29.8.18

परिंदे

दिन के शोर में
गुम हो गए
भोर के प्रश्न
अपने-अपने
घोसलों से निकल
फुदकते रहे
परिंदे।

शाम की शिकायत
सुनते सुनते
रात बहरी हो गई
बोलते-बोलते
गहरी नींद सो गए
थके-मांदे
परिंदे।

परिंदों में
काले भी थे
सफेद भी
कबूतर भी थे
गिद्ध भी
लेकिन
सब में एक समानता थी
सभी परिंदे थे
और..
सभी के प्रश्न/
सभी की शिकायतें
सिर्फ पेट भर
भोजन के लिए थीं।
......

17 comments:

  1. कविराज के अनुसार संसद रोटी पर बहस चल रही है, सब्र कर!

    ReplyDelete
  2. यथार्थ ! कम शब्दों में बहुत अच्छा चित्रण ।

    ReplyDelete
  3. परिंदों ने माध्यम से बहुत कुछ कह गए आप ...
    यथार्थ सच सार्थक ...
    शुभकामनाएँ ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. ब्लॉग से निरंतर जुड़े रहने और मुझे उत्साहित करते रहने के लिए आभार आपका।

      Delete
  4. सारी कवायत पेट से, पेट के लिए, लेकिन यह है भरता ही नहीं कभी ......
    बहुत अच्छी प्रस्तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. Blog से जुड़े रहने के लिए आभार।

      Delete
  5. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है जन्माष्ट्मी की हार्दिक शुभकामनाएं...!

    ReplyDelete
  6. Awesome article! It is in detail and well formatted that i enjoyed reading. which inturn helped me to get new information from your blog.
    Find the best Interior Design for Living Room in Vijayawada

    ReplyDelete