11.8.11
जाम झाम और बनारस की एक शाम ।
दफ्तर से घर जा रहा था। सावन की टिप-टिप और व्यस्त सड़क दोनो का मजा ले रहा था। सड़क जाम तो नहीं थी मगर सड़क पर हमेशा की तरह झाम अधिक था । सभी सवारी गाड़ियाँ एक समान रफ्तार से एक के पीछे एक चल रही थीं। बगली काट कर आगे निकलने की होड़ में दो दो रिक्शे अगल बगल आपस में सटकर चल रहे थे। सवारी गाड़ियाँ आगे निकलने की फिराक में चपाचपा रही थीं । न जाने वाले समझते थे कि आने वाले को आने देना चाहिए न आने वाले समझ रहे थे कि ये नहीं जायेंगे तो हम कैसे जा पायेंगे। एक साइकिल वाला जब मेरी बाइक को ओवरटेक कर आगे बढ़ा तो मुझे होश आया कि मैं भी सड़कर पर बाइक चला रहा हूँ। मेरे बाइक के अहम को गहरा धक्का लगा । मैंने भी एक्सलेटर तेज कर दिया। बनारस की सड़कों में सभी सवारियाँ सम भाव से चलती हैं। कोई किसी के भी पीछे चल सकता है, कोई किसी के भी आगे निकल सकता है। सभी प्रकार की वाहन पाये जाते हैं। साइकिल, बाइक, टैंपो, रिक्शा, इक्का, टांगा, कार, बस, ट्रक, ट्रैक्टर और बैलगाड़ी भी। सभी एक साथ चलते हैं। कुछ सड़कें तो ऐसी होती हैं जहाँ आप चलती बस से उतर कर, सब्जी खरीद कर, फिर वापस उसी में चढ़कर जा सकते हैं। सांड़, भैंस, गैये, आवारा कुत्ते और सड़क पर चलने वाले पद यात्रियों के लिए कोई पद मार्ग मेरा मतलब फुट पाथ नहीं बना है। कहीं है भी तो आसपास के दुकानदारों ने अतिक्रमण करके उसे अपना बना लिया है। बाइक के अहम को चोट लगते देख मैं जैसे ही ताव खा कर आगे बढ़ा तो सहसा ठहर सा गया । सामने एक बस खड़ी थी। जिसके पीछे नीचे की ओर लिखा था...कृपया उचित दूर बनाये रखिए। बाद में ऊपर देखा तो लिखा पाया....पुलिस ! मैने दोनो को मिलाकर पढ़ा...कृपया पुलिस से उचित दूरी बनाये रखिए। वह पुलिस की बस थी और अंदर ढेर सारे एक साथ बैठे थे । सहसा एहसास हुआ कि पुलिस लिखावट में कितनी विनम्रता बरतती है ! ट्रक वालों की तरह असभ्य होती तो लिख देती...सटला त गइला बेटा। वैसे मैने विनम्रता पूर्वक लिखे संदेश को भी गंभीरता से ही लिया। यह मेरे मन का आतंक हो सकता है। मुझे किसी ने बरगलाया हो सकता है। यह हो सकता है कि मैने समाचार पत्र पढ़-पढ़ कर या टी0वी0 की सनसनी देख देख कर पुलिस के बारे में नकारात्मक ग्रंथी पाल ली हो। वास्तविक अनुभव तो कभी बुरा नहीं रहा। पुलिस हमेशा मेरे साथ वैसे ही मिली जैसे एक सभ्य आदमी दूसरे सभ्य आदमी से मिलता है। वे खुद ही गलत होंगे जो पुलिस को गलत कहते हैं। गलत व्यक्ति से पुलिस अच्छा व्यवहार कैसे कर सकती है ! आप कह सकते हैं कि तुम मूर्ख हो तुम्हें मालूम नहीं कि कभी उसी बनारस में एक साधारण से सिपाही ने एक बड़े नेता को पीटा था। हो सकता है आप सही ही कह रहे हों मगर इससे यह तो सिद्ध नहीं होता कि हर बड़ा नेता अच्छा आदमी ही होता है। बड़ा नेता बनना और अच्छा आदमी बनना अलग भी हो सकता है। पुलिस की तुलना खुद अपने द्वारा चुने गये नेता जी से करिए तब आपको भी एहसास हो जायेगा कि पुलिस कितनी अच्छी