वह
एक पंथ
दो काज करता है
कल के लिए
आज मरता है
डरते-डरते हँसता
हँसते-हँसते रोता है
पाने की कोशिश में
खुद को भी खोता है
मार्निंग वॉक के समय
तोड़ लाता है
सार्वजनिक उद्यान से
पूजा के लिए फूल
अखबार पढ़ते-पढ़ते
पी लेता है चाय
नहाते वक्त
गा लेता है गीत
पूजा के समय
दे देता है
पूरे घर को उपदेश
खाते-खाते
देख लेता है टी0वी0
मोटर साइकिल चलाते-चलाते
कर लेता है
जरूरी काम की बातें
दफ्तर में काम करते-करते
कर लेता है
क्रिकेट, राजनीति, मौसम या फिर
देश के हालात पर चर्चा
कम्प्युटर में
सुनता है म्युजिक
करता है चैट
देखता है ब्लॉग
और....
थककर सोते समय़
कर लेता है
रिश्तों की चिंता
सभी कहते हैं
वह बहुत 'स्मार्ट' है !
क्या जीने का
यही 'आर्ट' है ?
.........................................
सुंदर एवं सार्थक चिंतन।
ReplyDelete------
क्यों डराती है पुलिस ?
घर जाने को सूर्पनखा जी, माँग रहा हूँ भिक्षा।
वर्तमान में मानव के जीवन को देखें तो यही कुछ उसके जीवन का हिस्सा है .....उसका दिमाग एक दिशा में नहीं बल्कि कई दिशाओं में कार्य करता है ....आपका आभार
ReplyDeleteक्या बात है! क्या बात है! मजे आ गये सबेरे-सबेरे! :)
ReplyDeleteएक कविता में हम लिखे थे:
ये दुनिया बड़ी तेज चलती है
बस जीने के खातिर मरती है
पता नहीं कहां पहुंचेगी
वहां पहुंचकर क्या कर लेगी। :)
भइया, ई तौ जद्दोजहद रहतै है! बाहर औ भीतर कै अस संबाद संबेदनसील मनई कीनै करत है। अंतिम मा ‘ब्लोग’ संदर्भ जोड़ि के हमैं लाग कि आप आप बीती कहिन जैसे! सुंदर !
ReplyDeleteकम्प्युटर में
ReplyDeleteसुनता है म्युजिक
करता है चैट
देखता है ब्लॉग
और....
थककर सोते समय़
कर लेता है
रिश्तों की चिंता
सभी कहते हैं
वह बहुत 'स्मार्ट' है !
क्या जीने का
यही 'आर्ट' है ?
sarthak kataksh
@अनूप शुक्ल....
ReplyDeleteहम लिखे थे...पूरी पढ़े। इसी मूड में लिखी गई मस्त कविता है। मजा आ गया सबेरे-सबेरे।
वाह, समय के साथ चलना ही पड़ता है।
ReplyDelete@अमरेन्द्र भाई..
ReplyDeleteन फूल तोड़त हैं न पूजा करत हैं बकिया आप बीती मानही लें तो कौनो हरज नाहीं ।
अवधी, तुलसी बाबा के परेम में परसाद जस रचिके मिलीगा..अब आप सिखाई दें तS हमहूँ जानकार कहाउब एहमा कौनो संदेह नाहीं हमका।
शानदार कविता।
ReplyDeleteसुन्दर रचना,सबकी बीती यही है.मगर ये जीने की कला तो नहीं.होना तो यह चाहिए कि हम, एक काम इस तरह करें कि उसमे पूरा डूब जाएँ.
ReplyDeleteएक आम आदमी के जीवन की यही कहानी है । यही है उसकी आर्ट ऑफ़ लिविंग । इसी मस्ती me जिंदगी कट जाती है ।
ReplyDeleteबढ़िया लिखा है भाई ।
वाह! सच में आपबीती जैसा ही है।
ReplyDeleteसोते-सोते जगते हैं हम,जगते-जगते सोते,
ReplyDeleteमर-मर कर जीते हैं,जाते हैं तब रीते !!
आपने जो विषय पकड़ा है वह लाजवाब है....कविता से बहुत ज्यादा अच्छा...
ReplyDeletebahut badhiya ...
ReplyDeleteरोजमर्रा के सच को प्रतिबिम्बित करती बेहतरीन रचना...
