यह व्यंग्य तब लिखा गया था जब दूरदर्शन में एक विज्ञापन आता था...स्कूल चलें हम। लिखकर भूल चुका था। दिसम्बर 2009 में रचनाकार द्वारा एक व्यंग्य लेखन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया तो मैने इसे यूँ ही भेज दिया। मेरी खूशी का ठिकाना न रहा जब इस व्यंग्य को प्रतियोगिता में दूसरा स्थान मिला। दो हजार रूपये का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। सोचा था कभी ब्लॉग में प्रकाशित करूंगा लेकिन भूलता चला गया। इधर शिक्षक दिवस के अवसर पर ब्लॉग में प्रकाशित करने के लिए सामग्री तलाश रहा था तो अचानक से इस व्यंग्य की याद आई। मजे की बात यह है कि इसे मैने जिस पन्ने पर लिखा था उसे भी फेक चुका था। रचनाकार में कब प्रकाशित हुआ था इसे भी भूल चुका था। बड़ी मशक्कत से ढूँढ निकाला तो कट पेस्ट नहीं कर पा रहा था। मुझे इस बात की खुशी है कि काफी मेहनत से सही इसे यहां प्रकाशित कर पाया। प्रस्तुत है व्यंग्य ...
स्कूल चलें हम
चिड़ा, बार-बार चिड़िया की पीठ पर कूदता, बार-बार फिसल कर गिर जाता।
"चिड़-पिड़, चिड़-पिड़, चिड़-पिड़, चिड़-पिड़" ….चिड़ा चिड़चिड़ाया।
"चूँ चूँ- चूँ चूँ, चूँ चूँ-चूँ चूँ"……चिड़िया कुनमुनाई।
"क्या बात है ? आज तुम्हारा मन कहीं और गुम है ? किसी खेल में तुम्हारा मन नहीं लगरहा ?" चिड़े ने चिड़िया को डांट पिलाई।
"हाँ बात ही कुछ ऐसी है कि आज सुबह से मेरा मन परेशान है। देखो, मध्यान्ह होने को आया अभी तक मैने दाल का एक दाना भी मुंह में नहीं डाला"….. चिड़िया झल्लाई।
"बात क्या है ?"
"बात यह है कि आज सुबह-सुबह मैं रेडियो स्टेशन के पीछे बने एक दो पाए के घर में भूल से घुस गई थी। अरे, वहीऽऽ जहाँ युकेलिप्टस के लम्बे-लम्बे वृक्ष हुआ करते थे, याद आया ?
हाँ-हाँ याद है। तो क्या हुआ?
वहीं मैने देखा कि कमरे के एक कोने में एक बड़ा सा डिब्बा रखा हुआ था उसमें तरह-तरह के चित्र आ जा रहे थे गाना बजाना चल रहा था।
"हाँ-हाँ, दो पाए उसे टी०वी० कहते हैं चिड़ा हंसने लगा। इत्ती सी बात पर तुम इतनी परेशान हो !"
"नहींऽऽ बात कुछ और है। तुम जिसे टी०वी० कह रही हो उसमें एक बुढ्ढा दो पाया धीरे-धीरे चलकर आया, सब उसे देखकर खड़े हो गये और फिर वह सबसे हमारी बात कहने लगा।"
क्या ?
कह रहा था- बच्चे तैयार हैं। सुबह हो चुकी है। चिड़ियाँ अपने घोंसलों से निकल चुकी हैं। हम भी तैयार हैं। स्कूल चलें हम। इसका मतलब मेरी समझ में नहीं आया। यह स्कूल क्या होता है ? जैसे हम घोंसलों से निकलते हैं वैसे ही ये दो पायों के बच्चे घरों से निकलकर स्कूल जाने को तैयार हैं। हम तो कभीस्कूल नहीं गये। क्या तुम गये हो ?
