फेसबुक में अक्षरों को पढ़ता हूँ। नेताओं पर लिखे स्टेटस को पढ़ता हूँ तो लगता है नेता भी मच्छर की तरह हैं। अक्षर-अक्षर मच्छर नज़र आते हैं। सोचा क्यों न इन पर एक कविता लिखी जाय!
नेता
ये नये किस्म के मच्छर हैं
कुछ उल्टे-पुल्टे अक्षर हैं
ये सीधे हैं तो 'गुंडे' हैं
गर उलट गये तो 'डेंगू' हैं।
ये ठहरे पानी में उगते
फिर अनायास बढ़ जाते हैं
ये जिनको काटा करते हैं
वे मिट्टी में गड़ जाते हैं।
ये पहले चरण पकड़ते हैं
फिर सीने से लग जाते हैं
जब असली नेता बनते हैं
तब खून चूसकर जीते हैं।
ये भेष बदलना जाने हैं
ये देश निगलना जाने हैं
मरते नहीं आलआउट से
ये ज़हर निगलना जाने हैं।
पहले भी थे, थोड़े थे
नासूर नहीं बस फोड़े थे
जो गुंडे थे वे गुंडे थे
जो मच्छर थे वे मच्छर थे।
वे जिनके एक इशारे पर
हम शीश कटाया करते थे
अपनी इस पावन धरती पर
ऐसे नेता भी रहते थे।
जनता से पहले खुद बढ़कर
वे अपनी जान लुटाते थे
बस एक नस्ल के होते थे
गर नेता थे तो नेता थे।
तुम ढूँढो ऐसी नस्लों को
ये कहीं खतम ना हो जायें
कल बच्चे गर इतिहास पढ़ें
तब खुद पर वे ना शरमायें।
...............................
नेता
ये नये किस्म के मच्छर हैं
कुछ उल्टे-पुल्टे अक्षर हैं
ये सीधे हैं तो 'गुंडे' हैं
गर उलट गये तो 'डेंगू' हैं।
ये ठहरे पानी में उगते
फिर अनायास बढ़ जाते हैं
ये जिनको काटा करते हैं
वे मिट्टी में गड़ जाते हैं।
ये पहले चरण पकड़ते हैं
फिर सीने से लग जाते हैं
जब असली नेता बनते हैं
तब खून चूसकर जीते हैं।
ये भेष बदलना जाने हैं
ये देश निगलना जाने हैं
मरते नहीं आलआउट से
ये ज़हर निगलना जाने हैं।
पहले भी थे, थोड़े थे
नासूर नहीं बस फोड़े थे
जो गुंडे थे वे गुंडे थे
जो मच्छर थे वे मच्छर थे।
वे जिनके एक इशारे पर
हम शीश कटाया करते थे
अपनी इस पावन धरती पर
ऐसे नेता भी रहते थे।
जनता से पहले खुद बढ़कर
वे अपनी जान लुटाते थे
बस एक नस्ल के होते थे
गर नेता थे तो नेता थे।
तुम ढूँढो ऐसी नस्लों को
ये कहीं खतम ना हो जायें
कल बच्चे गर इतिहास पढ़ें
तब खुद पर वे ना शरमायें।
...............................
ये डेंगू मानव मच्छर -खूब लिखा !
ReplyDeleteकहाँ से लाये नेता अब , सब मच्छर ही तो बन गए हैं.
ReplyDeleteडेंगू = गुंडे ..गज़ब सोचा है.:).
bahut sahi likha hain
ReplyDeleteक्या बात है !हास-परिहास भी है और व्यंग्य भी ।
ReplyDeleteसुन्दर.सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति करें अभिनन्दन आगे बढ़कर जब वह समक्ष उपस्थित हो .
ReplyDeleteआप भी जाने कई ब्लोगर्स भी फंस सकते हैं मानहानि में .......
आपकी इस पोस्ट की चर्चा आज के चर्चा मंच पर ही है | अवश्य पधारे |
ReplyDelete..नेता से अच्छे हैं मच्छर,
ReplyDeleteखून चूसते बिना भेद के !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteइन्हें मच्छर कह कर मच्छरों का अपमान मत करो।
ये तो खटमल हैं जिनके खून में भी दुर्गन्ध आती है!
नेता ही अब तो ताने हैं !
ReplyDeleteबहुत ख़ूब पांडे जी! ये जिसे काटता है वह कभी पानी भी नहीं माँगता। मगर आज पढ़ा अख़बार में कि पिता-पुत्र को सजा हुया है। पता नहीं, सजा के ख़िलाफ़ अपील करके कहीं बाहर न आ जायें? ये धरती का सबसे ख़तरनाक जंतु है।
ReplyDeleteडेंगू = गुंडे............वाह वाह ।
ReplyDeleteवाह..बहुत खूब..डेंगू
ReplyDeleteगुण्डे और डेंगू क्या बात है।
ReplyDeleteये क्षरते नहीं, क्षारते हैं..
ReplyDeleteये नेता हैं या मच्छर हैं- बूझो तो जानें। :)
ReplyDeleteखूब लिखा गया।
नेता अइसा ही होने लगा है...
ReplyDeleteबहुत सटीक रचना
ReplyDeleteऐसे नेताओं पर काला हिट छिडकने की आवश्यकता है. सशक्त रचना.
ReplyDelete६४ वें गणतंत्र दिवस पर बधाइयाँ और शुभकामनायें.
नेता-मछ्छर के काटे क कोई इलाज नहीं खे.
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