का 'इनरासन' भयल फील गुड ?
का पिसान, का चावल मालिक
दुन्नो नौ दू ग्यारह!
साठ रूपैय्या प्याज बिकत हौ
आलू साढ़े बारह!
इहाँ बैड-बैड हौ मालिक, नाहीँ कउनो गुड !
का 'इनरासन' भयल फील गुड ?
रोज-रोज कs रोना सुनिके
कनवां पाक गइल !
कल पनरह अगस्त हौ जरको
खुशिये ना भइल !
का फोकट में मिली मजूरी? तब तs वेरी गुड !
का 'इनरासन' भयल फील गुड ?
महिनन से मेहरारू बीमार हs
लइकी के पिलिया
लइका क फीस ना जुटल
कइली सब किरिया
दू जून क रोटी भारी, मिले न धेली-गुड़!
का 'इनरासन' भयल फील गुड?
का पनरह अगस्त के तोता
आजादी पा जाई ?
का चोट्टन के टिकस ना मिली
सब जेल चल जाई ?
ढेर दिल्लगी नाहीं होला, कब्बो वेरी गुड !
का 'इनरासन' भयल फील गुड?
इनरासन से तात्पर्य इन्द्रासन है क्या?
ReplyDeleteजी
Deleteसच में मन डुलडुल होवे।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कविता बन गई।
ReplyDeleteई फेसबुक्वा भी बड़े काम की चीज़ रहिन ! :)
इन चोट्टन के टिकस फिर मिली
ReplyDeleteजेलव से जीत जइहन
तोहरे-हमरे बदे नाहीं बा
ओनहन के बा फील गुड
मस्त ... कमाल की रचना है ...
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनायें ...
ऊपर धेली गुड हो गया है,भेली-गुड न लिखना चाहते थे ?
ReplyDeleteफील ता भइल लेकिन गुड ना.
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