11.9.16

मैं न देखता तो....

एक चिड़िया बैठी
नीम की शाख पर
झर गया
एक पत्ता
न चिड़िया चहकी
न आवाज हुई
मैं न देखता तो
पता ही नहीं चलता
आप न पढ़ते तो
जान ही नहीं पाते
एक गिलहरी
ढूंढ रही है
डस्टबीन में
खाना
कुछ पा लिया है उसने
मुँह में दबाकर
भाग गई
खामोशी से
मैं न देखता तो
पता ही नहीं चलता
आप न पढ़ते तो
जान ही नहीं पाते
छांह
रेंगने लगी घांस पर
भाग रहा है
आकाश में
बादल का एक टुकड़ा
मैं न देखता तो
पता ही नहीं चलता
आप न पढ़ते तो
जान ही नहीं पाते
नंगे पांव
दौड़ती आई
एक बच्ची
बैठ गयी बेंच पर
देखने लगी
आँखें फाड़कर
तार पर बैठी चिड़िया को
चमकने लगा
उसका चेहरा
गजब थी
उसके चेहरे की
खुशी!
मैं न देखता तो
पता ही नहीं चलता
आप न पढ़ते तो
जान ही नहीं पाते
.........

22 comments:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है क्षणिक ,परिवर्तनशील संसार के प्रति ।

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  2. इसको कहते है सही अर्थों मे शब्द-चित्र खींचना... और वो भी इतना ख़ूबसूरत कि बस मन मुग्ध हो जाए! देवेन्द्र भाई कभी कभी सोच में पड़ जाता हूँ कि आपकी बैटिंग (कविताएँ) की तारीफ़ करें कि बोलिंग (गद्य) की! सचमुच ऑल-राउंडर हैं आप!

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  3. बहुत बढ़िया

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  4. लगा जैसे सच में कोई चिड़िया चहकी हो ,प्यारी गुड़िया देखकर ..

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  5. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "ये कहाँ आ गए हम - ब्लॉग बुलेटिन“ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  6. ऐसे ही बहुत कुछ घटता रहता है जीवन में दिखाई न दे तो घटना नहीं बन पता .... अच्छी रचना ...

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  7. अनुभव देखने बाँटने से ही अनुभव बढ़ते हैं, कुछ और जानने समझने पाने का उपक्रम बना रहता है

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  8. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (12-09-2016) को "हिन्दी का सम्मान" (चर्चा अंक-2463) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  9. मैं न देखता तो पता ही नहीं चलता (कि आपने पोस्ट लिखी हैं)....मैं न तारीफ न लिखता तो आपको पता ही नहीं चलता कि मैंने पढ़ी भी है और मुझे अच्छी भी लगी है!...यानि दिखना ही होना है!!

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  10. नहीं...दिखना ही होना नहीं है। दिखाना भी जरूरी नहीं है। जो होना है वह होना है। मगर देखना,समझना, महसूस करना जरूरी है। आनंद आता हे। आनंद आने के बाद खुशी मिलती है और इसी खुशी को व्यक्ति मित्रों में बांटता है।

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  11. नहीं...दिखना ही होना नहीं है। दिखाना भी जरूरी नहीं है। जो होना है वह होना है। मगर देखना,समझना, महसूस करना जरूरी है। आनंद आता हे। आनंद आने के बाद खुशी मिलती है और इसी खुशी को व्यक्ति मित्रों में बांटता है।

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  12. वाह, खुशी तो बांटने की चीज़ है और दर्द मिटाने की

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