28.10.10

‘विजयोत्सव’


सुना है राम
तुमने मारा था मारीच को
जब वह
स्वर्णमृग बन दौड़ रहा था
वन-वन

तुमने मारा था रावण को
जब वह
दुष्टता की सारी हदें पार कर
लड़ रहा था तुमसे
युद्धभूमि में ।

सोख लिए थे उसके अमृत कलश
एक ही तीर से
विजयी होकर लौटे थे तुम
मनी थी दीवाली
घर-घर ।

मगर आज भी
जब मनाता हूँ विजयोत्सव
जलाता हूँ दिए
तो लगता है…….  
कोई हँस रहा है मुझपर….!

चलती है हवा
बुझती है लौ
उठता है धुआँ
तो लगता है……
जीवित हैं अभी
मारीच और रावण

मन कांप उठता है
किसी अनिष्ट की आशंका से....!

46 comments:

  1. मगर आज भी
    जब मनाता हूँ ‘विजयोत्सव’
    जलाता हूँ दिए
    तो लगता है…….
    कोई हँस रहा है मुझपर….!
    अप्रासंगिक हो गये हैं सन्दर्भ .. क्योकि रावण तो मरता ही नही है
    बहुत सुन्दर रचना

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  2. न वो राम है न वो अयोध्या ... हाँ रावण आज भी जिंदा है ...

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  3. सच ही है ये अनिष्ट की आशंका तो सबको ही बनी रहती है.एक नए अंदाज़ में कही है अपनी बात अपने.सुन्दर रचना

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  4. आशंका व्यर्थ नहीं है भ्राता!स्थिति वैसी ही है... स्वर्ण मृग के वेश पर तो राम ने भी शंका व्यक्त की थी, आज मारीच किस वेश में दिख जाए कहा नहीं जा सकता..
    पूर्व इसके कि गिरिजेश राव जी कहें आप युध्यभूमी को सुधारकर युद्धभूमि कर लें!!

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  5. देवेन्‍द्र भाई हम सब की मुश्किल यह है कि रावण के बिना राम की अवधारणा अधूरी है। अगर रावण ही नहीं होगा तो राम क्‍या करेंगे। वैसे ही राम के बिना रावण के बिना राम की अवधारणा भी अधूरी है। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं । इसलिए राम को याद करने के लिए हमें हर साल रावण को जिंदा करना ही पड़ता है।

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  6. चलती है हवा
    बुझती है लौ
    उठता है धुआँ
    तो लगता है……
    जीवित हैं अभी
    मारीच और रावण

    मन कांप उठता है
    किसी अनिष्ट की आशंका से....!

    Sach hai! Isht kaal me bhee insaan anisht kee aashankaa se pare nahee ho pata!
    Behad sundar rachana!

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  7. देवेंद्र जी! संकेत समझा गया सब कुछ!!

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  8. बहुत गहरी आशंका है, सुंदर रचना.

    रामराम.

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  9. चलती है हवा
    बुझती है लौ
    उठता है धुआँ
    तो लगता है……
    जीवित हैं अभी
    मारीच और रावण...
    विचारणीय प्रश्न के साथ अच्छी रचना.

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  10. ना वो प्रजा हे आज तो राम क्या करे कितने रावण मारे?
    इस अति सुंदर रचना के लिये आप का धन्यवाद

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  11. @सलिल जी....
    ....आप पिछड़ गए..गिरिजेश जी पहले ही कह चुके थे...मैं सुधार कर घूमा तो आपका कमेंट देखा।

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  12. वाह वाह ......क्या बात है
    प्रतीक का बड़ी सजगता से प्रयोग , सुंदर सन्देश का सम्प्रेषण
    शुभकामनयें

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  13. न केवल जीवित है अपितु सबको भ्रमित भी कर रहे हैं।

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  14. आज तो इतने रावण हैं कि इतने राम कहाँ मिलेंगे ? अच्छी प्रस्तुति ...रावण तो बस एक प्रतीक बन गया है ....खुद में छुपे रावणों को मारना होगा ..

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  15. 4/10

    औसत पोस्ट
    कोई नयी बात नहीं.
    मन के मारीच को पालने-पोसने के बाद आशंका कैसी.

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  16. बहुत गहरी बात!!

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  17. चलती है हवा
    बुझती है लौ
    उठता है धुआँ
    तो लगता है……
    जीवित हैं अभी
    मारीच और रावण

    मन कांप उठता है
    किसी अनिष्ट की आशंका से....!

    bahut umdaa!
    aap kee aashankaa nirmool naheen hai ,we jeevit hain aaj bhee alag alag shaklon men ,lekin Ram bhee hain jo un se ladne kee shakti hamen pradaan karte hain ,us ke lie sab se pahle hamen apne andar ke raawan ko maarna hoga.

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  18. नहीं मरे मारीच और न ही रावण

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  19. देवेन्द्र जी,

    दीपावली का शानदार तोहफा........सच है पहले तो एक ही रावण था अब तो हर चेहरे में वही छिपा लगता है ....ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं....

