गज़ल लिखने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। यह विधा मुझे बहुत कठिन लगती है। कभी कभार हिमाकत कर बैठता हूँ। गलतियाँ बतायेंगे तो सुधारने का प्रयास करूंगा। सुधार देंगे तो और भी अच्छी बात हो जायेगी।
गुजरे हैं फिर करीब से वो उठा के हाथ
करते थे बात देर तक जो मिला के हाथ
वादे पे उनके हमको इतना यकीन था
करते थे याद नींद में हम हिला के हाथ
उठ जाये ना भूल से फिर उनको देखकर
रखता हूँ अपनी जेब में अब छुपा के हाथ
मिल जायेगा अगर कहीं पहुँचा हुआ फकीर
पूछेंगे इसका राज तब हम दिखा के हाथ
करता हूँ अब तो दूर से सबको मैं सलाम
जब से गई है जिंदगी मुझसे छुड़ा के हाथ
...........................
बाप रे बहुत तगड़ा दाग दिय हो ..कहीं से कोई नुक्स नहीं लाजवाब है !
ReplyDeleteहुजूर, जेब से हाथ बाहर निकालिये और ऐसी गज़लें कागज पर उतारिये।
ReplyDeleteवादे पे उनके हमको इतना यकीन था
ReplyDeleteकरते थे याद नींद में हम हिला के हाथ
उठ जाये ना भूल से फिर उनको देखकर
रखता हूँ अपनी जेब में अब छुपा के हाथ
बहुत खूब ..प्रवीण जी सलाह पर ध्यान दीजिए
करता हूँ अब तो दूर से सबको मैं सलाम
ReplyDeleteजब से गई है जिंदगी मुझसे छुड़ा के हाथ
इस ग़ज़ल के लिए एक शब्द है .. लाजवाब!!
पोस्ट मा आप इजाजत दिहे अहैं, यहिलिये हम आपै के भावन कै यक दूसर ड्राफ्ट आपके सामने रखत अहन, बतायौ भइया कि केस लागत बाटै:
ReplyDelete“ गुजरे हैं फिर करीब से वो हाथ उठा के,
करते थे देर तक जो बात हाथ मिला के।
वादे पे उनके हमको बहोत ऐतबार था,
करते थे याद नींद में भी हाथ हिला के।
उठ जाए न भूले से कभी देख के उनको,
रखता हूँ अपनी जेब में अब हाथ छुपा के।
मिल जायगा अगर कहीं पहुँचा हुआ फकीर,
पूछेंगे इसके राज अपन हाथ दिखा के।
करता हूँ तबसे,दूर से सबको सलाम मैं,
जीवन हुआ बेगाना, जबसे हाथ छुड़ा के।
देवेन्द्र भाई ,
ReplyDeleteमज़ा आ गया आज आपकी ग़ज़ल पढ़ के, बेहतरीन भाव ....कृपया लिखते रहें ! बेहतरीन शायर और लेख़क क्लास में नहीं सीखते, जो दिल से निकले वही ग़ज़ल है !
अमरेन्द्र भाई....
ReplyDeleteआपो किये हैं मिहनत गज़ब दिल लगा के
देखें का कहत हैं फनकार अब हाथ उठा के
@जब से गई है जिंदगी मुझसे छुड़ा के हाथ
ReplyDeleteमज़ा आ गया. शानदार ग़ज़ल और ज़बर्दस्त प्रत्युत्तर! इसी को कहते हैं डबल मज़ा!
जिंदगी को समझाने कि कोशिश. सुंदर रचना.
ReplyDeleteसम्पूर्ण ग़ज़ल ।
ReplyDeleteउठ जाये ना भूल से फिर उनको देखकर
रखता हूँ अपनी जेब में अब छुपा के हाथ
बेहतरीन।
वाह, क्या बात है!! खूबसूरत ग़ज़ल!
ReplyDeleteअच्छा लिखे हैं ,और भी लिखिये ।
ReplyDeleteस्वागत करेंगे आपका , हम बढ़ा के हाथ।
उठ जाये ना भूल से फिर उनको देखकर
ReplyDeleteरखता हूँ अपनी जेब में अब छुपा के हाथ
रोमांचित कर देने वाला शेर......
आख़िरी शेर कमाल का है.
ReplyDeleteप्रस्तुति स्तुतनीय है, भावों को परनाम |
ReplyDeleteमातु शारदे की कृपा, बनी रहे अविराम ||
करता हूँ अब तो दूर से सबको मैं सलाम
ReplyDeleteजब से गई है जिंदगी मुझसे छुड़ा के हाथ
bahut khoob.
सुन्दर,और भी लिखिये.
ReplyDeleteमगर गजल की एक बात मेरी समझ मे नहीं आती कि सुरु मे एक भाव होता है,और दूसरी लाइनों मे कुछ और होता है.मगर आपकी गजल मे सुरु से अन्त तक एक ही भाव है,जो मुझे बहुत अछ्छा लगा.
चौचक है हर शेर .
ReplyDeleteवाह क्या कहने, लाजवाब.
ReplyDeleteरामराम
बढ़िया है,जारी रखें..
ReplyDeleteऐसी हिमाकत कभी कभार नहीं, बारंबार करते रहिये।
ReplyDeletelajawaab gazal.
ReplyDeleteक्या बात है, देवेन्द्र जी .
ReplyDeleteनया अंदाज़ बढ़िया लगा.
कमाल कै ग़ज़ल कहि दिहे हैं आप !!
ReplyDeleteवादे पे उनके हमको इतना यकीन था
ReplyDeleteकरते थे याद नींद में हम हिला के हाथ... bahut khoob
लाजवाब
ReplyDeleteदेव बाबू क्या बात है इतनी शानदार तो ग़ज़ल कही है आपने.......इसमें सुधार की गुंजाइश कहाँ है मुकम्मल ग़ज़ल है ...........वाह ...दाद कबूल करें|
ReplyDeleteबहुत अच्छी ग़ज़ल....
ReplyDeleteसादर...
बहुत अच्छी ग़ज़ल.... शुभकामना..
ReplyDeleteआपकी लेखनी जिस विधा को छू भर दे वो बेमिसाल हो जाता है.
ReplyDelete♥
ReplyDeleteआपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
गुजरे हैं फिर करीब से वो उठा के हाथ
ReplyDeleteकरते थे बात देर तक जो मिला के हाथ
क्या बात है देवेन्द्र जी. मज़ा आ गया. शानदार ग़ज़ल है भाई. इस शेर को अपने फ़ेसबुक स्टेटस पर डाल रही हूं, बिना पूछे :)
बहुत अच्छी ग़ज़ल|
ReplyDeleteनवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं|
करता हूँ अब तो दूर से सबको मैं सलाम
ReplyDeleteजब से गई है जिंदगी मुझसे छुड़ा के हाथ
निराश होने की जरूरत नही है । वो जिंदगी फिर वापस आकर आपका हाथ पकड़ लेगी,जाएगी कहाँ । बहुत अच्छा लगा । धन्यवाद ।
मिल जायेगा अगर कहीं पहुँचा हुआ फकीर
ReplyDeleteपूछेंगे इसका राज तब हम दिखा के हाथ
जो सुधार किया है उससे original वाला ही ठीक है ..............सबसे अच्छा जो लगा वो हमने अपने कमेन्ट में सुरक्षित किया है
बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! हर एक शब्द लाजवाब है! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को नवरात्रि पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
गज़ब रच गये भाई...और लाओ...निकालो जेब से हाथ.
ReplyDelete.... बढ़िया अंदाज़ ...देवेन्द्र जी
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