एक सरकारी बाबू ने
ज्योतिषी को अपना हाथ दिखाया
पूरा एक सौ एक चढ़ाया
और पूछा...
बाबा !
मैं हूँ एक अदना सा कर्मचारी
बोलिए !
कब होगी तरक्की ?
कब बनुँगा अधिकारी ?
बाबा मुस्कुराए
बोले...
बिलकुल ठीक समय पर आए
आप शीघ्र ही बनेंगे
उच्चाधिकारी
आपके अण्डर में होंगे
तीन-तीन अधिकारी
यात्रा के लिए मिलेगी
बड़ी सी सवारी
एक दिन
जनता करेगी आपका सम्मान
भीड़ की शक्ल में आकर
देगी
भरपूर दान !
सुनते ही वह
बाबा के चरणों में
नतमस्तक हो गया
उठा
तो उनके भारी तोंद की तरह
गदगद हो गया
बाबा थे महान
बाबा थे ज्ञानी
सोलह आने सच हुई
उनकी भविष्यवानी
दूसरे दिन ही आ गया
सरकारी फरमान
आपको कराना है
चुनाव में मतदान
आप हैं
लोकतंत्र के
सर्वोच्च पीठ पर आसीन
जी हाँ !
बना दिए गये हैं
पीठासीन !
आपके अण्डर में हैं
तीन-तीन मतमान अधिकारी
और बूध तक ले जाने के लिए
ट्रक की सवारी
आदेश पढ़ते ही
उसका ह्रदय तार-तार हो गया
दौड़कर
बाबा के सीने पर सवार हो गया
बोला..
बाबा !
आपने यह क्या कर दिया ?
मांगा था वरदान
शाप दे दिया !!
बाबा हँसते हुए बोले..
अधिकार सिर्फ
मजे लूटने का नाम नहीं है
वह अधिकारी क्या
जिसे कर्तव्य का ज्ञान नहीं है !
जाइये
ठीक से चुनाव कराइये
समय से जाइये
समय से आइये
कर्तव्य से यूँ न घबड़ाइये
बीच में
उड़न छू
न हो जाइये
किस्मत से मिली है
यह जिम्मेदारी
अब आपको दिखाना है
कि आप हैं
एक अच्छे अधिकारी।
.............................
ज्योतिषी को अपना हाथ दिखाया
पूरा एक सौ एक चढ़ाया
और पूछा...
बाबा !
मैं हूँ एक अदना सा कर्मचारी
बोलिए !
कब होगी तरक्की ?
कब बनुँगा अधिकारी ?
बाबा मुस्कुराए
बोले...
बिलकुल ठीक समय पर आए
आप शीघ्र ही बनेंगे
उच्चाधिकारी
आपके अण्डर में होंगे
तीन-तीन अधिकारी
यात्रा के लिए मिलेगी
बड़ी सी सवारी
एक दिन
जनता करेगी आपका सम्मान
भीड़ की शक्ल में आकर
देगी
भरपूर दान !
सुनते ही वह
बाबा के चरणों में
नतमस्तक हो गया
उठा
तो उनके भारी तोंद की तरह
गदगद हो गया
बाबा थे महान
बाबा थे ज्ञानी
सोलह आने सच हुई
उनकी भविष्यवानी
दूसरे दिन ही आ गया
सरकारी फरमान
आपको कराना है
चुनाव में मतदान
आप हैं
लोकतंत्र के
सर्वोच्च पीठ पर आसीन
जी हाँ !
बना दिए गये हैं
पीठासीन !
आपके अण्डर में हैं
तीन-तीन मतमान अधिकारी
और बूध तक ले जाने के लिए
ट्रक की सवारी
आदेश पढ़ते ही
उसका ह्रदय तार-तार हो गया
दौड़कर
बाबा के सीने पर सवार हो गया
बोला..
बाबा !
आपने यह क्या कर दिया ?
मांगा था वरदान
शाप दे दिया !!
बाबा हँसते हुए बोले..
अधिकार सिर्फ
मजे लूटने का नाम नहीं है
वह अधिकारी क्या
जिसे कर्तव्य का ज्ञान नहीं है !