चिड़-पिड़, चिड़-पिड़, चिड़-पिड़, चिड़-पिड़….चिड़ा खिलखिलाने लगा। तुम भी न, महामूर्ख हो। वे इन दो पायों के राजा हैं।
जैसे गिद्धराज !---- चिड़िया ने फटी आँखों से पूछा ?
हाँ। फिर समझाने लगा - ये दो पाये जीवन भर अपने बच्चों को अपनी छाती से लगाए रखते हैं। उन्हें खिलाते-पिलाते ही नहीं बल्कि अपने ही रंग में ढाल देतेहैं। इन्होंने अपने-अपने धर्म बना रखे हैं। प्रत्येक धर्म को मानने वाले भी कई भागों में बंटे हुए हैं। बाहर से देखने मे सब एक जैसे दिखते हैं मगर भीतर से अलग-अलग विचारों के होते हैं। जैसे हमारे यहाँ बाज और कबूतर को देखकर तुरंत पहचाना जा सकता है मगर इनको देखकर नहीं पहचाना जा सकता कि कौन हिंसक है कौन साधू।---चिड़े ने अपना ज्ञान बघारा।
हाँ हाँ, मैने बगुले को देखा है। एकदम शांत भाव से तालाब के किनारे बैठा रहता है और फिर अचानक 'गडुप' से एक मछली चोंच में दबा लेता है। वैसा ही क्या ! चिड़िया ने कुछ-कुछ समझते हुए कहा।
हाँ-हाँ, ठीक वैसा ही। तो ये लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजते हैं-ताकि वहाँ जाकर एक दूसरे को जानने-पहचानने की कला सीख सकें, ताकि कोई उन्हें बाज की तरह झपट्टा मारकर खा न जाय।
अच्छा तो यह बात है। चलो हम भी स्कूल चलकर देखते हैं कि वहाँ क्या होता है।
ठीक है चलो। आखिर अपने देश के राजा की इच्छा का सम्मान करना हम चिड़िया प्रजाति का भी तो कुछ धर्म बनता है।
(चिड़पिड़ाते-चहचहाते दोनो एक सरकारी प्राइमरी पाठशाला में जाकर एक वृक्ष की डाल पर बैठ जाते हैं।)
अरे, यह क्या ! यहाँ तो बहुत कम बच्चेहैं --चिड़ा बोला।
जो हैं वे भी कैसे खेल रहे हैं !----चिड़िया बोली।
लगता है यहाँ एक भी मास्टर नहीं है। अरे, वह देखो, वहाँ एक कुर्सी पर बैठकर कौन अखबार पढ़ रहा है ?
वे यहाँ के हेडमास्टर साहब लगते हैं।
तुम्हें कैसे मालूम ?
मैं जानता हूँ। जो हेड होते हैंवे मास्टर नहीं होते। मास्टर होते तो पढ़ाते नहीं ?
शायद तुम ठीक कहते हो। चलो हम कमरे में घुसकर देखते हैं -चिड़िया बोली।
चलो।
अरे, यहाँ तो ढेर सारे कबूतर हैं ! देखो-देखो प्रत्येक बेंच पर इन कबूतरों ने कितना बीट कर छोड़ा है ! पूरा कमरा गंदगी से भरा पड़ा है। दीवारों के प्लास्टर भी उखड़ चुके हैं।
हाँ हाँ, क्यों न यहीं घोंसला बना लें ?
हाँ, प्रस्ताव तो अच्छा है। स्कूल से अच्छा स्थान कौन हो सकता है एक पंछी को घोंसला बनाने के लिए ! तभी तो सीधे-सादे कबूतर यहाँ आकर रहते हैं।
चलो दूसरे कमरों में भी घूम लें।
अरे, यह कमरा तो और भी अच्छा है ! इसमें तो एक दीवार ही नहीं है !!
