2.9.12

पाप नहीं कटता


बचपन से सुनता आया हूँ कि गंगा में डुबकी लगाने से समस्त पाप कट जाते हैं। पंचकोसी की परिक्रमा करने से पाप कट जाते हैं। काशी के मणिकर्णिका घाट में अंतिम क्रिया संपन्न हो तो मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। इतना ही नहीं सिर्फ राम का नाम लेने से ही पाप कट जाता है! फिर सोचता हूँ कि यदि इतनी आसानी से पाप काटा जा सकता है तो पाप करने में हर्ज ही क्या है ? जमकर पाप किया जाय और जब गठरी बड़ी हो जाय तो गंगा में डुबकी लगा ली जाय। हर गंगे कहने से पाप तो कट ही जायेगा। मुझे लगता है पाप कटाने की यह अवधारणा ही गलत है। यह सोच ही भयंकर है। मंदिरों में कुछ तो बड़ी श्रद्धा से धन्यवाद का भाव लेकर जाते हैं मगर अधिकांश मनोकामनाओं का अंबार लेकर पुन्य की झोली भरने या फिर पापों की गठरी खाली करने जाते हैं। भीढ़ लगी रहती है मंदिरों में पाप कटाने वालों की। धार्मिक अनुष्ठानों के द्वारा पाप कटाया जाता है। इसे प्रायश्चित करना कहते हैं। क्या यह संभव है?

मुझे लगता है पाप इतनी आसानी से काटा या कटाया नहीं जा सकता। जैसा पाप करेंगे वैसी सजा जरूर मिलती है। पाप के बीज अंकुरित होते हैं, बड़े होते हैं और फल बनकर फूटते हैं। फल तो चखना ही पड़ता है। आप चखें, आपके बच्चे चखें या पूरा समाज चखे। यह हो सकता है कि आपने पाप किया, घर में बीज अंकुरित होने के लिए छोड़कर धरती से कूच कर गये, पुत्रों ने अपने पुन्य कर्मों के द्वारा अंकुरित हो रहे बीजों को वहीं नष्ट कर दिया। या यह भी हो सकता है कि पुत्रों ने उसमें और खाद पानी दे दिया, पाप का बीज धीरे-धीरे घने वृक्ष में परिवर्तित हो गया। पुत्र की जिंदगी भी जैसे-तैसे कट गयी लेकिन जब पौत्र की बारी आयी तब तक पाप के वृक्ष ने फल गिराने प्रारंभ कर दिये। समाज ने देखा कि मासूम बच्चे ने कोई पाप नहीं किया लेकिन बहुत कष्ट उठा रहा है। पंडित जी ने झट से निष्कर्ष दे दिया....यह सब पूर्व जन्म के पापों का फल है!” जबकि ये पाप उसके पूर्व जन्मों के नहीं उसके दद्दू के थे। पुत्र या पौत्र तो मात्र उदाहरण के तौर पर कहा जा रहा है। यह बात समाज के दृष्टि से सोचिए, राष्ट्र या संसार के पटल पर रख कर सोचिए तो और भी स्पष्ट होती नज़र आयेगी। समाज में कोई एक पाप करता है और फल सभी को भोगने पड़ते हैं। कोई एक पुन्य करता है आनंद का अहसास सभी को होता है।

विश्व पटल पर सोचें तो हमारे सामने पाप पुन्य के कई उदाहरण मिल जायेंगे जिसमे एक के पाप कर्मों की सजा अनेको ने पाई है या इससे उलट एक के पुन्य कर्मों का फल सभी ने चखा है। बिजली, रेल, हवाई जहाज और भी असंख्य वैज्ञानिक आविष्कार किसी एक राष्ट्र के किसी एक वैज्ञानिक ने किये मगर उसका आनंद समस्त विश्व ले रहा है। हिरोशिमा और नागासाकी में परणाणु बम अमेरिका ने गिराये। फल लाखों निर्दोष जनता को भोगना पड़ा लेकिन क्या अमेरिका इस कलंक से कभी मुक्त हो पाया ? क्या कभी मुक्त हो पायेगा ? जितना बड़ा पाप, उतना बड़ा कलंक। जितना बड़ा पाप, उतना बड़ी सजा। पाप इतनी आसानी से काटा ही नहीं जा सकता। हाँ, आप सच्चे मन से अच्छे हो जांय तो यह हो सकता है कि आपकी पाप करने की प्रवृत्ति सुधर जाय। आपका हृदय परिवर्तित हो जाय। आपने जो पाप किये हैं वो यदि छोटे हैं तो हो सकता है आप जीवन के शेष वर्षों में अपने सतकर्मों से उसे वहीं नष्ट कर दें। घर, समाज या राष्ट्र स्तर पर किसी निर्दोष को उसका फल चखने के लिए बाध्य न होना पड़े। इस अंश तक तो माना जा सकता है कि पाप कट गया। लेकिन यह तो हर्गिज नहीं हो सकता कि पाप किया, गंगा में डुबकी लगायी, समझा की पाप धुल गया है फिर अपने पाप कर्मों पर लगे रहे। यदि ऐसा करते हैं तो पाप धुलता नहीं, पाप के बीज और तेजी से अंकुरित होते है। एक न एक दिन तो उसका फल भोगना ही पड़ेगा।