है! नेता अच्छे लगे तो समझिये आप खुशकिस्मत हैं। मैं बस के पीछे-पीछे चल रहा था। बस को ओवरटेक कर सकता था पर पुलिस को ओवरटेक करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। कृपया उचित दूरी बनाये रखिये की चेतावनी सर पर हथोड़े की तरह बज रही थी। दरवाजे से एक पुलिस वाले ने अपना सर निकाला ही था कि बायें से तेजी से ओवर टेक करता एक युवा बाइक सवार उससे भिड़ते-भिड़ते बचा। किसी को कुछ नहीं हुआ मगर मैने पुलिस वाले को डंडा लहराते और मुंह चलाते जरूर देखा। क्या कहा सुन नहीं पाया। जरूरी नहीं कि गाली ही दे रहा हो। कानून भी समझा सकता है। सड़क पर कानून पुलिस से बढ़िया कोई नहीं समझा सकता। वकील भी नहीं।
गिरजा घर चौराहे के आगे गोदौलिया चौराहा है। बनारस का व्यस्ततम चौराहा। यहां जाम लगना बनारस वालों के लिए आम बात है। ट्रैफिक पुलिस डंडा भाज रही थी। उन्हें देख सुबह-सुबह घर से निकलते वक्त वास्तव जी के घर आई भांड़ मंडली जेहन में सहसा कौंध गई। वास्तव जी दुहाई दे रहे थे और वे जोर जोर से हाथ हिला कर भद्दे इशारे कर रहे थे। वास्तव जी को दूसरा पोता हुआ था । एक तो सभी को हो सकते हैं। वे दोहरी खुशी मना रहे थे। भांड़ सांड़ न हों तो रस नहीं बनता । बनारस बनारस नहीं लगता। अचानक बारिश तेज हो गई। एक रिक्शे पर एक अंग्रेज ( सभी गोरी चमड़ी वाले को हमारे जैसे आम बनारसी अंग्रेज ही समझते हैं फिर चाहे वह अमेरिकन ही क्यों न हो !) अपनी अंग्रेजन से बातें कर रहा था। अभी कुछ देर पहले उसने दुकान के भीतर बैठे गाय की तश्वीर उछल-उछल कर खींची थी। शायद उसी के बारे में दोनो आश्चर्य चकित हो बातें कर रहे थे। बीच सड़क पर बैठा एक विशालकाय सांड़ अचानक से खड़ा हो गया। कुछ तो तेज बारिश कुछ सांड़ का भय कि भीड़ अपने आप इधर उधर छितरा गई। मैने देखा कि अंग्रेज दंपत्ति रिक्शे से उतर कर गली में घुस रहे थे और गली के कुत्ते जोर जोर से उनको भौंक रहे थे। अंग्रेज बहादुर था इसमें कोई संदेह नहीं। यह मैं इस आधार पर कह सकता हूँ कि कुत्तों के भौंकने के बाद भी वह उनकी और हमारी तश्वीर खींचना नहीं छोड़ रहा था। आगे जा कर वह घाट पर बैठे भिखारियों की तश्वीर भी खींचेगा यह मैं जानता था। बारिश और तेज हो चुकी थी। रास्ता पूरी तरह साफ हो चुका था। मुझे भींगने के भय से अधिक घर पहुंचने की जल्दी थी। बारिश में रुक कर समय बर्बाद करना मुझे अच्छा नहीं लगता। शाम के समय घर लौटते वक्त सावन में बाइक चलाते हुए भींगने का अवसर कभी-कभी मिलता है। इसे मैं हाथ से जाने नहीं देता। भींगने के बाद घर पर पत्नी की सहानुभूति और गर्म चाय दोनो एक साथ मिल जाती है। घर आकर चाय पीते वक्त रास्ते के सफर के बारे में सोचते हुए एक बात का मलाल था कि हम जैसे हैं, हैं । अपना जीवन अपनी तरह से जी रहे हैं मगर वो अंग्रेज हमारी तश्वीर खींच कर ले गया । न जाने हमारे बारे में क्या-क्या उल्टा-पुल्टा लिखेगा ! जबकि दुनियाँ जानती है कि हम कितने सभ्य, सुशील, अनुशासन प्रिय और विद्वान हैं!
