24.3.19

काशी में मोक्ष

जब तक एक भी बनारसी में फक्कड़पन है तब तक यह वाक्य सत्य है कि बनारस में मोक्ष मिलता है। मोक्ष मतलब आवागमन से मुक्त हो जाना। लाभ/हानी से मुक्त हो जाना। जय/पराजय से मुक्त हो जाना। यश/अपयश से मुक्त हो जाना। अपने/पराए से मुक्त हो जाना। 

मुक्त होने के लिए मुक्त करना आना चाहिए। त्याग करना आना चाहिए। पत्नी का त्याग, बच्चों का त्याग, घर का त्याग, परिवार, संसार के साथ-साथ अपने आप का भी त्याग। ऐसा त्यागी जो भक्ति में लीन हो वही मुक्त हो सकता है। जो मुक्त हो गया उसे ही मोक्ष मिलता है। कबीर दास जी ने भले अपना शरीर मगहर में त्यागा हो, मोक्ष की शक्ति तो उन्हें काशी से ही मिली। तुलसी को भी मोक्ष यहीं मिला। 

मोक्ष के घाट लगने की पहली सीड़ी है.. फक्कड़पन। कहते हैं काशी फक्कड़ों का शहर है। काशी में जब तक एक भी फक्कड़ है, यह बात सत्य है कि काशी में मोक्ष मिलता है। 

भिखारियों को मोक्ष नहीं मिलता। भिखारी लाख काशी में रहें, यहीं जन्म लें, वर्षों जीवित रहें और काशी में ही मरें लेकिन उन्हें मोक्ष नहीं मिलता। भिखारियों के अलावा धूर्तों, लोभियों, पापियों, दुष्टों किसी को भी काशी में मरने से मोक्ष नहीं मिलता। ये भटकती आत्माएँ हैं, युगों-युगों तक भटकती रहेंगी।  मोक्ष फक्कड़ को मिलता है। त्यागी को मिलता है। जो भी यहाँ की फक्कड़ शैली में जी पाया उसे मोक्ष मिला। काशी आ कर मरने से नहीं, काशी के अनुरूप जीने से मोक्ष मिलता है। 

यह हो सकता है कि जो भिखारी दिखते हैं, उनमें कोई त्यागी भी हो! केवल अपने जीवन यापन के लिए ही भिक्षाटन करता हो। यह भी हो सकता है कि जिन्हें हम धूर्त, लोभी, दुष्ट समझ रहे हैं उनका उद्देश्य किसी का अहित करना न हो, वे भी फक्कड़ हों। ये सब अपवाद हो सकते हैं लेकिन एक बात तो तय है कि मोक्ष प्राप्ति के लिए फक्कड़पन जरूरी है।

5 comments:

  1. काशी से चुनाव लड़ने से भी मोक्ष मिलता होगा फिर तो?

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (25-03-2019) को "सबके मन में भेद" (चर्चा अंक-3284) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. काशी और फ़क्खड़ होना .... मुक्ति का मार्ग दिखा रहे हैं आप ...
    पर काशी का रंग रूप अलग ही है ... इसकी नदी और मिट्टी में कुछ तो है ...

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  4. मुक्त होने के लिए मुक्त करना आना चाहिए ....
    क्या करें गर कोई अभिनन्दन चाहता है
    मुक्त जिसको किया वो बंधन चाहता है

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  5. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन फ़ारुख़ शेख़ और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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