जाइये
ठीक से चुनाव कराइये
समय से जाइये
समय से आइये
कर्तव्य से यूँ न घबड़ाइये
बीच में
उड़न छू
न हो जाइये
किस्मत से मिली है
यह जिम्मेदारी
अब आपको दिखाना है
कि आप हैं
एक अच्छे अधिकारी।
.............................
vaah adhikari ki ajib vidmbna hai bhtrin chitran .....akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteवाह ...भरपूर हास्य भी और सन्देश भी ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ...
बहुत धन्यवाद।
Deleteजमाना बदल गया है। चुनाव की ड्यूटी के पहले बन्दे को अपना जीवन बीमा करा लेना चाहिये?!
ReplyDeleteयह काम तो चुनाव आयोग कर ही रहा है।
Deleteजय जय लोकतन्त्र बाबा..
ReplyDeleteबाबा को लोकतंत्र की संज्ञा देकर आपने कविता को बढ़िया अर्थ दिया।
Deleteबैचेन आत्मा का यह बैचेन अधिकारी। जय हो।
ReplyDelete..आभार।
Deleteअर्दली तीन-तीन,
ReplyDeleteऔर खुद पीठासीन !! :)
:)बड़ा लकी है न जी!
Deleteमजेदार रचना।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर व्यंग| जय हो बाबा की|
ReplyDeleteये सरकारी बाबु सहानुभूति के पात्र हैं .
ReplyDeleteक्या बात है जी! आजकल चुनाव ड्यूटी से जो बच जाये समझ लीजिये उसकी पहुंच तगड़ी है।
ReplyDeleteजिसकी तगड़ी नहीं है उन पर बाबा की ऐसी ही कृपा है:)
Deleteइस पंक्ति के लिए सलाम आपको........अधिकार सिर्फ मज़े लूटने का नाम नहीं .......बहुत सुन्दर|
ReplyDeleteकविता का मर्म चुना आपने..धन्यवाद।
Deleteसारे अधिकारी ..अधिकार के साथ अपना कर्तव्य भी समझ लें... फिर क्या बात है...
ReplyDeleteअर्थपूर्ण कविता
..आभार।
Deleteवाह ...बहुत खूब
ReplyDeleteकल 18/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है,जिन्दगी की बातें ... !
धन्यवाद!
Bahut khoob!
Deleteसदा जी और क्षमा जी दोनो का आभार।
Deleteऐसे चुनाव आयोग की बलिहारी
ReplyDeleteजिसने बाबू बना दिया अधिकारी :)
इस अधिकारी से कहिये धार में बहे
जनता संग कलेक्टोरेट के नखरे सहे :)
ये अधिकार एक दिन में सिमट जायेंगे
शो बाजी की तो बुरी तरह निपट जायेंगे :)
भिश्ती की मिसाल से सबक लेना है
तटस्थ रहके वहां से खिसक लेना है :)
सच जान लें उन्हें पुनः मूसको भव होना है
बीबी बच्चे तज फिर से ब्लागिंग में खोना है :)
पुनः मुसको भवः नहीं, यहां तो पुनः ठाठ भवः होना है।
Deleteहम तो आपके लिये गणपति की सवारी वाले ऐश (ज्ञान+लड्डू) सोचे थे पर आपको खाली ठाठ चाहिये तो फिर वही भव :)
Deleteवह तो आपसे रोज लेते हैं, लेते रहेंगे, तभी तो ठाठ से रहेंगे। सोचे थे का क्या मतलब! मेरे लढ्ढू किसी दूसरे पंडित जी को मत खिला देना..:)
Deleteवाह ... गज़ब की राक्स्हना है ... व्यंग तो नहीं कहूँगा हाँ अपने कर्तव्यों की याद दिलाती लाजवाब रचना है ...
ReplyDeleteधन्यवाद जी।
Deleteअधिकारी...? अरे हुज़ूर, उस लोकतन्त्र की जचगी सम्पन्न कराने वाली दाई कहिए जिसके पैर जब तब भारी हो जाते है!!
ReplyDeleteयह है करारा कटाक्ष..!
Deleteबाबू को काबू में करने का
ReplyDeleteमौका मिलता है पाँच साल में,
फिर भी सौ रूपये में
दो दिन की अफसरी बुरी नहीं है,
वह मुई रकम भी
बाबू की नहीं है !
हकीकत तो यह है कि इस महायज्ञ में सभी को खूब श्रमदान करना होता है।
Deleteकहने से ही नहीं, साबित भी करना होगा इसे जजमान!