गंगा मे ऐसे पाप जरूर धुले जा सकते हैं जो पाप हैं ही नहीं। पंडित जी ने कहा यह पाप है और आपने मान लिया कि अनर्थ हो गया! झट से गंगा जी में कूद पड़े और निर्मल होकर बाहर निकल आये। जैसे किसी दीन हीन को कष्ट में देखकर आपने उसकी मदद करी और पंडित जी ने कहा..पापी! तुमने मलेच्छ को छू लिया? तुमने भयंकर पाप किया है!” और आप गंगा में डुबकी मार कर पवित्र हो गये। ऐसे मूर्खता पूर्ण पाप ही ऐसे मूर्खतापूर्ण पुन्य कर्मों के द्वारा धोये या साफ किये जा सकते हैं।

कई बार तो समाज में यह भी देखने को मिलता है कि जो पुन्य है उसी को हम पाप मानकर जीते चले जाते हैं। पंचायत ने कहा और मान लिया कि यह पाप है। पंडित जी ने कहा और हमने मान लिया कि यह पाप है। जबकि होता यह है कि वही वास्तविक पुन्य कर्म होते हैं जो ईश्वर ने आप से अनजाने में करा दिये। ईश्वर की कृपा कि किसी सुंदर युवक को किसी विधवा से प्रेम हो गया। दोनो ने विवाह करने का निश्चय किया मगर पंचायत ने कहा..यह तो घोर पाप है!” ईश्वर की कृपा कि किसी नीच जाति की युवती को सुंदर ब्राह्मण कुमार से प्रेम हो गया। दोनो ने विवाह का निश्चय किया मगर समाज ने कहा..घोर पाप है!” किसी विवाहिता स्त्री ने लगातार दूसरी बार सुंदर कन्या को जन्म दिया, पूरे घर वाले रोने लगे कि यह तो किसी भयंकर पाप का परिणाम है!  पंचायत द्वारा या पंडित जी द्वारा पाप माने जाने वाले कई मानवीय पुन्य कर्मों का प्रायश्चित उनके ही द्वारा बताये गये धार्मिक अनुष्ठानों के द्वारा सामाजिक भयवश करते हुए कितने ही परिवार पूरी जिंदगी बिता देते हैं और ईश्वर के आगे दुखड़ा रोते रहते हैं कि हे ईश्वर ! हमे सुखी रख्खो, हम बहुत कष्ट में हैं।

मैने अभी कुछ दिन पहले अंतर्जाल में, (वीरू भाई के ब्लॉग में) पढ़ा था कि वहां अमरीका में लोग कुत्ते को घुमाने के लिए ले जाते हैं तो साथ में पॉलिथीन भी लिये रहते हैं। कुत्ते ने विष्ठा किया तो तुरंत पॉलिथीन में उठाकर रख लेते हैं और घर लौटकर उसे डस्टबीन में डाल देते हैं। वे अपनी गंदगी समाज को देना नहीं चाहते। हम ठीक इससे उल्टा करते हैं। अपना घर साफ करते हैं और गंदगी घर के बाहर फेंक आते हैं। हम गंगा से अपेक्षा करते हैं कि वे हमारे सभी पाप काट दें मगर गंगा को मैली करने का कोई अवसर नहीं चूकते। सोचिए, हम पुन्यात्माओं की यह कितनी असभ्य सामाजिक सोच है। हमारी सोच ऐसी, हमारे कर्म ऐसे और हम बड़े पुन्यात्मा, धार्मिक बने ऐंठते रहते हैं संसार में। पाप पर पाप करते चले जा रहे हैं और गोते मारकर धोते चले आ रहे हैं। हमको किसी से डरने की क्या जरूरत ? हमारे पास गंगा है पाप धोने के लिए और मणिकर्णिका की स्वर्ग उड़ान पट्टिका में मोक्ष का आरक्षण तो हमने करा ही लिया है। J
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जनसत्ता में प्रकाशित। दिनांकः 24-09-2012

31 comments:

  1. हमारा क्या होगा, हमारा तो आरक्षण भी नहीं है...

