गद्य सी अपठित हुई हैं छन्द जैसी लड़कियाँ।
ये महकते फूल के मकरंद जैसी लड़कियाँ।
पर्व के पावन-मधुरतम गीत के स्थान पर,
दर्द में डूबी ग़ज़ल के बन्द जैसी लड़कियाँ।
जो अनुष्ठानों के मंगल कामना के श्लोक सी,
घर के सिर पर हैं धरीं, सौगन्ध जैसी लड़कियाँ।
माँ के आँचल की खुशी ये बाप के पलकों पलीं,
काटती हैं ज़िंदगी अनुबंध जैसी लड़कियाँ।
ये तेरे गमले की कलियाँ हैं, ये मुरझायें नहीं,
गेह भर के नेह के सम्बन्ध जैसी लड़कियाँ।
यातना मत इन्हें दो दोस्तों धन के लिए,
क्यों रहेंगी ये सदा प्रतिबंध जैसी लड़कियाँ।
कर्मधारय, तत्पुरूष, द्विगु, श्लेष, उत्प्रेक्षानुप्रास,
हम सभी, केवल बेचारी द्वन्द्व जैसी लड़कियाँ।
...................................................................
लेखक- चित्र इस ग़ज़ल के लेखक श्री आनंद परमानंद जी का है।
ये महकते फूल के मकरंद जैसी लड़कियाँ।
पर्व के पावन-मधुरतम गीत के स्थान पर,
दर्द में डूबी ग़ज़ल के बन्द जैसी लड़कियाँ।
जो अनुष्ठानों के मंगल कामना के श्लोक सी,
घर के सिर पर हैं धरीं, सौगन्ध जैसी लड़कियाँ।
माँ के आँचल की खुशी ये बाप के पलकों पलीं,
काटती हैं ज़िंदगी अनुबंध जैसी लड़कियाँ।
ये तेरे गमले की कलियाँ हैं, ये मुरझायें नहीं,
गेह भर के नेह के सम्बन्ध जैसी लड़कियाँ।
यातना मत इन्हें दो दोस्तों धन के लिए,
क्यों रहेंगी ये सदा प्रतिबंध जैसी लड़कियाँ।
कर्मधारय, तत्पुरूष, द्विगु, श्लेष, उत्प्रेक्षानुप्रास,
हम सभी, केवल बेचारी द्वन्द्व जैसी लड़कियाँ।
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लेखक- चित्र इस ग़ज़ल के लेखक श्री आनंद परमानंद जी का है।
बहुत ही सुन्दर काव्य
ReplyDelete---
अपने ब्लॉग को ई-पुस्तक में बदलिए
अहा, छंद जैसी लड़कियाँ, उनकी जीवनलय ऐसे ही बनी रहे।
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गज़ल...
हर एक शेर लाजवाब...
अनु
सब तरफ छाई निराशा, आस देती लड़कियाँ !
ReplyDeleteसुंदर लाइने और आपका मुख्य चित्र भी
ReplyDeleteनमन आनंद जी-
ReplyDeleteजबरदस्त प्रस्तुति |
आभार देवेन्द्र जी ||
.
ReplyDelete.
.
बदल देंगी दुनिया को, खुद को ढाल इस्पात में
यही महकते फूल के , मकरंद जैसी लड़कियाँ
सुन्दर कविता,
आभार!
...
कविता पढ़ने में अच्छी लगती है लेकिन मतलब निकालने पर कुछ अलग-अलग सा लगता है। गद्य अपठित कहां हैं? गद्य पढ़ा जा रहा है। खूब पढ़ा जा रहा है। कविता का दीन भाव अच्छा नहीं लगता। :(
ReplyDeleteप्रवीण शाह की बात के हिमायती हैं हम तो। :)
बात तो सही है। गद्य अब खूब पढ़ा जा रहा है बल्कि छंद ही लोग लिखना-पढ़ना भूल चुके हैं। परमानंद जी वयोवृद्ध साहित्यकार हैं। संभवतः यह गज़ल आज से 30-35 वर्ष पूर्व लिखी गई होगी। तब छंद में लिखना ही श्रेष्ठ और सुंदर माना जाता था। उन तक आपकी बात पहुंचाने का प्रयास करता हूँ। जहाँ तक दीन भाव की बात है, सही है कि दीन भाव नहीं उत्साहित करने वाले भाव ही अच्छे लगते हैं मगर अच्छा लगने से हालात तो बदल नहीं जाते। सत्य दुःख अधिक देता है। उन्होने इसी गज़ल में हालात को बताते हुए आगे लिखा भी है..
Deleteयातना मत इन्हें दो दोस्तों धन के लिए
क्यों रहेंगी ये सदा प्रतिबंध जैसी लड़कियाँ।
बेचारी तो कतई नहीं हैं.. और गर यह हल्की फुल्की रचना है तो बस हलके फुल्के अन्दाज़ में लिया जा सकता है.. लेकिन सचाई में..
ReplyDeleteचढ गयी परबत के ऊपर आज वो इक टांग से,
हौसला फौलाद सा, पत्थर सी हैं ये लडकियां!
वाह!
ReplyDeleteआपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 22-10-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1040 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ
KUCHH SHE'R BAHUT BAHUT PASAND AAYE..
ReplyDeleteKHAAS KAR PAHLAA
बहुत अच्छी रचना है, श्री आनंद परमानंद तक आभार पहुँचाईयेगा।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भावपूर्ण
ReplyDeleteकाव्यानुभूति और बदलाव की कसक यकसां है इस रचना में .
ReplyDeleteआनंद जी की इस रचना को प्रस्तुत करने के लिए बहुत धन्यवाद. बहुत सुन्दर ग़ज़ल है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर है ग़ज़ल।
ReplyDeleteअनुष्ठानों के मंगल कामना के श्लोक सी,
ReplyDeleteघर के सिर पर हैं धरीं, सौगन्ध जैसी लड़कियाँ .... जिसके हाथों से घर की खुशबू आती है
परमानन्द जी को बधाई,आपका आभार
बेहतरीन प्रस्तुति बहुत सुन्दर सुर , लय और ताल से सजी जैसी रचना |
ReplyDeleteरचना को साझा करने के लिए आभार ...परमानन्द जी को धन्यवाद ...
ReplyDeleteएवरेस्ट से अन्तरिक्ष तक फतह करती लड़कियां
ReplyDeleteफिर भी क्यों रह जाती अपठित ये लड़कियां !
कविता साझा करने के लिए आभार !
कविता का शिल्प मन को बहुत भाया
ReplyDeleteलड़कियों को पढ़ना शायद अभी किसी को नहीं आया ।
छंद में सिमटी थीं , अब उन्मुक्त हुयी लड़कियां
द्वंद्व छोड़ अब सारे समास हुयी लड़कियां ।
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteविजय दशमी की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
हर शेर बेहतरीन , बेहद ह्रदय स्पर्शी !!!
ReplyDeleteसही कहा लड़कियां पढ़ी नहीं जा सकती, परिवेश ही एस हो गया hai, बहुत सुंदर रचना.... बहुत बहुत बधाई आपको, साथ ही विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeletebahut sundar....padhaane ke liye dnanyavaad
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना । रचनाकार को नमन ।
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