13.8.17

छेड़छाड़

शायद ही कोई पुरुष हो जिसने किसी को छेड़ा न हो। शायद ही कोई महिला हो जो किसी से छिड़ी न हो। किशोरावस्था के साथ छेड़छाड़ युग धर्म की तरह जीवन को रसीला/नशीला बनाता है। छेड़छाड़ करने वाले लेखक ही आगे चलकर व्यंग्यकार के रूप में प्रतिष्ठित हुए। यश प्राप्त करने के बाद भी व्यंग्यकार बाहर से जितने शरीफ भीतर से उतने बड़े छेडू किसिम के होते हैं। बाहर दाल नहीं गलती तो घर में अपनी घरानी को ही छेड़ते पाये जाते है। बात गलत लग रही हो तो बड़े-बड़े व्यंग्यकारों की हास्य के नाम पर परोसी गई व्यंग्य कविताएँ ही पढ़ लीजिये। कितने चुभते तीर छोड़े हैं इन्होंने अपनी पत्नियों पर! क्या किसी स्त्री को अपनी तुलना प्रेस वाली स्त्री से करते सुन अच्छा लगा होगा? बिजली के करेंट से तुलना करते अच्छा लगा होगा? शरीर की बनावट, मोटापा..बाप रे बाप! क्या-क्या नहीं लिखा इन व्यंग्यकारों ने! बाहर हिम्मत नहीं पड़ी तो घर में ही चढ़ाई कर ली।

महिलाएं भी अब आगे बढ़ कर व्यंग्य लिख रही हैं। कब तक छिड़ती रहतीं? उनका दर्द क्या पुरुष की कलम लिखती? महिलायें अब पलटवार कर रही हैं। वह कवि सम्मेलन सुपर हिट होता है जिसमें कोई महिला कवयित्री मंच पर खड़े होकर खुले आम मर्दों को छेड़ देती है! जिस कवि सम्मेलन में देर तक छेड़छाड़ चलती रहती है, वहाँ से दर्शक उठने का नाम ही नहीं लेते। ये शब्दों के खिलाड़ी होते हैं। लपेट कर कुछ भी कह दें, क्षम्य होता है। एंटी रोमियों के दस्ते तो नौसिखियों पर कहर ढाते हैं। पके पकाये तो छेड़छाड़ के बाद सम्मानित होते हैं।

जिंदगी के कई रंग हैं। छेड़छाड़ पर शुरू भले हो जाय, खत्म नहीं होती। जब खुद कुरुक्षेत्र में खड़ा होना पड़ता है तो हाथ-पैर फूल जाते हैं। आटे-दाल का भाव मालूम पड़ता है। कौन है अपना, कौन पराया तजबीजते-तजबीजते कृष्ण याद आने लगते हैं। कृष्ण की बांसुरी नहीं, गीता याद आती है। उपदेश सुनाई पड़ता है..हानी, लाभ, जीवन, मरण, यश, अपयश हरि हाथ!

जीवन की विद्रूपताओं की समझ, सामाजिक और राष्ट्रीय चिंतन की ओर कब धकेल देती है पता ही नहीं चलता। मन का आक्रोश कागज में उतरने लगता है। छेड़छाड़ करने वाला, व्यंग्यकार भी बन जाता है।

छेड़छाड़ करने वाला वक्त के साथ कैसे तो बदलता जाता है! हर चीज जो उसके पहुँच से दूर होती है ढूँढ-ढूँढ कर तीर चलाता है। ना मिलने पर तंज कसता है, मिलने पर यशगान भी करता है। हारता है तो अपना गुस्सा घर पर उतारता है, जीतता है तो आरती भी उतारता है। कोई-कोई कर्म योगी हो सकता है, कितने तो भोगी बन जाते हैं। छेड़छाड़ वह गुण है जो गोपाल को #कृष्ण, लोभी को #आशाराम बना देता है।

5 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (14-08-2017) को "छेड़छाड़ से छेड़छाड़" (चर्चा अंक 2696) (चर्चा अंक 2695) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, डॉ॰ विक्रम साराभाई की ९८ वीं जयंती “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. आप ब्यंगकार कैसे बन गये अब समझा ।

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