ReplyDeleteफिर इंसान कहता है कि शांति नहीं !!!
ReplyDeleteदफ्तर में काम करते-करते
ReplyDeleteकर लेता है
क्रिकेट, राजनीति, मौसम या फिर
देश के हालात पर चर्चा
कम्प्युटर में
सुनता है म्युजिक
करता है चैट
देखता है ब्लॉग
क्या बात है...बहुत खूब...दफ्तर में इतना समय जो निकाल लेते हैं ...वरना जीने की ये कला सब के नसीब में कहां....
इस भावपूर्ण कविता के लिए हार्दिक बधाई।
बहुत सुन्दर लिखा है आपने ! गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ ज़बरदस्त प्रस्तुती!
ReplyDeletegazab magar satik prastuti.
ReplyDeleteपांडे जी!
ReplyDeleteजगबीती है ये तो.. एक पंथ के अलग अलग मुसाफिर साथ हो लिए.. एक ही ऑफिस के लिए, एक जगह से तीन गाड़ियों में बैठकर ऑफिस क्यों जाना.. एक गाड़ी में तीन लोग बैठकर जाएँ!!
अच्छा ओब्ज़र्वेशन है आपका, हमेशा की तरह!!
सभी कहते हैं
ReplyDeleteवह बहुत 'स्मार्ट' है ??????
बढ़िया प्रस्तुति |
बधाई ||
आजकल यह ‘आर्ट’ काफ़ी फल फूल रहा है। कविता में निहित अलग सोच ने प्रभावित किया।
ReplyDeleteसमय के साथ चलना ही पड़ता है। बढ़िया प्रस्तुति|
ReplyDeleteवक्त की कमी हो तो यही करना पड़ता है ..आज यही ढंग हो गया है जीने का ..यथार्थ कहती अच्छी रचना
ReplyDeleteसुन्दर कविता भाई पाण्डेय जी
ReplyDeleteआज आपका रंग देख कर झूम गये, बस आनन्द ही आ गया। कितनी जल्दी में है स्मार्ट मानव।
ReplyDeleteदेव बाबु आज के 'स्मार्ट' आदमी की पूरी कलई खोल दी है..........अजी इंसान बचे ही कहाँ है अब जो थोड़े बहुत है वो भी नए युग से जूझ रहे हैं........ये 'स्मार्ट' तो मशीने हैं.....होड़ ये है कौन ज्यादा 'स्मार्ट' है|
ReplyDeleteहैट्स ऑफ आपको इस पोस्ट के लिए|
क्या बात है ......बहुत खूब लिखा है आपने
ReplyDeleteमेरी तेरी हम सबकी रोजमर्रा की बात .काव्यात्मक अंदाज़ ,अल्फाजों की परवाज़
ReplyDeleteओह....कितना सही.....
ReplyDeleteकमाल......!!!!!
बहुत लाजवाब.
ReplyDeleteरामराम
सबका यही हाल है। शायद यह भी एक आर्ट तो है ही।
ReplyDeleteart hai tab na smart hai...
ReplyDeleteआपको अग्रिम हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. हमारी "मातृ भाषा" का दिन है तो आज से हम संकल्प करें की हम हमेशा इसकी मान रखेंगें...
ReplyDeleteआप भी मेरे ब्लाग पर आये और मुझे अपने ब्लागर साथी बनने का मौका दे मुझे ज्वाइन करके या फालो करके आप निचे लिंक में क्लिक करके मेरे ब्लाग्स में पहुच जायेंगे जरुर आये और मेरे रचना पर अपने स्नेह जरुर दर्शाए...
BINDAAS_BAATEN कृपया यहाँ चटका लगाये
MADHUR VAANI कृपया यहाँ चटका लगाये
MITRA-MADHUR कृपया यहाँ चटका लगाये
@@क्या जीने का
ReplyDeleteयही 'आर्ट' है ?..
वाह भैया वाह.गजब का दर्शन दे दिए हैं आप.
सुंदर लेखनी,हम देर से आके पछता रहे हैं,बहुत आभार.
जीवन का आर्ट ..इन शार्ट !
ReplyDeleteरोज जीता हुआ रोज मरता हुआ
ReplyDeleteअपनी ही लाश का खुद मजार आदमी
आप कहत बानी इ हई स्मार्ट................................आदमी तो स्मार्ट आदमी :( :( :( :(