17.8.12

वजन



बचपन में 'कागज की नाव'
लड़कपन में 'ताश के महल'
जवानी में 'बालू के घर'
हमने भी बनाए हैं
इनके डूबने, गिरने या ढह जाने का दर्द
हमें भी हुआ है
राह चलते ठोकरें हमने भी खाई हैं
मगर नहीं आया
कभी कोई 'शक्तिमान'
मेरी पीठ थपथपाने
लोगों ने उड़ाया है मेरा भी मजाक
मगर नहीं आया कभी
किसी दूसरे ग्रह का प्राणी
करने मुझ पर 'जादू'
मेरे घर में भी बहुत सी मकड़ियाँ हैं
मगर नहीं काटा मुझे
कभी किसी मकड़ी ने
नहीं बनाया मुझे
'स्पाइडर मैन'

और अब 
मैं जान गया हूँ
जीवन दूसरों की शक्ति के सहारे नहीं चलता
हम जितने हल्के होते जाएंगे
उतने बिखरते चले जाएंगे 

धरती पर टिके रहने के लिए जरूरी है
वजनी होना

और मैं
यह भी जान गया हूँ
कि मनुष्य का वजनी होना
'गुरूत्वाकर्षण' के  सिद्धांत पर नहीं
बल्कि चरित्र के उस
'गुरू-आकर्षण' के सिद्धांत पर निर्भर करता है
जिसके बल पर
'इंद्र' का आसन भी
पत्ते की तरह कांपने लगता है।

.....................................................

नोटः कविता पुरानी है, चित्र गूगल बाबा का।

26 comments:

  1. बहुत सही कहा आपने - चरित्र की गुरुता का कर्षण और वज़नों के छक्के छुड़ा देता है -और वही है मनुष्य की श्रेष्ठता का आधार !

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  2. सबसे वज़न तो चरित्र का होता है,पर अफ़सोस आज वही सबसे हल्का हो गया है |

    ...शारीरिक-बल वजनी या बलवान होने का एकमात्र मापदंड नहीं है.

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    1. सबसे वज़न=सबसे ज़्यादा वज़न

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  3. काश यही हमारे राष्ट्र नायक समझ जाते ...

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  4. बड़े गूढ़ अर्थ छिपे है.......
    बैटमैन का ज़िक्र नहीं किया...????
    सुन्दर रचना..

    अनु

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  5. Bahut sundar rachana...gar bura na mane to ek baat kahun? 'Taas"ke badle "taash"likhen.

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    1. बना दिया..धन्यवाद। वैसे.. बोलचाल में तास, ताश दोनो कहते हैं। शब्दकोश में दोनो समान अर्थ में दिया है।

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  6. कविता में प्रयुक्त बिम्ब ने इसके अर्थ को सघन बना दिया है। इंसान के व्यवहार की छोटी-छोटी बातें ही उसके चरित्र का आईना होती है। दुर्बल चरित्र वाला उस सरकंडे के समान है जो हवा के हर झोंके से झुक जाता है। और सबल चरित्र से तो, जैसा आपने कहा है, इंद्र का आसन भी डोलने लगता है।

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  7. काफी लम्बे अरसे से इन्द्र का सिंहासन पूरी तरह स्थिर ही है
    चिंतनीय

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  8. बहुत अच्छी बात जान गए हैं पाण्डे जी . :)
    आज चरित्र निर्माण की ही सबसे ज्यादा ज़रुरत है .

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  9. हमसभी केवल अपने इसी वजन को भारी करते रहें तो सारी समस्याएं हलकी हो जायेंगी .

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  10. बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (18-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  11. इंद्र के पास बहुत फार्मूले हैं, अब पहले से भी ज्यादा :)

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  12. ऐसी पुरानी कविता कहाँ छुपी हुई थी अब तक हमारी नज़रों से......शानदार ।

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  13. बहुत अच्छी रचना! सोलह आने सच !!!

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  14. कविता पुरानी है!
    कविता अच्छी है!
    कविता आज भी अच्छी है!
    कविता नयी है!
    अच्छी चीजें कभी पुरानी नहीं होतीं! :)

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  15. बहुत गहरी बात कही है कविता के माध्यम से सतचरित्र को तो कोई भी शक्ति डिगा नहीं सकती वो सभी आकर्षणों से ज्यादा वजनी होता है ----बहुत पसंद आई आपकी ये रचना

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  16. गुरुता खींचती है, आकर्षण खींचता है, बहुत सुन्दर कविता..

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  17. गुरु - आकर्षण !
    बढ़िया.

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  18. वाह वाह ...वाह .....
    कविता भी वजनी है शीर्षक की तरह .....
    चुराने लगे तो चुरा नहीं हुई ....:))
    अब आप ही भेज दें अपने पते और तस्वीर के साथ ....

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  19. kaagaz ki naaw se charitr ki ghraai tak kwita ko pahuchane ke liye aabhaar

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  20. काफी वजनी कविता और गुरु आकर्षक भी ।

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  21. कविता चकाचक है। चित्र च!
    अगली पोस्ट भी अच्छी है।उसमें टिप्प्णी वाला विकल्प खोलिये न! :)

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