स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय के लम्बे सफर के बाद
ज्ञान हुआ
मेरे पास भी दिमाग है
लेकिन जब भी काम लेना चाहता
धोखा देता
काम नहीं आता
काफी ठोकरें खाने के बाद
जान पाया कि
दिमाग तो
सात तालों में बंद है
और चाभियाँ
गुरूजी के पास हैं !
सबसे पहले स्कूल वाले गुरूजी को पकड़ा
गुरूजी !
आपने जो दिमाग दिया था
वह तो ताले में बंद हो गया है
काम नहीं करता
चाभी घुमाइये न गुरूजी
थक हार कर
गुरूजी बोले
इसमें तो धर्म का ताला लगा है
मैं नहीं खोल सकता !
भागा भागा
कॉलेज वाले गुरूजी के पास गया
उन्होने भी प्रयास किया
हार कर बोले
इसमें तो
जाति का भी ताला लगा है
मैं नहीं खोल सकता !!
विश्वविद्यालय पहुँचा
गुरूजी बोले
इसमें धर्म जाति का ही नहीं
काम क्रोध लोभ मोह
कई प्रकार के ताले लगे हैं
और तो और
भ्रष्ट आचरण की जंग ने
सभी को
मजबूती से जकड़ रखा है
इन्हें तो मैं भी नहीं खोल सकता !!!
तो मैं क्या करूँ गुरूजी ?
क्या मान लूँ कि
यह जीवन व्यर्थ ही बीत गया ?
गुरू जी हंसकर बोले
नहीं नहीं....
तुम्हारा दिमाग काम नहीं कर रहा इसलिए समझ नहीं रहे
तुम्हारी तरह बहुत से लोग ऐसे हैं
जो अपनी जेब नहीं तलाशते
और मेरे पास आते हैं
दिमाग पर ताले
किसी और ने नहीं तुम्हीं ने लगाये हैं
इसलिए इनकी चाभियाँ भी
तुम्हारे ही पास हैं
देखो !
अहंकार के तले कहीं दबा होगा
मिल जायेगा।
………………………………………………………………………
rchna to bhut bhtrin hai jnab lekin me samajhta hun ke manmohn ji ka dimag saat taalon me bnd hai ...akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteबहुत आसानी से कह दी आपने सच्ची बात मान गए पाण्डेय जी बधाई हो
ReplyDelete@@
ReplyDeleteदिमाग पर ताले
किसी और ने नहीं तुम्हीं ने लगाये हैं
इसलिए इनकी चाभियाँ भी
तुम्हारे ही पास हैं
देखो !
अहंकार के तले कहीं दबा होगा
मिल जायेगा।..
---सही बात.
तुम्हारी तरह बहुत से लोग ऐसे हैं
ReplyDeleteजो अपनी जेब नहीं तलाशते
और मेरे पास आते हैं
दिमाग पर ताले
किसी और ने नहीं तुम्हीं ने लगाये हैं
इसलिए इनकी चाभियाँ भी
तुम्हारे ही पास हैं
बहुत सही लिखा है आपने...
इसे पढ़कर अपनी ही एक रचना याद आ गई --आज के रावण के दस रूप ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है ।
बधाई ।
तालों और सीकड़ों में कैद वजूद -बढियां लिखा है -दर्दनाक हकीकत यही है !
ReplyDeleteदेखो !
ReplyDeleteअहंकार के तले कहीं दबा होगा
मिल जायेगा।
sunder darshnik kavita .bhavon ka prabhav kamal hai aapki soch ko naman
rachana
ताले भी कई हैं और जिनके तले कुंजी दबी हैं वे भी कई हैं।
ReplyDeleteगहरी बात कह गये बंधु और कुछ सोचने को मजबूर करती है आपकी प्रस्तुति।
दिमाग पर ताले
ReplyDeleteकिसी और ने नहीं तुम्हीं ने लगाये हैं
इसलिए इनकी चाभियाँ भी
तुम्हारे ही पास हैं
बहुत सार्थक पंक्तियां....
ताले की कुंजी यदि स्वयम के पास हो तो कुछ हल भी निकले परन्तु यदि कुंजी किसी और के पास हो तो फिर कोई क्या कर सकता है ....बहुत बढ़िया लेख
ReplyDeleteगिनते गिनते ताले,
ReplyDeleteजीभ में पड़ गये छाले।
बहुत खूब ....
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
अहंकार ही ले डूबता है ..सार्थक लेखन ..
ReplyDeleteपांडे जी!
ReplyDeleteइस दर्शन पर तो सादर खड़े होकर ताली बजाने को जी कर रहा है!! अद्भुत ज्ञान है यह.. देवता भी मेरे तेरे, प्रार्थना गृह भी मेरे-तेरे के तले और तो और जीवन की चर्या में भी भला उसकी कमीज़ मेरी कमीज़ से सफ़ेद कैसे का भाव!! यह सब हमारे दिमाग की कुंजी को छिपा देते हैं.. आज कोई मजाक नहीं.. बस नमन!!
गुरू जी हंसकर बोले
ReplyDeleteनहीं नहीं....
