ...
    जल ठहर सा गया है विदेशी मेहमान को आराम की ज़रूरत है ! उसके आराम और चप्पू पे चिपकी हथेलियों से छूट रहे पसीने से कुछ पेट पलेंगे !

    चित्र पांच ...
    परिंदों को उम्मीद दानों की और दाने वाले हाथ पुण्य की लालसा में !

    चित्र छै और आठ ...
    बिजली के नंगे तारों संग जीना मरना स्तब्ध पेड़ कुछ डरे डरे !

    चित्र सात और नौ ...
    आम (की) उम्मीद खास सबके लिए !

    चित्र दस ...
    परिंदों को दाने बिखेरती पुण्यात्माओं का इंतज़ार है !

    चित्र ग्यारह ...
    कौओं की जो सुबह हुई तो गौरैयों की सुबह नहीं !

    चित्र बारह ...
    खिड़की पर के ए.सी. और बरामदे की बाइक का सुख इस जन्म तो मिला नहीं , स्तब्ध मोर !

    चित्र तेरह और चौदह ...
    इनकी बीबियाँ और कितना झेलेंगी इन्हें ? घर पे सुबह सुबह चाय कौन बनायेगा इन निठल्लुओं के लिए ? वैसे भी इन्हें खूबसूरत लड़कियां की निगरानी के वास्ते यहां आना ही था वर्ना घूमना तो सिर्फ बहाना था !

    चित्र पन्द्रह और सोलह ...
    रात को खाट पर पड़ी डांट ने लाट साहब को भागने पे मजबूर कर दिया !

    चित्र सत्रह ...
    जब पेड़ की मोटी शाखों से पत्तों संग टहनियां टपकेंगी वो सुबह कभी तो आयगी !

    चित्र अठारह ...
    फ्रेश एयर / आक्सीजन की तलाश तुम्हे होगी , हमें रोजी रोटी का सवाल है

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    1. चित्रों का गज़ब शब्दांकन :-)

      देवेन्द्र जी ,एक बार में तीन-चार चित्र ही लगाया करें ,पढने वाले को कन्फ्यूज़न हो ही जायेगा :-)

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    2. अली सा....

      आभार आपका। एक-एक तश्वीर पर आपकी दृष्टि को यथा स्थान पहुँचा दिया है। समग्र के अर्थ अभी आपने नहीं लिखे।:)

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    3. कुछ खास तस्वीरें आपने बचा ली हैं :) ऐसा पक्षपात क्यों :)

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    4. हम वहाँ बस दिख ही नहीं रहे हैं। कोई अपने ऊपर इतना तीखा कमेंट लिखता है क्या?
      दूसरा खतरा यह कि (14) ने देख लिया तो कल से सुबह की चाय नसीब नहीं होगी।:)

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  13. वाह बहुत ही सुंदर चित्र हैं जीवन से परिपूर्ण ।

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  14. हर चित्र अपने आपमें कविता है ...
    बधाई देवेन्द्र भाई !

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    1. बहुत दिनो बाद आपका प्रोत्साहन मिला। तबियत खुश हो गई।

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  15. सुबहे बनारस! ये सुबह सुहानी है! धन्यवाद!

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  16. इनकी उनकी सबकी सुबहें देखी --मगर आप कहीं नहीं दिखे !
    आप भी हमारी तरह बस देखते ही रहे और आत्म विभोर होते रहे !
    सुंदर सुबह की सुन्दर तस्वीरें .

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    1. तश्वीरें देखकर आपको अपना आत्म विभोर होना याद आ गया! यह मेरे खुश होने के लिए पर्याप्त है।

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  17. बेहद खूबसूरत और मायनेखेज़ फोटोग्राफ्स....

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  18. नैनाभिराम सुबह..

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  19. बनारस में गर्मी मकी सुबह भी कमाल की है ...
    आपने अपनी सुबह का ज़िक्र नहीं किया इन सब के बीच ...

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    1. इन सब के बीच हूँ तो अपनी सुबह का जिक्र क्या करना!

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  20. सुंदर भाव लिए सुहानी सुबह ...

    काव्यात्मक चित्र ...
    और सभी कमेंट्स ने मिल कर चित्रों को शब्द दे दिए.

    सभी को साधुवाद.

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    1. सही लिखा आपने। सभी कमेंट्स ने मिलकर चित्रों को शब्द दे दिए।..आभार।

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  21. सुबह एक, अंदाज़ अनेक... सुन्दर बोलती सी तस्वीरें... आभार

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  22. हाँ! अब आया मज़ा! बोलते चित्र, पूरक कैप्शन.....। कैमरे की आँख से अधिक सम्वेदनशील पाण्डॆय जी के मन की आँखें। आनन्दम आनन्दम् ....

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    1. बहुत आभार आपका डाक्टर साहब..मन की आँखें भी देख लीं...!

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  23. तस्वीरें तो शानदार हैं..और सुबह भी, यहाँ की सुबह तो बस शाम जैसी ही दिखती है. फरक इतना है कि कुछ जाते हुए लोग आते हुए दिखते हैं.

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    1. सुबह कैसे प्यारी होगी
      चाँद से जब यारी होगी!:)

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  24. अद्भुत संयोजन.... बस वाह!
    सादर।

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  25. तस्वीरें तो सुंदर हैं ही...मगर अब ऐसी सुबाह देखने को दिल तरस जाता है क्यूंकि यहाँ की शाम और सुबह में कोई खासा फर्क नज़र नहीं आता।

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    1. रात को सूरज उगाते हैं लोग
      धूप में चौचक नहाते हैं लोग।:)

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  26. सुबह की खूबसूरती तस्वीरों में कैद करना एक अच्छा प्रयास है ...
    किन्तु निहारते मौन बैठना अपने आप में ध्यान है !
    अच्छी पोस्ट !

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    1. निहारते मौन बैठना ध्यान है।..वाह!

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  27. चित्ताकर्षक और मनोहारी दृश्य!

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  28. आशाओं की नई रोशनी लिए सुबह.

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  29. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....


    इंडिया दर्पण
    पर भी पधारेँ।

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  30. बहुत मनोहारी है यह सुबह और इसका दृष्य-विधान !

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  31. अभी तक तो कहावत ही सुनते आये थे की बनारस की सुबह और अवध की शाम.....अवध की शाम तो लखनऊ में देखी है पर आज बनारस की सुबह आपके साथ देख ली....सभी चित्र बहुत सुन्दर हैं आपके कमेंट्स के साथ तो चार चाँद लग गए.....पहला वाला सूर्योदय का सबसे अच्छा लगा।

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  32. आप कितनी खूबसूरत तस्वीरें लगाते हैं...बस देखते रह जाते हैं हम तो.. :)

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