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  2. अंजाने में हो गया होता है जो
    वो हल्का होता है धुल जाता है
    जानबूझ कर किया गया पाप
    चिपक जाता है आत्मा से भी
    गंगा फिर भी कोशिश करती है
    पर करने वाला नहीं छुड़ा पाता है
    ऎसा कुछ ये मंदबुद्धि बता पाता है !

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  3. समय के साथ पाप-पुण्य की परिभाषाएं बदलती रहती हैं.
    पाप एक बहुत ही strong word है. छोटी-छोटी गलतियाँ पाप के दायरे में नहीं आतीं...और पाप करने वाले को अपने किए की देर सबेर सजा जरूर मिल जाती है.

    गन्दगी का आलम तो क्या कहें...civic sense की कमी तो लोगों में है ही और जनसँख्या को भी कब तक दोषी ठहराते रहें...बस यही लगता है कि गाँव के गाँव खाली होते जा रहे हैं और शहरों में लोग ठुंसे पड़े हैं.
    हमारे गाँव सुख सुविधा से परिपूर्ण बनें ..गाँवों से लोगों का पलायन रुक जाए. शहरों पर बोझ कम हो तो शायद साफ़-सफाई भी देखने को मिले.

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  4. गंगा स्नान पर बैन लगा देना चाहिए .
    कम से कम गंगा तो मैली होने से बच जाएगी .

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  5. राम तेरी गंगा मैली हो गई ,पापियों के पाप धोते धोते ......अब तो गंगा के लिए पिंड दान करने का वक्त आ गया है और ये पण्डे अभी भी यजमान की तलाश में घात लगाए बैठे रहतें हैं .

    कबीर को लोग पौँगा पंडित न समझ बैठें इसीलिए वह आखिरी वक्त काशी छोड़ कर भाग खड़े हुए .

    काशी करवट अपने बुजुर्गों को दिलवाने वाला समाज कौन -कौन से पापों से निवृत्त हो सकेगा गंगा स्नान से जब की गंगा में तो ऋषिकेश से ही ई .कोली का डेरा शुरु हो जाता है .घुलित ऑक्सीजन तो बनारस आते आते पूरी तरह चुक जाती है .बच के रहियो गंगा से छाजन हो जाएगा इसमें स्नान ध्यान से .

    बहुत बढिया व्यंग्य किया है आपने समाक के कर्मकांडी पाखंड पर अंधविश्वास पर ,लूट मार ठगी का केंद्र बन गए हैं हमारे ये स्थल जहां पुजारी जौंक की तरह चिपटते हैं पर्यटकों से .सरकार को कुछ करना चाहिए अब तो यह भी नहीं कह सकते .सरकार खुद रिमोटिया है .

    गंगा नहाए तप मिले ,तो मैं नहाऊ गंगोत्र (एंटार्कटीका समुंद ),
    तर लें सभी प्रपोत्र ,शुद्ध होय सब गोत्र .

    ram ram bhai
    रविवार, 2 सितम्बर 2012
    सादा भोजन ऊंचा लक्ष्य
    सादा भोजन ऊंचा लक्ष्य

    स्टोक एक्सचेंज का सट्टा भूल ,ग्लाईकेमिक इंडेक्स की सुध ले ,सेहत सुधार .

    यही करते हो शेयर बाज़ार में आके कम दाम पे शेयर खरीदते हो ,दाम चढने पे उन्हें पुन : बेच देते हो .रुझान पढ़ते हो इस सट्टा बाज़ार के .जरा सेहत का भी सोचो .ग्लाईकेमिक इंडेक्स की जानकारी सेहत का उम्र भर का बीमा है .

    भले आप जीवन शैली रोग मधुमेह बोले तो सेकेंडरी (एडल्ट आन सेट डायबीटीज ) के साथ जीवन यापन न कर रहें हों ,प्रीडायबेटिक आप हो न हों ये जानकारी आपके काम बहुत आयेगी .स्वास्थ्यकर थाली आप सजा सकतें हैं रोज़ मर्रा की ग्लाईकेमिक इंडेक्स की जानकारी की मार्फ़त .फिर देर कैसी ?और क्यों देर करनी है ?

    हारवर्ड स्कूल आफ पब्लिक हेल्थ के शोध कर्ताओं ने पता लगाया है ,लो ग्लाईकेमिक इंडेक्स खाद्य बहुल खुराक आपकी जीवन शैली रोगों यथा मधुमेह और हृदरोगों से हिफाज़त कर सकती है .बचाए रह सकती है आपको तमाम किस्म के जीवन शैली रोगों से जिनकी नींव गलत सलत खानपान से ही पड़ती है .