तुम्हारा दिमाग काम नहीं कर रहा इसलिए समझ नहीं रहे
तुम्हारी तरह बहुत से लोग ऐसे हैं
जो अपनी जेब नहीं तलाशते
और मेरे पास आते हैं
दिमाग पर ताले
किसी और ने नहीं तुम्हीं ने लगाये हैं
इसलिए इनकी चाभियाँ भी
तुम्हारे ही पास हैं
देखो !
अहंकार के तले कहीं दबा होगा
मिल जायेगा।
bahut khoob
उचित बात.
ReplyDeleteगुरु जी...........आप और आपकी रचनाएँ वाकई अलग हैं.........कितनी सहजता से आप बात को कितनी गहराई में ले जाते हैं.....आपके ब्लॉग पर पढ़ी उत्कृष्ट रचनाओं में से एक लगी ये पोस्ट............हैट्स ऑफ इसके लिए |
ReplyDeleteदिमाग पर ताले
ReplyDeleteकिसी और ने नहीं तुम्हीं ने लगाये हैं
इसलिए इनकी चाभियाँ भी
तुम्हारे ही पास हैं
वाह ...बहुत ही बढि़या ।
बढ़िया है भाई जी .
ReplyDelete'कस्तूरी कुंडली बसे ,मृग ढूँढे बन माहिं ' लगभग यही हाल हो गया है छात्र का !लेकिन उसे याद तो गुरूजी ही दिलायेंगे !
ReplyDeleteभटकती आत्मा सुना था। खैर बेचैन होती होगी तभी भटकती भी होगी। खैर इसका समाधान तो इसमें है कि हम खुद को जीते जी समझ लें।
ReplyDeleteअंतिम समाधान?
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
ReplyDeleteआपको हमारी ओर से
सादर बधाई ||
सार्थक प्रस्तुति। बात में सच्चाई है।
ReplyDeletehttp://premchand-sahitya.blogspot.com/
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सच है , अहंकार के ताले ही मतिभ्रम पैदा कर देते हैं। कुंजी हम व्यर्थ तलाशते फिरते हैं।
ReplyDeleteBAHUT SUNDAR !
ReplyDeleteपहले तो पता ही नहीं लगता कि अक्ल पर ताले जड़े हैं . और जिस स्तर पर यह बोध जागा ,एक तो वहाँ तक पहुँचना मुश्किल. पहुँचने पर जिसने चेताया वही असली गुरु .
ReplyDelete'अप्प दीपो भव' की बहुत सुन्दर व्यंजना !
संदेश को जिस खूबसूरती से प्रस्तुत किया है ,बरम्बार सराहनीय है.अहंकार का नाश हो.
ReplyDeleteदिमाग पर ताले
ReplyDeleteकिसी और ने नहीं तुम्हीं ने लगाये हैं
इसलिए इनकी चाभियाँ भी
तुम्हारे ही पास हैं
देखो !
अहंकार के तले कहीं दबा होगा
मिल जायेगा।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति.
सादर बधाई.
गहन चिंतन दर्शाती ये कविता बहुत ही अच्छी लगी | ......आपका बहुत -बहुत धन्यवाद् ....
ReplyDeleteसुन्दर रचना .काश ! हम अहंकार से दूर हो पाते.
ReplyDeleteप्रकृति ने अहंकार खुद की रक्छ्या करने के लिए दिया,मगर समाज ने अनेक तरह के अहंकार से बडा सा बोझ सर पे रख दिया.
behtareen rachna !!!
ReplyDeletekabhi kabhi to ye bodh saaree zindagee naheen ho pata shayad ki chabiyan hamare hi pas hain aur tale bhi ham ne hi lagae hain .
दिमाग पर ताले
ReplyDeleteकिसी और ने नहीं तुम्हीं ने लगाये हैं
इसलिए इनकी चाभियाँ भी
तुम्हारे ही पास हैं
देखो !
अहंकार के तले कहीं दबा होगा
मिल जायेगा।
....लाजवाब प्रस्तुति। सच है हम अपने आप ही अपने दिमाग पर ताला लगा देते हैं।
वाह गुरु, आप तो गुरुतर, गुरुतम निकले.... बोले तो गुरु घंटाल!! क्या फलसफाना अंदाज है आपका...सच में धन्य हुए हम.
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteभई वाह..................... क्या कटाक्ष है दिमाग आपका तो किसी ताले में नहीं बंद है तभी तो इतना खूबसूरत लेखन सार्थक हुआ .
ReplyDeleteदिमाग अगर सात तालों में बंद हो जाता तो कितना अच्छा होता ......................
ReplyDeleteकोई बलबा नहीं ,कोई हुजूम नहीं ,बस एक शांत दिमाग दुनिया की उथल पुथल से बेखबर होता और इंसान कितने सुकून में होता ...............ये इंसान है पूरा दिमाग तिकडमों में लगाता है ..............गलत आचरण करता है और फिर बहाने बनाता है कि दिमाग तो ससुरा .............
पर निश्चित ही आपका दिमाग किसी भी ताले में बंद नहीं है इसलिए इतना खूबसूरत लेखन सार्थक हुआ है ........
अच्छा तो आप लिखते ही है