(तब तक बच्चों का झुण्ड चीखते-चिल्लाते, कूदते-फांदते, धूल उड़ाते कमरे में प्रवेश कर जाता है। मास्साब आ गए..... मास्साब आ गए.....।)
डर के मारे दोनों पंछी टूटे दीवार से उड़कर भाग जाते हैं और पुनः उसी स्थान पर जा कर बैठ जाते हैं जहाँ पहले बैठे थे। थोड़े समय बाद क्या देखते हैं कि मास्टर साहब कमरे से बाहर निकल रहे हैं। बाहर निकल कर एक लोटा पानी पीते हैं और बेंच पर बैठकर अपने एक हाथ के अंगूठे से दूसरे हाथ की हथेली को देर तक रगड़ते हैं। जोर-जोर से ताली पीटते हैं फिर रगड़ते हैं फिर ताली पीटते हैं। कुछ देर पश्चात अपने निचले ओंठ को खींचकर चोंच बनाते हैं कुछ रखते हैं और दोनो पैर फैलाकर सो जाते हैं। कमरे के भीतर से दो पायों के बच्चों के जोर-जोर से चीखने की आवाज आती रहती है।
बिचारे बच्चे ! चिड़िया को दया आ गई। इस आदमी ने बच्चों को जबरदस्ती कमरे में बिठा रखा है। देखो न, बच्चे कितने चीख-चिल्ला रहे हैं। क्या इसी को पढ़ाई कहते हैं ? क्या इन दो पायों के राजा को मालूम है कि स्कूल में क्या होता है ? क्या इसलिए सुबह-सबेरे सबसे कहता है कि हम भी तैयार हैं स्कूल चलें हम ! इनका राजा कहाँ है ? वह तो कहीं दिखाई नहीं देता !-- बहुत देर बाद चिड़िया ने मौन तोड़ा।
राजा, राजा होता है। ताकतवर और ज्ञानी होता है। उसको स्कूल जाने की क्या जरूरत ? -चिड़ा बोला।
छिः। स्कूल तो बहुत गंदी जगंह होती है। यहाँ तो सिर्फ यातना दी जाती है।
नहीं-नहीं, ऐसी बात नहीं है। चिड़े ने समझाया-"यह गरीबों का स्कूल है। यहाँ मुफ्त शिक्षा दी जाती है। जो चीज मुफ्त में मिलती है वह अच्छी नहीं होती। टी०वी० में ऐसी बातें करके राजा जनता की सहानुभूति बटोरना चाहता है।"
अच्छा ! तो और भी स्कूल है ? यह गरीबों का स्कूल है तो अमीरों का स्कूल कैसा होता है ?----चिड़िया ने पूछा।
चलो चलकर देखते हैं। चलो।
(दोनों पंछी उड़कर एक अंग्रेजी पब्लिक स्कूल में पहुंच जाते हैं जहाँ की दीवारें रंगी-पुती हैं, बड़ा सा मैदान है, सुंदर सी फुलवारी है और बड़े से लोहे के गेट के बाहर मूछों वाला चौकिदार बंदूक लिए पहरा दे रहा है।)
यह तो बहुत सुंदर जगह है !
मगर तुमने देखा ? उस दो पाये के हाथ में बंदूक है। वह हमें मार भी सकता है ! -- चिड़िया एक आम्र वृक्ष की पत्तियों में खुद को छुपाते हुए डरते-डरते बोली।
नहीं-नहींss । डरने की कोई जरूरत नहीं है। यह चौकिदार है। दो पायों को हमसे नहीं अपने ही लोगों से ज्यादा खतरा है ! यह अमीरोंका स्कूल है। उनके बच्चे गरीबों की तरह सस्ते नहीं होते। यह उन्हीं की सुरक्षा केलिए है।
अच्छा ! मगर यहाँ तो एक बच्चा भी खेलते हुए नहीं दिखता। बच्चे कहाँ हैं ?
