11.5.20

मन बेचैन

मध्य रात्रि का समय है
जारी है बारिश की टिप-टिप
सावन भादों की नहीं
जेठ की बारिश है
अभी तीन दिन पहले ही थी
वैशाख पूर्णिमा।

रात को
आँधी आई थी
रह रह चमक रही है बिजली
गरज रहे हैं बादल
जारी है बूँदा-बाँदी
घण्टों से गुल है
बिजली
ताकत भर जलकर
खतम हो चुका है
इनवर्टर भी
बाहर/भीतर अँधेरा है
घुप्प अँधेरा।

नींद नहीं आ रही
बाहर
झरते हुए पानी का संगीत है,
हवा से लहराते
वृक्षों की शाखों का शोर है
भीतर
गहरा सन्नाटा है
रह रह
खुली खिड़की से आकर
मुझे छू कर
अंधेरे में गुम हो जाते हैं
ठंडी हवा के झोंके।

क्या करूँ?
मोबाइल में बैटरी तो है
नई फिल्म देखना शुरू करूँ?
मित्रों के फेसबुक/वाट्सएप स्टेटस पढूँ?
कितना पढूँ?
कोरोना का अपडेट तो देख लिया
कितना देखूँ?

मन कर रहा है
उठकर
बाँसुरी बजाऊँ!
नहीं,
बवाल हो जाएगा
जग जाएंगे
गहरी नींद में सोए
घर/पड़ोस के
सभी भूत।

जब मेरे पास कोई समाधान नहीं है तो
आप क्या बताएंगे कि मैं
क्या करूँ? 😢

सोचता हूँ
वो बड़ी खोपड़ी वाला चाणक्य
पूरे मगध की नींद उड़ाकर
कैसे सो पाता था
गहरी नींद!
..............

4 comments:

  1. किंडल पर कोई किताब क्यों नहीं पढ़ ली, या इयरफोन लगाकर संगीत ही सुना होता, सबसे अच्छा तो यह था कि नींद लाने वाला कोई ध्यान का वीडियो चलाकर गहरी श्वास का अभ्यास किया होता, खैर, यह सब किया होता तो इस कविता का जन्म नहीं होता

    ReplyDelete
    Replies
    1. चाणक्य का जिक्र कर कर्म योगी बनने की ही सलाह दिया था।

      Delete
  2. सोचिये कुछ निकले तो बता दीजिये दूसरों के भी काम आयेगा। सुन्दर।

    ReplyDelete
  3. मौजूदा हालात का सुन्दर चित्रण

    ReplyDelete