24.5.20

बच्चे

रोटी पर बैठकर
उड़े थे
कोरोना खा गया रोटी
पैदल हो गए
सभी बच्चे

तलाश थी
ट्रेन की, बस की
कुचले गए
पटरी पर, सड़क पर

हम
धृतराष्ट्र की तरह
अंधे नहीं थे
देखते रहे दूरदर्शन
देखते-देखते
मर गए
कई बच्चे!

शहर से
पहुँचे हैं घर
बीमार हैं, लाचार हैं
जागते/सोते
देखते हैं स्वप्न...
रोटी का सहारा हो तो
उड़ चलें
फिर एक बार
यहाँ तो
डर है! नफरत है!
कैसे रहें?
..........

4 comments:

  1. हालात का सटीक, सच, कडुवा और मार्मिक चोत्रण है इस रचना में ...
    उफ़ ... क्या त्रादसी है ..

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  2. मार्मिक रचना

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  3. कोरोना की भेंट सारी दुनिया में कितने प्राण चढ़ गए इसकी कोई गिनती ही नहीं है, विकसित, विकासशील, गरीब, अमीर सभी देशों के बाशिंदे, छोटे बच्चे,वृद्ध सभी को इस वायरस ने पीड़ित किया है. सरकार और समाजसेवी संस्थाएं जितना हो सकता है मदद कर रही हैं, पर यह इतनी बड़ी समस्या है कि इसका हल समय के साथ ही होगा।

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