घोटाले
की खबर पढ़कर लोग तिलमिलाते हैं। चीखते हैं, “इतना बड़ा घोटाला ! यह तो बहुत
ज्यादा है।“
आतंकवादी
को फाँसी न मिलने पर लोग तिलमिलाते हैं, “देश के दुश्मन को भी फाँसी पर नहीं चढ़ा सकते! यह तो हद है।“
महंगाई
बढ़ने पर लोग तिलमिलाते हैं, “इस सरकार ने तो मार ही डाला। इतनी महंगाई ! अब तो जीना
दूभर है।”
मजे की
बात यह कि कार्टून देखकर भी लोग तिलमिलाते हैं ! अभिव्यक्ति की सीमा तय करते हैं। आरोप लगाते हैं, “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का बेजा इस्तेमाल! यह तो
देश के साथ गद्दारी है !“
मेरी समझ
में यह नहीं आता कि जब एक सीमा तक सब कुछ बर्दाश्त कर सकती है भारत की सहिष्णु
जनता तो सरकार, विपक्ष और कार्टूनिस्ट सभी अपनी-अपनी सीमा में क्यों नहीं रहते !
न तुम देश
भक्षक न हम देशद्रोही। तुम्हारी भी जय-जय, हमारी भी जय-जय। J
..........................................
अगर सभी को अपनी सीमाओं का ज्ञान होता तो फिर बात ही क्या थी फिर कोई भक्षक नहीं होता यहाँ सबके सब रक्षक ही होते... :-)
ReplyDeleteTumhari bhi Jai aur Humari bhi Jai
ReplyDeleteयथा राजा,तथा प्रजा !
ReplyDeleteसीमायें औरों के सम्मान को भी सम्मान दें।
ReplyDeleteकाश महंगाई और भ्रष्टाचार की भी सीमा तय हो जाती या फिर हम इनसे भी कह सकते सीमा में रहो ना ...
ReplyDeleteजी, शीर्षक 'असीम' इसी व्यापक अर्थ को कहने का प्रयास है।..आभार।
Deleteवो किस्सा याद आ गया देवेन्द्र भाई, जब एक औरत को लोग कुलटा और पापी कहकर पत्थर मार रहे थे और हज़रत ईसा उधर से गुज़रे... पत्थर मारने वालों से बोले कि पहला पत्थर वो मारे जिसने कभी कोई पाप नहीं किया हो.
ReplyDeleteऔर लोगों ने ज़ोर-जोर से पत्थर मारना शुरू कर दिया, यह साबित करने के लिए कि उन्होंने ने तो कोई पाप किया ही नहीं किया कभी!!!
सीमा में ही तो नहीं है कुछ ....
ReplyDeleteन तुम देश भक्षक न हम देश द्रोही ,तुम्हारी भी जै जै ,हमारी भी जै जै
ReplyDeleteकरो आरती सोनिया जी की, जै जै ,
ये राहुल की जै जै, विजय दिग की जै जै ,
करो सब की जै जै ,करो सब की जै जै .
ये बोला मौन सिंह ,करो आज जै जै .
पांडे जी बहुत खूब लाये हैं व्यंजना ,सुकून देते चित्र के साथ .
कोई सीमा नहीं है अब किसी के लिए ..महंगाई की भी नही !
ReplyDeleteवो असीम है तो उसका मतलब ये कि उसे सीमा पसंद नहीं फिर आप अपनी मर्जी उस पर कैसे थोप सकते हैं देवेन्द्र जी :)
Deleteमगन मना मानव मुआ, याद्दाश्त कमजोर |
ReplyDeleteलप्पड़ थप्पड़ छड़ी छड, चाबुक रहा खखोर |
चाबुक रहा खखोर, बड़ी यह चमड़ी मोटी |
न कसाब न गुरू, घुटाला हाला घोटी |
लेकिन दर्पण अगर, दिखा दो इसको कोई |
भौंक भौंक मर जाय, लाश पर लज्जा रोई ||
जो असीमित उड़ान भर रहे हैं वो दूसरों को सीमा में रहने की कमान दे रहे हैं...!
ReplyDeleteजो कभी लाया करते थे मांग कर
Deleteआज वे दूसरों को सामान दे रहे हैं :)
आभार।
ReplyDeleteधन्यवाद कविराज।
ReplyDeleteअगर खुद सम्मान चाहते हो तो दूसरों को भी देना सीखें जब खुद में कमी है तो दूसरो में भी कमी ही दिखाई देगी बहुत अच्छा लिखा आपने
ReplyDeleteशिश्रक पढकर लगा था की कुछ असीम से ही कहा जा रहा है,मगर ये तो नेताओं से कहा गया है.जिनमें नैतिकता नाम की कोई चीज ही नहीं,वो अनैतिकता की सीमा में कैसे रहें ?
ReplyDeleteसीमा ही तो नहीं रही अब ... बेलगाम हैं सब .. पर फिर भी जिसकी लाठी उसी की भैंस है ...
ReplyDeleteजाहि बिधि राखे राम, ताहि बिधि रहिये।
ReplyDeleteसही चिपका दी देव बाबू.....सीमा कौन तय करेगा....सबको जय जय चाहिए :-))
ReplyDeleteसच कहा..
ReplyDeleteसत्य कथन..... अपनी अपनी सीमा सभी को निधारित करनी होगी.
ReplyDeleteचर्चित आलेख :)
ReplyDeleteसही कहा ! मगर अगर इतनी जो समझ होती तो फिर बात ही क्या थी !
ReplyDeleteACT OF LIMITATION HAS BEEN COLLAPSED .....NO LIMITS FOR REPAIRING....
ReplyDelete.
अंधेर नगरी चौपट राजा... :)
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