मिर्जा को शिकायत है कि हम राजनीति पर नहीं लिखते! मैं पूछता हूँ- राजनीति में लिखने लायक शेष बचा ही क्या है ? कीचड़ में कंकड़ फेकना और एक दूसरे के मुख पर उछालने की उमर नहीं रही। बचपन में करते थे लंठई मगर इतनी तो तब भी न होती थी।
अपने पास न बड़ा कुनबा, न धार्मिक कट्टरता, न जातिवादी मानसिकता, न आम आदमी सरीखी खास बनने की भूख और न पैसा ! राजनीति में जाने के एक भी गुण नहीं। जहाँ जा ही नहीं सकते उसके बारे में क्या लिखना! मेरे लिखने से किसी का ह्रदय परिवर्तित हो जाये, कठिन तप करके इतनी योग्यता भी नहीं . फिर लिखना ही क्यों? जो विषय अपना नहीं उस पर दिमाग क्यों चलाना? सुबह किसी निर्णय से प्रभावित होकर कुछ लिख दिया, शाम को निर्णय वापस! लिखा हुआ गुण, गोबर हो गया! क्या फायदा?
मेरे इतना कहने पर भी मिर्जा मानता नहीं, कुनमुना कर एक शब्द हवा में उछालता है....समाजवाद ? मैं कहता हूँ-चुप कर मिर्जा! मरवायेगा क्या? हम अमर नहीं, मर सकते हैं। समाजवाद कभी साकार न होने वाला वह सपना है जो पीढ़ी दर पीढ़ी हर युवा को झकझोरता रहेगा, बुढ्ढे कहते रहेंगे कि समाजवाद की बड़ी लड़ाई उन्होंने ही लड़ी थी. अब आज के युवकों में वो बात कहाँ! और पीढ़ी दर पीढ़ी राजनेता समाजवाद के तवे को गर्म करते रहेंगे, इस पर अपने घर की रोटियाँ सेंकते रहंगे। न पूँजीवादियों की कमी होगी देश में न समाजवादियों की। पुरानी शराब नई बोतल में आती रहेगी।
मिर्जा! मुझे रहने दे। मुझे उगते सूरज और चहचहाते पंछियों की बात करने दे, सफर का आनंद लेने दे। मंजिलें उनको मुबारक जो राज करते देश में। मुझे गोबर पाथती महिला, पशुओं के चारे के लिए सर पर बोझ ढोती घसियारिन, स्कूल जाते बच्चे और मजदूरी करते, काम पर जाते लोगों में विश्वकर्मा भगवान की एक झलक देख लेने दे। अपने जीवन संघर्ष के बाद शेष बचे दो पल इन्हीं सब में गुजर जाने दे। व्यक्ति के गुणों में राजनीति एक चमत्कार है। इससे बनती देश की सरकार है। इसे दूर से नमस्कार करने में भलाई है मिर्जा, चल! यहाँ से निकल। इनकी नजर पड़ गई तो तू गोल, हम लम्बे हो जायेंगे।
आप और मिर्जा मुझे तो लगता है दोनों की बेचैनी ने मिलकर एक अद्भुत संसार रचाया है बहुत कमाल की पोस्ट हमेशा की तरह शुक्रिया और शुभकामनाएं
ReplyDeleteधन्यवाद। मैं और मिर्जा बंटे नहीं हैं।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-09-2016) को "मा फलेषु कदाचन्" (चर्चा अंक-2469) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धनयवाद सर जी।
Deleteनहीं लिखेंगे मत लिखियेगा :)
ReplyDeleteलिखने से ही गोल और
लम्बे हों ये जरूरी नहीं है ।
राजनीति तो राजनीति है
कहीं ना कहीं
किसी मोड़ पर
किसी को भी
लम्बा या गोल
कर ले जाती है
फिर भी ।
जी.
Deleteलीजिये साहब हम भी आ गए ... हाजिरी लगा लीजिएगा !!
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "विवादित पर जानदार चित्रकार - मक़बूल फ़िदा हुसैन“ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
आभार आपका.
Deleteआज तो आपके मिर्ज़ा को गले लगाने या उसके चरण स्पर्श करने की इच्छा जाग उठी. हमारे गुरुदेव स्व. के. पी. सक्सेना के साथ ही यह मिर्ज़ा नाम का इंसान भी कब्र में दफ़न हो गया. क्या पता था कि आप उसे कब्र से निकालकर ले आएँगे. मैं तो बस इसी से खुश हूँ. रही बात राजनीति की, तो भैया, हम तो जो विषय पाना नहीं उसपर उतना भी नहीं लिखा सकते, जितने कंकड आपने इस पोस्ट के बहाने कीचड़ में फेंक दिए.
ReplyDeleteहमारा आभार स्वीकारिये!
हा हा हा...सही है. हम पर यू पी का प्रभाव पड़ गया होगा.
Deleteके.पी. सक्सेना जी याद आ गये :)
ReplyDeleteदेखें.. कब मिर्जा मेरे बनते हैं.
Deleteपढ़वाने के लिये आभार, इस संवाद में आपने न कुछ कहते हुए भी बहुत कुछ कह दिया।
ReplyDeleteवाह, क्या बात है। सुन्दर और रोचक पोस्ट।
ReplyDeleteसच कीचड़ में पत्थर फेंकने से कुछ हासिल नहीं होता .. लेकिन कुछ लोगों तो को उसमें ही मजा आता है ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ईश्वर की बनाई इस दुनिया में इतनी ख़ूबसूरती है और शाश्वत सत्य वही है। बाकी ईश्वर के बनाये लोग जो भी करें हर व्यक्ति का उसमें दखल जरूरी नहीं तो आपके लिए उपयुक्त कार्य आप भी बेहतर जानते हैं। लिखते रहिये।
ReplyDeletesir ..mujhe bhi yahi lagta hai ki jindagi ka maja choti choti cheezon mein hai aur issi sey ek bada canvas banta hai khushi ka..intresting post
ReplyDeletesir ..mujhe bhi yahi lagta hai ki jindagi ka maja choti choti cheezon mein hai aur issi sey ek bada canvas banta hai khushi ka..intresting post
ReplyDeleteराजनीति तो बस राजनीति है,
ReplyDeleteउस पर लिखने के लिए भी राजनीति ज़रूरी है
प्रकृति और जीवन ही कलम की नोक पर सपनों की तरह जी ले, काफी है
http://bulletinofblog.blogspot.in/
ReplyDeleteबहुत खूब ... मिर्जा के बहाने पतली गली से निकल रहे हैं आप ... पर आज की राजनीति किसी को बक्शेगी क्या ...
ReplyDeleteलगता तो नहीं
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