अभी तो तुमने स्कूल की बाहरी दीवार ही पार की है। बच्चों को देखने के लिए कमरों में घुसना होगा जहाँ एक दूसरा चौकिदार बैठा है।
चलो यहाँ से भाग चलें। यह जगह तो बड़ी भयानक है।
नहीं, जब आए हैं तो पूरा स्कूल देखकर ही चलेंगे, डरो मत।
चलो, उस दीवार के ऊपर की तरफ जो गोल सुराख दिखलाई पड़ रही है, वहीं से प्रवेश कर जाते हैं।
मुझे तो बड़ा डर लग रहा है--चिड़िया हिचकिचाई।
डरो मत। मेरे पीछे-पीछे आओ। इतना कहकर चिड़ा फुर्र से उड़कर रोशनदान में प्रवेश करता है। चिड़िया भी पीछे-पीछे रोशनदान में घुस जाती है। वहाँ से दोनो कमरों में देखने लगते हैं। नीचे कक्षा चल रही है मैडम पढ़ा रहीं हैं।
वाह ! क्या दृश्य है। देखो, सभी बच्चे एक जैसे साफ-सुथरे कपड़े पहने सुंदर-सुंदर कुर्सियों पर बैठे हैं।
इनके टेबल भी कितने सुंदर हैं !
दीवारें कितनी सुंदर हैं। जमीन कितनी साफ है।
वह देखो, हवा वाली मशीन ! यह अपने आप घूम रही है !!
वह देखो, रोशनी वाली डंडियाँ ! कितना प्रकाश है !!
अरे, वह देखो, वह मादा दोपाया एक कुर्सी में बैठकर जाने किस भाषा में बोल रही है ! उसके पीछे की दीवार में काले रंग की लम्बी चौड़ी पट्टी लगी है। लगता है यह मास्टरनी है !!
हाँ, कितनी सुंदर है !
(दोनों की चिड़-पिड़-चूँ-चूँ से बच्चों का ध्यान बटता है। बच्चे रोशनदान की ओर ऊपर देखने लगते हैं। शोर मचाने लगतेहैं।)
व्हाट ए नाइस बर्ड !
हाऊ स्वीट !
मैडम, चौकिदार को आवाज देती है और चौकिदार बंदूक लेकर आता है। बच्चों के शोर, मैडम की चीख, और चौकिदार की बंदूक देखकर दोनो पंछी मारे डर के भाग जाते हैं। कुछ देर तक हवा में उड़ते रहते हैं और एक तालाब के पास जाकर दम लेते हैं। चीड़िया ढेर सारा पानी पीती है देर तक हाँफती है और हाँफते-हाँफते चिड़े से कहती है----
"जान बची लाखों पाए। अब हमें कभी स्कूल नहीं जाना। ये दो पाये तो दो रंगे होते हैं ! जैसे इनको देखकर समझना मुश्किल है कि कौन बाज है कौन कबूतर वैसे ही इनके स्कलों को देख कर समझना मुश्किल है कि कौन अच्छा है और कौन बुरा ! वह मास्टरनी क्या गिट-पिट गिट-पिट कर रही थी ?"
चिड़ा चिड़िया की बदहवासी देखकर देर तक खिलखिलाता रहा फिर बोला, "मेरी चिड़िया, ये दो पाये दो रंगे नहीं, रंग-बिरंगे होते हैं। जैसे इनके घर जैसे इनके कपड़े, जैसा इनका जीवन स्तर वैसे ही इनके स्कूल। जिसे तुम 'गिट-पिट गिट-पिट' कह रही हो, वह श्वेत पंछियों की भाषा है। तुमने देखा होगा कि जब जाड़ा बहुत बढ़ जाता है तो वे पंछी उड़कर यहाँ आ जाते हैं। बहुत दिनों तक यह देश भी उनके देश का गुलाम था। इन लोगों ने उनको भगा दिया मगर उनकी गुलामी करते-करते यहाँ के लोगों ने उनकी भाषा में बात करना उसी भाषा में अपने बच्चों को पढ़ाना अपनी शान समझने लगे। इन दो पायों में जो पैसे वाले होते हैं यावे जो पैसे वाले दिखना बनना चाहते हैं, अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलोंमें पढ़ाते हैं। यहाँ की शिक्षा बहुत मंहगी है। ये पैसे वाले हैं इसलिए इनके स्कूलभी अच्छे बने होते हैं। गावों में गरीब लोग रहते हैं, शहरों में अक्सर अमीर लोग रहतेहैं। हम भी गावों रहते हैं इसलिए गांव की भाषा ही जानते हैं। जैसे हम पंछियों की कई भाषाएँ होती हैं, वैसे ही इन दो पायों की भी कई भाषाएँ होती हैं।ये मात्र देखने में एक जैसे लगते हैं, भाषा के मामले में भी रंग-बिरंगे होते हैं। मेरी प्यारी चिड़िया अब मैं तुमको कितना समझाऊँ ? तुम तो एक ही दिन में दो पायों को पूरा समझ लेना चाहती हो जबकि गिद्धराज कहते हैं कि ये दो पाये बड़े अद्भुत प्राणी हैं। भगवान भी इन्हें पैदा करने के बाद इन्हें समझना नहीं चाहता !