    मगर आज भी
    जब मनाता हूँ ‘विजयोत्सव’
    जलाता हूँ दिए
    तो लगता है…….
    कोई हँस रहा है मुझपर….!

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  20. sach kaha Rajeesh bhaiya ne.........

    bina asatya ke satya jaisa shabd hi nahi hota
    waise hi raam agar hai, to ravan rahega hi..:)

    waise ashanka jayaj hai:)

    ek pyari rachna!

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  21. bahut bhaavpurn...sachmuch raavan our maarich to ab bhi jinda hain....

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  22. उद्वेलित करती रचना। लेकिन आशा नहीं छोडि़ये, रावण और मारीच हैं तो राम भी आते ही होंगे।
    राम के अवतरण के लिये रावण और मारीच का होना प्रीकंडीशन है।

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  23. Acchi Rachna hai apki


    मगर आज भी
    जब मनाता हूँ ‘विजयोत्सव’
    जलाता हूँ दिए
    तो लगता है…….
    कोई हँस रहा है मुझपर….!

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  24. अच्छे बिम्ब चुने है आपने अपनी बात कहने के लिये !

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  25. सत्य कहा....

    आज तो असंख्य हैं रावण और मारीच...और चहुँ और फैला है ऐसा अँधियारा कि लाख दिए जला लिए जायं अन्धकार पर विजय नहीं पाया जा सकता..

    आपकी इस सुन्दर रचना ने मुग्ध कर लिया....कितना सुन्दर लिखते हैं आप...वाह !!!

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  26. देवेन्द्र जी आज की सच्चाई कहती हुई आपकी यह सुंदर प्रस्तुति दिल जीत ली..आपके शब्दों में जादू है...बहुत बढ़िया रचना...बधाई स्वीकारें प्रणाम

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  27. चलती है हवा
    बुझती है लौ
    उठता है धुआँ
    तो लगता है……
    जीवित हैं अभी
    मारीच और रावण

    मन कांप उठता है
    किसी अनिष्ट की आशंका से....!
    बिलकुल सही कहा। रावन घर घर मे मौज़ूद है। मगर राम कब सुनेंगे? अच्छी रचना के लिये बधाई।

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  28. raam or raawan dono hamaare andar dil main hi hain.
    jarurat hain to bas raam ko jagaa kar raavan ko maarne ki.
    bahut badhiyaa.
    thanks.
    WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

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  29. सच है असली विजय अभी कहाँ आई है इस कलयुग में .... अच्छी और प्रभावी रचना ....

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  30. A very nice poem with original thinking.

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  31. जीवित हैं अभी
    मारीच और रावण


    आशंकाओं को काटने के लिए और जो भी बाधाएं हैं , उनसे सहर्ष निपटने के लिए सतत तत्पर है राम...

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  32. एक बहुत बढ़िया रचना के लिए शुभकामनायें

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  33. पाण्डेय जी वो तो था राम का जमान परन्तु आज के समाज में तो रावणत्व विद्यमान है |

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  34. दीपावली के इस पावन पर्व पर ढेर सारी शुभकामनाएं

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  35. मगर आज भी
    जब मनाता हूँ ‘विजयोत्सव’
    जलाता हूँ दिए
    तो लगता है…….
    कोई हँस रहा है मुझपर….!

    kavita atyant prabhavi dhang se apni baat rakhti hai.shubhkamnayen.

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  36. दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.

    रामराम

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  37. आपको परिवार एवं इष्ट स्नेहीजनों सहित दीपावली की घणी रामराम.

    रामराम

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  38. आप को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
    मैं आपके -शारीरिक स्वास्थ्य तथा खुशहाली की कामना करता हूँ

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  39. .

    लगता है……
    जीवित हैं अभी
    मारीच और रावण...

    -------

    मेरा मन भी सशंकित रहता है।

    .

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  40. भावपूर्ण अभिव्यक्ति........दीपावली की शुभकामनाएं.....

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  41. चलती है हवा
    बुझती है लौ
    उठता है धुआँ
    तो लगता है……
    जीवित हैं अभी
    मारीच और रावण
    रोमांचित कर दिया आपकी कविता ने.

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  42. हाँ रावण आज भी जिंदा है दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.

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  43. संसद पर हमला... रावण ही तो था वो!
    पेंटागन ध्वस्त... रावण ही तो था वो!
    मुम्बई का ताज होटल तहस-नहस...रावण ही तो था वो!
    दहेज-हत्याएँ...रावण ही तो करता है!
    बलात्कार...रावण ही तो करता है!

    हुज़ूर... हर जगह रावण मौजूद हैं...बस रूपाकार-मात्र बदलता है!
    अस्तु आपकी आशंकाएँ निर्मूल नहीं...!

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  44. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 6 अक्टूबर 2018 को लिंक की जाएगी ....http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  45. बहुत सुन्दर

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