ReplyDeleteजी गुरूजी।
Deleteवाह ...क्या खूब लिखा हैआपने
ReplyDeleteसरकारी बाबुओं का क्या है बस यही डिज़र्व करते हैं (विश्वास न हो तो किसी भी मीडिया वाले से पूछ लो)
ReplyDeleteपाकीजा का यह गीत याद आया...
Deleteइन्हीं लोगों ने लूटा दुपट्टा मेरा..हमरी न मानो रंगरेजवा से पूछो..
sach ka paath padha diya baba ne lekin aam janta roti to hai lekin apni baari aati hai to ji churati hai apni hi jimmedari se.
ReplyDeletesateek prastuti.
आपने भी सच्ची बात लिख दी:)
Deleteहाय दैया कौने मुँह से बताएं कि आपके ई बाबा की हम पर भरपूर कृपा हो गयी है और जीवन में पहली बार पीठासीन और वह भी अधिकारी बना दिए गए है ! ......हम भी है भारी मन से आभारी !!
ReplyDeleteसही है ...
ReplyDeleteइसके पहले वाली और भी सही थी सर जी।
Deleteपांडे जी!
ReplyDeleteबाबा की महिमा अपरम्पार... अच्छा आशीर्वाद फला!!
उसको यही तो खला:)
Deletewaah devendra jee padhkar hansi aa gai.thanks.
ReplyDeleteआपने पढ़ा मुझे भी आनंद आ गया।
Deletehaasya ras ka put dete hue aaj ki sachchaai ko bayaan kiya hai.bahut rochak rachna.
ReplyDeleteआपका इस ब्लॉग में स्वागत है। धन्यवाद।
Deleteवाह! क्या बात है। संदेश और व्यंग्य एक साथ..
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
बहुत ही धन्यवाद:)
Deleteहास्य के साथ सर्थक सन्देश देती बढ़िया रचना
ReplyDeleteबेहद धार दार व्यंग्य -हमें मालूम है जन्नत (पीठासीन अधिकारी )की हकीकत लेकिन आधी साँस अन्दर आधी बाहर से आई r है .हमने ये ड्यूटी सरकारी सेवा में रहते बारहा भुगताई है .रेत धोने वाले ट्रक मेंdड्राईवर के साथ वाली सीट हथियाई है .जीर्ण शीर्ण इमारत में अकसर ड्यूटी निपटाई है .
ReplyDeleteजी सर जी। इसी अहसास को ध्यान में रखकर रची गई रचना।
Delete:-))
ReplyDeleteबहुत बढ़िया....सही है ....सरकारी नौकरी में अधिकार, हमेशा मज़े लेने के लिए नहीं मिलते हैं...
वैसे सरकारी सिस्टम ऐसा है कि सारा दोष अधिकारियों को भी नहीं दे सकते...
मनोरंजक रचना...
वाह........
ReplyDelete:-) बेहतरीन कविता.
वाह...
ReplyDeleteबेहतरीन व्यंग,,,
:-)
मैं प्रायः कमेंट मॉडरेशन में नहीं रखता इसी वजह से आप को तीन बार कमेंट करना पड़ा होगा। अभी व्यस्तता है इसीलिए कमेंट बॉक्स मॉडरेट में रखा है। कभी कभी टिप्पणियाँ भी बवाल पैदा कर देती हैं।
Deleteआप जब तक नेट पर आते हैं तब तक देर हो जाती है। असुविधा के लिए खेद है।
अच्छा व्यंग्य पाण्डेय जी बहुत -बहुत बधाई |
ReplyDeleteबहुत सुंदर करारी मजेदार रचना ,बेहतरीन प्रस्तुति,......
ReplyDeletewelcome to new post...वाह रे मंहगाई
मै समर्थक बन रहा हूँ आपभी बने तो हादिक खुशी होगी
आपका समर्थन तो नेता जी के वादे की तरह मौखिक लग रहा है! मतलब आप दिखाई नहीं दे रहे:)
Delete..स्नेह के लिए आपका आभारी हुआ।
धार दार व्यंग के साथ सार्थक सन्देश...जय हो पाण्डेय जी
ReplyDeleteधार तो वो जाने जो मार सहे..:)
Deleteबहोत अच्छा लगा पढकर
ReplyDeleteनया हिंदी ब्लॉग
http://http://hindidunia.wordpress.com/
ब्लॉग की जानकारी देने के लिए धन्यवाद।
Delete