जिधर देखो उधर अन्ना की ही धूम मची है। टी0वी0 खोलो तो अन्ना...! चाय-पान की अड़ी में एक पल के लिए रूको तो अन्ना..! हर ओर उन्ही का हाल जानने की उत्सुकता, उन्हीं के बारे में बोलने..सुनने की होड़। दुर्भाग्य से कहीं आप कवि के रूप में जाने जाते हैं तो आपको बलात सुनना ही पड़ेगा...कवि जी ! फालतू कविता नहीं...!अन्ना पर क्या लिखे यह बताइये..? कुछ नहीं लिखे...! कवि के नाम पर कलंक मत लगाइये...! अरे ! कुछ तो सुनाइये। अब आप ही बताइये .. इस माहौल में कोई और कर भी क्या सकता है.. ? जो पढ़ा, जो सुना वही लिखे दे रहा हूँ...अपनी भाषा में। मेरा मतलब काशिका बोली में। सही है..? शीर्षक यही मान लीजिए.....
जेहर देखा ओहर अन्ना
का रे चंदन कइला अनशन ?
का गुरू का देहला धरना ? !
का रे रमुआँ चहवे बेचबे ?
सुनले नाहीं अन्ना अन्ना !
का मालिक केतना मिल जाई ?
होई का अब ढेर कमाई ?
बड़ लोगन कs बड़की बतिया
काहे आपन जान फसाई ?
भ्रष्टाचार मिटल अब जाना
संघर्ष अजादी कs तू माना
राजा बन जे राज करत हौ
सेवक बन नाची तू माना !
तोहरो लइका पढ़ी मुफत में
फोकट में अब मिली दवाई
राशन कार्ड मिली धड़ल्ले
केहू तोहके ना दौड़ाई !
का मालिक मजाक जिन करा
लइकन के बर्बाद जिन करा
सब शामिल हौ ई जलूस में
मन डोले, विश्वास जिन करा
ठोकत हउवन ताल भी चौचक
घोटत हउवन माल भी चौचक
निर्धन कs खून चूस के
हउवन लालम लाल भी चौचक
का गुरू ई उलटे भरमइबा !
सांची के भी तू झुठलइबा !
सब इज्जत से जीये चाहत
चोट्टन से एतना घबड़इबा !
नाहीं केहू देव तुल्य हौ
सब नाहीं हौ मन से गंदा
जब कुइयाँ में भांग पड़ल हो
हो जाला सबही अड़बंगा
के संगे हौ ई मत देखा
जन-जन के झुलसे दs पहिले
हो रहल हौ मंथन भीषण
अमृत के निकसे दs पहिले
ऐसन एक व्यवस्था होई
भ्रष्टाचारी जेल में रोई
ना होई बेमानी जरको
ना केहू अन्यायी होई
निर्बल कs बल हउवन अन्ना
निश्छल देखत हउअन सपना
कैसे चुप रह जइबा बोला
जेहर देखा ओहर अन्ना
...........................................
जिधर देखो बस अन्ना ही अन्ना .....!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
जेहरै देख..ssss ओहरे अन्ना
ReplyDeleteबड़ी धाकड़ रचना बा हो
@@@ऐसन एक व्यवस्था होई
ReplyDeleteभ्रष्टाचारी जेल में रोई
ना होई बेमानी जरको
ना केहू अन्यायी होई...
पूरी रचना जबरदस्त है,आभार
बहुत सुन्दर
ReplyDeletequite realistic creation! Beautifully written.
ReplyDeleteनिर्बल कs बल हउवन अन्ना
ReplyDeleteनिश्छल देखत हउअन सपना.
अन्ना क सपना पूरी हो जाय,भ्रस्टाचार खत्म हो तो बहुत कुछ हो गयल समझा !
बहुते सटीक, सारा भारत अन्नामय होगया है.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत नीक कबिता ..! कैलाश खेर जी की याद आयी कहीं कहीं !, जारी रखी लोक-भासा में कविताई , हम तो इसी के कायल हैं ! आभार..!!
ReplyDeleteसारा देश सुन रहा है, सिर्फ़ जनता के नुमाइंदों को छोड़कर।
ReplyDeleteनिर्बल कs बल हउवन अन्ना
ReplyDeleteनिश्छल देखत हउअन सपना
कैसे चुप रह जइबा बोला...
बहुत सुन्दर रचना...आभार...
देशज भाषा में मर्मस्पर्शी रचना......हालत को भांपते हुए सामायिक कविता प्रस्तुत करने का आभार !!!
ReplyDeleteसब जगह आज अन्ना ही अन्ना है .. हर भाषा में अन्ना .. सामयिक रचना ...
ReplyDeletepadkar aanand aaegava......
ReplyDeleteAnna chahutarf hoeegava.....
गज़ब लिखे हो देवेन्द्र भाई।
ReplyDeleteवाह....वाह.....क्या बात है देव बाबू.....मज़ा आ गया.....
ReplyDeleteक्या खूब कही, देवेन्द्र भाई!
ReplyDeleteबहुते बढ़िया . घुरभारी कहत रहलन की इ अन्नवा अइसन कर देइत की मामा लोग उनकर दुकाने में मुफत का चाह ना पियतन.
ReplyDeleteबड़ी ही प्रवाहमयी कविता।
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