4.7.11

फेसबुक


सभी फेस
बुक की तरह होते हैं

कुछ छपते हैं
सिर्फ सजने के लिए
बड़े घरों की आलमारियों में
कुछ इतने सार्वजनिक
कि उधेड़े जाते हैं
खुले आम
बीच चौराहे
चाय या पान की दुकानो में

कुछ शीशे की तरह पारदर्शी
खुलते ही चले जाते हैं
पृष्ठ दर पृष्ठ
कुछ आइने की तरह
रहस्यमयी
करते
सबका चीर हरण।

कुछ जला दिये जाते हैं
बिन पढ़े
दफ्ना दिये जाते हैं
बिन खुले

कुछ ऐसे भी होते हैं
जो संसार का फेस चमकाने का
बीड़ा उठाये
बूढ़े घर के सिलन भरे कमरे में कैद
घुटते रहते हैं सारी उम्र
जिन्हें
बेरहमी से
चाट जाते हैं
वक्त के दीमक।

..............................

42 comments:

  1. बहुत खूब चिंतन ....शुभकामनायें !!

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  2. क्या बात है एक नयी दिशा मे चिन्तन , बधायी

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  3. कुछ ऐसे भी होते हैं
    जो संसार का फेस चमकाने का
    बीड़ा उठाये
    बूढ़े घर के सिलन भरे कमरे में कैद
    घुटते रहते हैं सारी उम्र
    जिन्हें
    बेरहमी से
    चाट जाते हैं
    वक्त के दीमक।
    sahi kaha

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  4. It`s a very nice poem.The last lines r too sensitive,u r a poet and has entered into the damp rooms of many true men,who`s labourious works will change the world.
    Here,i disagree with u....कुछ जला दिये जाते हैं
    बिन पढ़े
    दफ्ना दिये जाते हैं
    बिन खुले
    without reading,most face books are burned,not only few.

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  5. देव बाबू,

    फेसबुक की मिसाल क्या खूब दी है आपने......बहुत ही शानदार पोस्ट.......भूले-भटके हमारे ब्लॉग पर भी आ जाया कीजिये|

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  6. गहन और प्रभावशाली चिंतन........ जिंदगी की सच्चाई है, इसमें...

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  7. फेस और बुक की शानदार जुगलबंदी ।
    लेकिन फेसबुक के बारे में क्या कहेंगे ?

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  8. सही कह रहे हैं आप, हर फ़ेस एक बुक है।

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  9. कुछ मत पूछिए यी वक्त के दीमक साले बड़े खतरनाक होते हैं !

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  10. मजे की बात यही है कि ये अंतिम प्रकार के फेस ही फेसबुक पर नजर आते हैं।

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  11. @Prm Ballabh Pandey...

    Ya...I agree with your disagree..most is better .

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  12. काश कोइ ठाकुर आए, देखे कि वक्त की दीमक ने उन चेहरों को खोखला नहीं किया और निकाली जाएँ किसी शोधार्थी के द्वारा!!

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  13. वाह कमाल की प्रस्तुति है । आज तक फ़ेसबुक की ऐसी परिभाषा पहले नहीं पढी कभी

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  14. काफी दिन हो गये थे आपको बांचे बिना !

    हमेशा की तरह आपका अपना अंदाज मुखर हुआ है मेरे ख्याल से एक सच्चाई और भी जोड़ी जा सकती है इसमें ...

    और कुछ फेस
    मिटकर भी
    जीवित रह पाते हैं !

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  15. सभी चेहरे पुस्तकों की तरह स्वयं को व्यक्त कर देते हैं।

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  16. बात बात में बड़ी गहरी बात कह डाली आपने..

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  17. वाह बहुत बढ़िया...

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  18. बेहद खूबसूरत कविता

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  19. आखिरी टुकड़ा सबसे ज्यादा पसंद आया। बढ़िया लिखा है।

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  20. बहुत खूब ... सच है की सभी फेस किसी बुक की तरह होते हैं ... कुछ कहते .. कुछ छिपा कर कहते ... कुछ सीधे शब्दों में कहते ...
    रचना को जबरदस्त अंदाज़ में बाँधा है ...

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  21. गहन भावपूर्ण अभिव्यक्ति जिसमें शब्द 'फेस' दिखला रहें हैं.

    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.

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  22. बढ़िया रचना के लिए बधाई|

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  23. फेसबुक को आधार बना कर साहित्य जगत की तस्वीर खींच दी है आपने...बहुत खूब!

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  24. काश, सभी फेस बुक की ही तरह होते।

    ------
    TOP HINDI BLOGS !

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  25. "फेसबुक" शब्द का इस्तेमाल करते हुए कितनी गहरी बात कह दी आपने...सच तो है, हर चेहरा एक किताब है...पर हर किताब का हस्र एक सा नहीं होता...

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  26. बहुत खूब !फेस बुक के बहाने सब कही अन कही कह दी साहित्य जगत की -सच मुच कुछ किताबें लाइ -ब्रेरी में चाटतीं हैं सिर्फ धूळ,कुछ होती हैं निर्मूल ,नया प्रतीक और बिम्ब विधान ओढ़े कविता नटी सबकी कह गई बात .

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  27. several faces !..Some are fake, some genuine...Beautifully written .

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  28. aap ki kavita part dr part khulti chali gai aur ek naya chehra samne aaya is duniya ka .aap ne to sach ke drshan kara diye .bahut sunder kavita
    rachana

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  29. मेरी सूचना वाकई टिप्पणी नहीं दिख रही ।

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  30. बहुत गहन बात कही आपने रचना के माध्यम से ।

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  31. वाह्ह अत्यंत रोचक शब्दचित्र सर।
    शब्दशः सटीक अभिव्यक्ति।
    सादर।

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  32. हृदय को बिंधती सराहनीय अभिव्यक्ति।
    गज़ब का दर्शन है।
    सादर

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  33. बहुत ही मार्मिक रचना देवेन्द्र जी।फेसबुक पर चमक कर भी कोई बड़ा तीर नहीं मार लेते लोग।मन के घरौंदों में छिपी व्यथाओं को कौन कलम लिख पाई कभी 🙏

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    1. गहन चिंतनपरक एवं लाजवाब भावाभिव्यक्ति ।
      वाह!!!

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  34. सभी फेस
    बुक की तरह होते हैं….
    क्या बात है ?

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