11.5.20

मनहूसियत

नीले आकाश में
टँगा है
गुमसुम आधा चाँद,
चिपके हैं
टिमटिमाते कुछ तारे।

धरती में
चाँद/तारों की तरह गुमसुम
खड़े हैं
कदम्ब, अशोक, आम और..
दूसरे वृक्ष

मेरे आसपास
चाँद, तारों और वृक्षों की तरह
खामोश हैं
मनुष्यों के कई घर

इन्ही घरों के बीच
एक घर की छत पर
मध्यरात्रि में
घूम रहा था
मैं भी
खामोशी से
इस उम्मीद के साथ
कि बहेगी
शीतल पुरवाई
लहराकर झूमेंगी
वृक्षों की शाखें
बादलों से करेंगे आँख मिचौली
चाँद/तारे भी

हाय!
ऐसा कुछ नहीं हुआ
थककर
आज फिर पकड़ लिया बिस्तर
खैर...
कल फिर सुबह होगी
देखेंगे..
कबतक छाई रहती है
धरा में
यह मनहूसियत!

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