चबूतरे पर बैठे होते थे
प्याऊ
बड़े-से मिट्टी के घड़े में लेकर
ठंडा-ठंडा पानी
पेट भर पीते थे हम
होने पर कभी दे भी देेते थे
एक पइसा, दो पइसा या फिर पूरे पाँच पैसे भी
लेकिन नहीं माँगता था कभी
अपने मुँह से
एक पइसा भी
प्याऊ!
गर्मी की दोपहरी में
बनारस की गली में।
.........................
सहमकर
चढ़ जाते हैं चबूतरे पर
बच्चों के साथ बड़े भी
जब सांड़ दौड़ाता है
गाय को।
छुट्टे घूमते हैं सांड़
तो खूँटे से बंधी नहीं होती
गाय भी
बनारस की गलियों में।
.......
प्याऊ
बड़े-से मिट्टी के घड़े में लेकर
ठंडा-ठंडा पानी
पेट भर पीते थे हम
होने पर कभी दे भी देेते थे
एक पइसा, दो पइसा या फिर पूरे पाँच पैसे भी
लेकिन नहीं माँगता था कभी
अपने मुँह से
एक पइसा भी
प्याऊ!
गर्मी की दोपहरी में
बनारस की गली में।
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सहमकर
चढ़ जाते हैं चबूतरे पर
बच्चों के साथ बड़े भी
जब सांड़ दौड़ाता है
गाय को।
छुट्टे घूमते हैं सांड़
तो खूँटे से बंधी नहीं होती
गाय भी
बनारस की गलियों में।
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