हम सभी को मिली है
दृष्टि संजय की!
देख सकते हैं दशा
कुरुक्षेत्र की।
धृतराष्ट्र बन पूछते
कितने मरे?
आज तक घायल हुए
कितने बताओ?
चल रहे हैं सड़क पर
मजदूर सारे
लड़ रहे हैं निहत्थे
क्रूर पल से।
ठीक है किंतु अब तुम
यह बताओ?
क्या कोई, अपना/सगा
घायल पड़ा है?
दूर है काल फिर तो
भय नहीं है
दृष्टि बदलो अब जरा
गाना सुनाओ।
दृष्टि संजय की!
देख सकते हैं दशा
कुरुक्षेत्र की।
धृतराष्ट्र बन पूछते
कितने मरे?
आज तक घायल हुए
कितने बताओ?
चल रहे हैं सड़क पर
मजदूर सारे
लड़ रहे हैं निहत्थे
क्रूर पल से।
ठीक है किंतु अब तुम
यह बताओ?
क्या कोई, अपना/सगा
घायल पड़ा है?
दूर है काल फिर तो
भय नहीं है
दृष्टि बदलो अब जरा
गाना सुनाओ।
आज के वक्त का कटु यथार्थ, हम ही यदि संजय हैं और हम ही धृतराष्ट्र तो सड़क पर घायल मजदूर भी हम ही हुए न
ReplyDeleteजी
Deleteसटीक प्रस्तुति।
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteगहरा कटाक्ष है ... और आज का कटु सत्य जो शब्दों में उभरा ...
ReplyDeleteआप सभी का आभार।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteगाना सुनाना ही सबसे सरल रास्ता है।
ReplyDeleteसही कहा, मुंदहूँ आँख कतौ कछु नाहीं।
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