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वाकई बनारस में कभी भी सड़कें जाम हो जाती हैं.
ReplyDeleteदिलचस्प वृत्तांत...
रोचक वृत्तांत!
ReplyDeleteAkalmand hain ham bhi dimak lagate hain,
ReplyDeletejaante hain aapke fenke khanjar kidhar jate hain.....
Nice....:;,
jai hind jai bharat
बनारस के बारे में बढ़िया जानकारी दी है ... कभी काम आयेगी ... आभार
ReplyDeleteरांड सांड और सन्यासी , इनसे बचे तो सेवे काशी .
ReplyDeleteबारिश ने आपको भीड से तो बचा ही दिया । बाकि तो करीब-करीब सभी शहरों की यही तस्वीर है ।
ReplyDeletemushkile to bahut aati-jaati hain, lekin esi bahane hamen bhi Banaras ki sair karne ko mil gayee... sab jagah gaahe-bagahe yahi haal hai..
ReplyDeletebadiya rochak aur saarthak prastuti..
apne shahar ke bare me padhkar bahut achchha laga ...abhar
ReplyDeleteबनारस की गलियों का इतना सुन्दर वर्णन पढ़कर अफ़सोस हो रहा है कि हम वहां अब तक क्यों नहीं गए ।
ReplyDeleteकितने रमणीक नज़ारों से वंचित रह गए ।
हा हा हा ! बहुत मज़ा आया पढ़कर भाई ।
रोचक वृत्तांत।
ReplyDeleteखैर मनाईये सलामत घर लौट आये उस दिन -नहीं तो कौन गली सईयाँ हेरायो हो रामा ई बर्सतिया की कजली बन गयी होती :)
ReplyDeleteहम भी समाचारों में पढ़ रहे है,सजीव वर्णन ,आभार.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ..आभार ।
ReplyDeleteजहाँ आप चलती बस से उतर कर, सब्जी खरीद कर, फिर वापस उसी में चढ़कर जा सकते हैं...................आपके लिखने का अंदाज़........सुभानाल्लाह.......
ReplyDeleteबनारस का रोचक वर्णन ......
ReplyDeleteरोचक वृत्तांत!
ReplyDeleteअद्भुत लेख !
ReplyDeleteबड़ी मासूमियत से बनारस की गाथा लिखी। बांचकर मजा आ गया।
विनम्रता पूर्वक गंभीर सन्देश का पालन करने पर भी जाम से मुक्ति कहाँ ? बढ़िया पोस्ट.
ReplyDeleteआज इस पावन पर्व के अवसर पर बधाई देता हूं और कामना करता हूं कि आपकी कलाई पर बंधा रक्षा सूत्र हर समय आपकी रक्षा करें।
ReplyDeleteअँगरेज़ अक्सर भारत आते हैं तो हमारी गरीबी , भूखमरी और अव्यवस्था का चित्र ही खींच कर ले जाते हैं ! भारत के बारे में बेहतर तो वे कभी लिख ही नहीं सकते !
ReplyDeletebahut achha laga....antim pankti ki vynjana to lajawab hai....
ReplyDeleteबनारस को आपकी कलम से देखना भी एक अलग अनुभव है ... वैसे बारिश में तो अब सारे शहर ऐसे ही डूबे रहते हैं ...
ReplyDeleteपोस्ट बहुत अछ्छा लगा.विदेशी लोगों को भी यह सब देखकर मजा आता है,तभी तो वो आते हैं और फोटो खींच के ले जाते हैं.वो भी सोचते होंगे कि हम भी इस तरह रहते,सभी तरह के वाहनों को येक ही गति से चला पाते तो कितना मजा होता.
ReplyDeleteसबके अधिकार पर कब्जा जमा जमा कर हम सबने सबको निर्धन कर दिया है।
ReplyDeleteरोचक रहा आपका वृतांत!!
ReplyDeleteदिलचस्प वृत्तांत.......
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
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