15.10.11

भिखारी



धँसी आँखें
पिचके गाल
पेट-पीठ एकाकार
सीने पर हड़्डियों का जाल
हैंगरनुमा कंधे पर झूलता
फटेला कंबल
दूर से दिखता  
हिलता-डुलता कंकाल
एक हाथ में अलमुनियम का कटोरा
दूसरे में लाठी
बिखरे बाल
चंगेजी दाढ़ी
सड़क की पटरी पर खड़ा था
एक टांग वाला
भिखारी।

मुसलमान को देखता
फड़फड़ाते होंठ...
अल्लाह आपकी मदद करे !
हिंदू को देखता
फड़फड़ाते होंठ...
भगवान आपकी मदद करे !

प्रतीक्षा..प्रतीक्षा...लम्बी प्रतीक्षा
एक सिक्का खन्न....
कटोरा ऊपर
सर शुक्रिया में झुका हुआ

प्रतीक्षा..प्रतीक्षा...लम्बी प्रतीक्षा
एक सिक्का खन्न.....
नमस्कार की मुद्रा

देखते-देखते रहा न गया
एक सिक्के के साथ
उछाल दिया कई प्रश्न...!

कभी राम राम, कभी सलाम
क्यों करता है इतना स्वांग ?
कौन है तू
हिंदू या मुसलमान ?

एक पल 
हिकारत भरी नज़रों से घूरता
अगले ही पल
बला की फुर्ती से
लाठी के बल झूलता
संयत हो
अलग ही अलख जगाने लगा
भिखारी
अंधे को आईना दिखाने लगा....

जहां इंसान नहीं
हिंदू और मुसलमान रहते हों
भीख भी
धर्म देख कर दी जाती हो
नाटक करना
पापी पेट की लाचारी है
क्योंकि आपकी तरह
बहुत से पढ़े लिखे नहीं जान पाते
कि मांगने वाला
सिर्फ एक भिखारी है।
.....................................

30 comments:

  1. जहां इंसान नहीं
    हिंदू और मुसलमान रहते हों
    भीख भी धर्म देख कर दी जाती हो
    नाटक करना पापी पेट की लाचारी है
    क्योंकि आपकी
    तरह बहुत से पढ़े
    लिखे नहीं जान पाते कि मांगने वाला सिर्फ एक भिखारी है।

    बहुत मर्मस्पशी और सार्थक पंक्तियाँ हैं इस रचना की .....आपका आभार !

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  2. मार्मिक चित्रण!

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  3. wah re bhikhari........pet hindu muslim thori pahchan pata!

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  4. बेहतरीन प्रस्‍तुति।
    पेट की भूख मजहब को नहीं जानता.... पर क्‍या करें ये स्‍वांग करना जरूरी हो जाता है....

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  5. समझदारी आ ही जाती है .... :-)
    शुभकामनायें !

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  6. धर्म से परे है उनकी पीड़ा।

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  7. सार्थक व सटीक लेखन ...।

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  8. "जहा इन्सान नहीं,हिन्दु या मुसलमान रहते हों" ....बहुत सुन्दर ,यहाँ इन्सान नहीं रहते,इंसान की जगह ये समाज कोई न कोई लेबल लगे हुए आदमी की सख्या बढाता जा रहा है.
    हिन्दू,मुस्लिम,सिख्ख,इशाई आदि लेबल लगे हुए लोगों की भीड मे इन्सान दूज के चाँद जैसी घटना हो गई है.

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  9. भैया , बात तो बहुत सुन्दर कही है । लेकिन कम से कम दिल्ली में तो ऐसे पाक साफ भिखारी नहीं मिलते ।

    गठीला बदन , फुर्तीली चाल
    रेशमी कुर्ता , घुंघराले बाल ।

    अक्सर ऐसे एक भिखारी को हर शनिवार को देखता हूँ --जय शनिदेव कहते हुए ।

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  10. विज्ञापन का दौर है, बेंचे बात बनाय |
    मरती जब इंसानियत, राम-रहीम सहाय ||

    कृपया इस तुरंती को तुषारापात से बचाएं |

    बहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
    शुभ-कामनाएं ||

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  11. पेट का सिर्फ़ और सिर्फ एक ही धर्म है 'रोटी'
    बहुत सारे सवाल खड़े करती सुन्दर रचना ...

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  12. यह तो तगड़ी चोट कर दी आपने ..गिरेबान में देखने के लिए कवि ने विवश कर दिया है

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  13. insaan se bada koi dharam nahi..
    marmsparshi rachna..
    jai hind jai bharat

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  14. पूरी मानवता के लिए कलंक... .और हम देखते रह जाते हैं...

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  15. आज के समाज का सच्चा प्रतिबिम्ब!

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  16. गहन मार्मिक भावों की सुन्दर प्रस्तुति
    ह्रदय को स्पर्श कर गयी पाण्डेय जी !

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  17. भिखारी के लिए कौन सा धर्म उसका है , उसका धर्म तो पेट भरना है , कही से भी कैसे भी !
    एक भिखारी की पीड़ा को शब्दों ने अभिव्यक्त किया !

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  18. बहुत मर्मस्पशी और सार्थक रचना. आपका आभार.

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  19. एक मर्मस्पर्शी/सार्थक रचना...
    सादर....

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  20. bhikhari par pahli baar sahityik rachna padhi....aap kavita par dhyan do ,achchha scope hai !

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  21. laajawaab rachna.....

    antim para behad khubsoorat....

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  22. एक नया सम्प्रदाय दिखा दिया आपने... हमारे रहनुमाओं की दृष्टि में यह फार्मूला अभी तक नहीं आया है... दुनिया के भिखारियों एक हो का नारा किसी ने नहीं दिया है.. इस बैंक पर किसी पार्टी की निगाह कब पड़ेगी!!
    पांडे जी एक ज़माने में यह डायलोग प्रेम चोपरा बोला करते थे.. मगर आज आपने इसे नई व्याख्या दे दी है!!

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  23. बहुत प्रभावशाली रचना ..

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  24. ये काम भी आसान तो नहीं।

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  25. ज़बरदस्त चोट करती ये मार्मिक पोस्ट लाजवाब है पर ज़रा संभल के देव बाबू यहाँ भिखारियों के भेष में चरसिये और स्मैकियों की कमी नहीं है ..........हैट्स ऑफ इस पोस्ट के लिए |

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  26. हा छोटा भिखारी क्योकि बड़े तो यो है जिनसे वो मांगता है |

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  27. भूख और पेट के आगे क्या धर्म ... साक्षात नक्शा खींच दिया है देवेन्द्र जी ...

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