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  6. बहुत सुन्दर, सार्थक प्रस्तुति!

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  7. शायद लोगों को जगाने के लिये और सोचने पर विवश कर देता आलेख.

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  8. गीता में भगवान ने कहा हि कि जीवन के अंत समय में व्यक्ति जो भी इच्छा करता है, अगले जन्म में उसे वह अवश्य मिलती है. शायद इसीलिए मृत्युदंड से पूर्व अंतिम इच्छा का प्रावधान रहा होगा. लेकिन इस बात में एक ट्विस्ट भी है, क्या कोई सारा जीवें पाप करने के बास अंत समय में भगवान का नाम लेकर क्या भगवान को प्राप्त कर सकता है..
    शायद नहीं.. जिसने सारी ज़िंदगी पाप किये हों अंत समय में भी उसके मन में पाप ही रहेगा (ह्रदय परिवर्तन के फ़िल्मी अपवाद को छोडकर).. और आज समाज में तो पाप के कितने रूप हैं कि शायद भगवान के उतने रूप नहीं.. बहुत खूब!!

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  9. बहुत सही विश्लेषण किया ...पाप इतनी आसानी से नहीं धुलते ....नदियों के रख रखाव के प्रति जागरूक करती अच्छी पोस्ट

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  10. बहुत ख़ूब!
    आपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 03-09-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-991 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  11. हम अपनी गंदगी दूसरे पर डाल दे,और उससे आपेक्षा रखे,,,कि,,,,,,,,
    सटीक शानदार विश्लेषण,,,,

    RECENT POST-परिकल्पना सम्मान समारोह की झलकियाँ,

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  12. क्या संयोग है ! सिविक सेन्स के बारे में मैंने भी आज अपने फेसबुक स्टेटस में लिखा है. रही बात पाप-पुण्य की, तो मेरे पिताजी भी यही कहते थे कि हर पाप का दण्ड ज़रूर मिलता है और इसी दुनिया में मिलता है. कभी हम उसे देख पाते हैं और कभी नहीं देख पाते.
    ये भी बात सही है कि हमारे धर्मग्रंथों में अजीब-अजीब बातों को पाप कहा गया है और उसके विचित्र प्रायश्चित्त भी बताए हैं. मुझे ये सब बकवास लगता है. मुझे भी यही लगता है कि पाप का दण्ड अवश्य मिलता है. इसका कोई प्रायश्चित्त नहीं हो सकता. हाँ, पश्चात्ताप करने से मन को शान्ति अवश्य मिलती है.

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  13. बहुत अच्छा आलेख, पढकर मन प्रसन्न हुआ। इन सब बातों पर न केवल चिंतन और विमर्श की आवश्यकता है बल्कि उसे आचरण में लाने की आवश्यकता है। जब तक हम लोग नैतिकता, समझ और सामान्य सामाजिक व्यवहार के न्यूनतम स्तर से ऊपर नहीं उठेंगे हमारी परम्पराओं में वर्णित अनेक अवधारणाओं को उनके सही रूप में समझ भी नहीं सकते, पाप काटना तो बहुत दूर की बात है। लेकिन पाप कट सकते हैं, प्रायश्चित किया जा सकता है, यह भी एक सच्चाई है - हाँ पाप काटने के लिये गंगा को या मन को मैला करने की ज़रूरत नहीं।

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  14. प्रायश्चित सिर्फ उसी अपराध का हो सकता है जो अनजाने में , मासूमियत में हुआ ... जानबूझ कर किये गये पाप का प्रायश्चित आत्मसंतुष्टि दे सकता है , मगर परिणाम भुगतना ही होता है .
    अपने पाप उतारने के लिए कम से कम नदियों को अब बख्श देना चाहिए!
    स्वस्थ पर्यावरण के प्रति जागरूक करती पोस्ट !

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  15. ..आजकल पापनाशन के लिए बकायदा पंडितों,पंडों और पुरोहितों के पास अलग-अलग पैकेज हैं.सोचने वाली बात यह है कि बहुत सारी आबादी इनके फेर में पड़ी हुई है.
    ...और ज़्यादा कुछ नहीं कहूँगा नहीं तो एकठो 'सत्यनारायण-कथा' का आयोजन करना पड़ेगा !

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  16. मौज लिए जाओ .... पुन्य पाप में पड़ोगे तो दुःख पाओगे.... यह मन को समझा चल पड़ता हूँ.