"शायद तुम ठीक कहतेहो"--चिड़िया बोली, "हमें इनके धोखे में नहीं फंसना चाहिए। देखो शाम हो चुकी है, बच्चे स्कूलों से घरों की ओर लौट रहे हैं, हम भी तैयार हैं, घर चलें हम।
चिड़ा चिड़िया की बोली सुनकर भय खाता है कि एक दिन में ही इसकी बोली बदल गई। हड़बड़ा कर इतना ही कहता है - "चलो चलें, घर चलें हम।"
चिड़-पिड़, चूँ-चूँ ..चिड़-पिड़, चूँ-चूँ ....करते, चहचहाते, दोनों पंछी अपने घोंसले में दुबक जाते हैं और देखते ही देखते शर्म से लाल हुआ सूरज अंधेरे के आगोश में गुम हो जाता है।
जोरदार ।
ReplyDeleteन जाने कैसे इतनी यातना पा पढ़ते होंगे बच्चे। बहुत ही अच्छी कहानी।
ReplyDeleteक्या बात है पाण्डेय जी मान गए व्यंग्य की धार और सही जगह पर प्रहार
ReplyDeleteव्यंग्य तो है । बधाई पुरस्कार के लिए।
ReplyDeletebahaaee
ReplyDeleteaccha vyang . ek link de rahee hoo Jaroor samay nikal kar dekhiyega aur suniyega .Circulate karne layak hai..
http://www.youtube.com/watch?v=0vJD6TzsmA0&feature=related
मेरी निगाह उस इनाम के एवज़ में होने वाली पार्टी पर है :)
ReplyDeleteव्यंग्य की विधा में बिल्कुल सही चित्रण किया है आप ने ,, बहुत बढ़िया
ReplyDeleteईनाम के लिये बधाई ,,ये रचना सच में ईनाम की हक़दार है
चिड़ा चिड़िया के माध्यम से बढ़िया व्यंग प्रस्तुत किया है.
ReplyDeletechidiyaa ke madhyam se bahut katakshiye drishy dekhne ko mile ... inaam ke liye badhaai
ReplyDelete@Apnatva ji....
ReplyDeleteदेखा...सुना...मोबाइल में टेप किया..अधिक से अधिक लोगों को सुनाउंगा..आभार आपका।
ब्यंग बहुत सुन्दर है.पुरस्कार के लिये बधाई.
ReplyDeleteमगर यहाँ येक बात लिखना चाहता हूं कि,इंग्लिश को येक विश्व-भाषा के रूप में, अब सबको ले लेना चाहिए.सारे बच्चों, को चाहे वो जिस भी मात्रिभाषा का हो इंग्लिश का भी ज्ञान देना चाहिए.सारे विषयों के ज्ञान के लिये ये अत्यंत आवश्यक है.बाबा रामदेव को भी इस बात को स्वीकार करना चाहिए.