    पाप-पुण्य की सरीता बीच गोता खाता सुंदर आलेख के लिए साधुवाद स्वीकार करें.

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  17. जागरूकता फैलाती बहुत अच्छी पोस्ट..
    :-) :-)

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  18. इस गहन पोस्ट के लिए आभार.....सच यही है जो भी हम करते हैं वो कई गुना लौट कर हमारे ही पास आ जाता है वो चाहे पाप हो या पुण्य ।

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  19. गंगा को तो कम से कम पवित्र ही रहने देन सब तो कुछ पाप अपने आप ही कम हो जायंगे ,... लोगों के भी और आने वाली संतानों के भी ...

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  20. इन पाखंडों पर निरंतर लिखते रहना ज़रूरी है .प्रायश्चित होता है दृढ निश्चय से पाप दोबारा न करने के ,किये को कुबूलने से ,प्रदूषित गंगा में नहाने से नहीं जिसे कर्म कांडी लोगों ने बे -तहाशा गंदा करवाया हुआ है कर कर पिंड दान .

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  21. बहुत तार्किक ढंग से आपने अपनी बात कही और पूर्णत: सच भी है ......

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  22. परम्परागत रूप से गंगा में नहाने से पाप धुल जाने की बातों में कोई दम नहीं है.बिलकुल ठीक लिखा आपने.
    पाप और पुण्य....किस कर्म को पाप कहें और किसे पुन्य ? समाज द्वारा निर्धारित पाप और पुन्य सब बकवास हैं.आदमी जो भी करेगा,चाहे गलत काम या अछ्छे काम,फल उसे तुरंत मिलता रहता है.जैसे ,यदि आग में उंगली रखे तो तुरंत जल जाती है.झूठ बोलने से मन पूरी तरह हंस नहीं पाता,झूठ से उसका मन बोझिल बना रहता है.कोई किसी की ह्त्या करता है तो ये बात उसके मन को कचोटती रहेगी,मनोवैज्ञानिक तल पर वो चैन से नहीं जी पायेगा.

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  23. बड़े गहन विषय को बड़े सरल ढंग से रख दिया आपने !

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  24. sahi bat hai ganga men nahane se pap dhul jaye ye bhi papi man ka hi bharam hai ....mai to jab ganga maiya men dubki lagati hoon to lagta hai ki apni maa ke aanchal tale sukh ke sagar men dubki laga rahi hoon ...

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  25. गंगा है, इसीलिये तो हम ऐन्ठे ऐन्ठे फ़िरते हैं। कुछ भी कर लेंगे, गोता लगायेंगे और फ़िर पुण्यात्मा बन जायेंगे।

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  26. आपकी समीक्षा मुझे बहुत अच्छी लगी उसमें आपकी आत्मा की बेचैनी भी साफ़ झलकती है.

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  27. सहमत हूँ।
    एक के पाप/अपराध की सजा सारा संसार भी भुगत सकता है और अकेला पापी/अपराधी भी। अफगानिस्तान को जो थोक के भाव अमेरिका ने पाकिस्तान के माध्यम से हथियार दिए थे उनका उपयोग तालिबान ने अमेरिका व पाकिस्तान के विरुद्ध भी किया व शेष संसार के भी। ईराक पर हमला कर जो अस्थिरता पैदा की गई उसका मूल्य भी सारा संसार व अमेरिका दोनों चुका रहे हैं।
    सब चलता है व कोई नृप होए हमें क्या हानि की संस्कृति के अन्तर्गत भारतीय आँखें मूँदे बैठे रहे और बाड़ खेत खा गई। अब अचानक कुछ लोगों की तन्द्रा टूटी है।
    हमारे पूर्वजों व हमने जो सामूहिक अपराध किए हैं उनकी सजा भी हम व हमारी आने वाली पीढ़ियाँ भुगतेंगी।
    जैसे हर एक्शन का रिएक्शन होता है वैसे ही हर अपराध की सजा समाज को मिलती ही है। हाँ, कई बार प्रायश्चित करने से सजा कम हो जाती है।
    घुघूती बासूती

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  28. @फिर सोचता हूँ कि यदि इतनी आसानी से पाप काटा जा सकता है तो पाप करने में हर्ज ही क्या है ? जमकर पाप किया जाय और जब गठरी बड़ी हो जाय तो गंगा में डुबकी लगा ली जाय। ‘हर गंगे’ कहने से पाप तो कट ही जायेगा|
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    समस्या यही है कि हर हिन्दू न केवल ऐसा सोचता है, पर अमल भी करता है! :-(

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  29. असहमत होने का कोई प्रश्न ही नहीं

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