ब्यंग की और सब बातें बहुत अछ्छी लगीं.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
ReplyDeletePARTY ??
बहुत जबरदस्त .
ReplyDeleteपांडे जी!
ReplyDeleteइसको तो Fable की श्रेणी में रखना चाहिए!! बहुत ही जीवंत रचना है!!
चिड़िया चुनमुन लहजे की यह व्यंग रचना अद्भुत है !
ReplyDeleteचिड़ा चिड़ी के माध्यम से दो अलग अलग परिवेशों का सजीव वर्णन।
ReplyDeleteपुरस्कार की बधाई।
बहुत ही अच्छी कहानी। बढ़िया व्यंग प्रस्तुत किया है|
ReplyDeleteये दोपाया आदमी , इसको समझना वाकई मुश्किल है!
ReplyDeleteरोचक व्यंग्य ..
शिक्षक दिवस की शुभकामनायें !
बढ़िया व्यंग ,शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteशिक्षक दिवस पर अप्रतिम व्यंग्य बाण चलायें हैं आपने .पब्लिक स्कूल में गोली ही चलतीं हैं आजकल और खंडहरों को ही कहतें हैं सरकारी स्कूल बिलकुल सरकार जैसे बद इंतजाम .
ReplyDeleteबहुत खूब! मजेदार रचना! :)
ReplyDeleteव्यंग के माध्यम से अद्भुत सृजन
ReplyDeleteबहुत ज़बरदस्त और रोचक व्यंग...
ReplyDeleteWAH-WAH
ReplyDeletebahut hi sundar aur shnadar prastuti ki hai aapne .
sach! pahli baar iana katu sach ko saath liye hue tatha samaaj me faili vidrupta ko kitne sahaj dhang se apne vyng baani se saja hua post padh rahi hui.
bahut bahut hi badhiya vyngatmak vmajedaar bhi lagi aapki prastuti
bahut bahut badhai
poonam
bahut badhiya
ReplyDeletepurskar ke liye badhai
हैट्स ऑफ .....देव बाबू...........मुझे समझ नहीं आता 'दूसरा' स्थान किसने दिया.......इस रचना को 'पहला' स्थान मिलना चाहिए था......'दो पाया' ये आपका दिया मनुष्य जाती को दिया नाम सदा याद रहेगा :-)
ReplyDeleteवक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें|
बधाई पुरुस्कार मिलने पे ... मजेदार है ये कहानी ...
ReplyDeleteइंडिया डिवाईडिड...एक भारत में दो भारत!! कमाल का व्यंग्य!... पुरस्कार तो मिलना ही था.
ReplyDeleteबधाई.
चिड़े ने समझाया-"यह गरीबों का स्कूल है। यहाँ मुफ्त शिक्षा दी जाती है। जो चीज मुफ्त में मिलती है वह अच्छी नहीं होती। टी०वी० में ऐसी बातें करके राजा जनता की सहानुभूति बटोरना चाहता है।"
ReplyDeleteप्रशंसा को शब्द कहाँ से लाऊं भाईजी...?
बस लाजवाब !!!!
बधाई , लाजवाब रचना......!!!! मजेदार कहानी ...
ReplyDeleteयहि दसा-छबि का पढ़त-पढ़त करुना लोक मा चला गयेन!
ReplyDeleteआँखिन देखी यक लागि!!
Honestly speaking you deserve first prize for this satire.
ReplyDeleteदर-असल मुझे तो यह व्यंग्य लगा ही नहीं,बिलकुल वास्तविक घटना-सी प्रस्तुति लगती है यह !हाँ,समयकाल थोड़ा पहले का है क्योंकि आज सरकारी स्कूल में मास्टरजी खैनी कम फेसबुक में स्टेटस अपडेट करते ज़्यादा मिलेंगे और पब्लिक-स्कूल में कमोबेश वही स्थिति रहेगी !
ReplyDeleteआभार,हम जैसे शिक्षकों का मार्गदर्शन करने के लिए !