बढ़ता ही जा रहा है
अंधेरा
कसता ही जा रहा है
खामोश बादलों का
घेरा
सुनाई दे रही है
बीच-बीच में
संघर्ष की गुर्राहट
सूरज
चौकीदारी छोड़
कहीं दूर
धुंधियाया,
लापता है।
हवाओं ने
अचानक से बदला है
रंग
झरने लगी हैं
वृक्षों की शाख से
सूखी पत्तियाँ
लगता है
बारिश होने वाली है
शाम
झमाझम होगी।
मगर हमेशा की तरह
सशंकित हैं
मेढक-झिंगुर
मिलेगा भरपूर
वर्षा का पानी!
चारों तरफ हैं
सांपो के बिल
अभी से
लपलपा रहे हैं
जीभ
बरगदी वृक्ष।
………
पूरा फोटूवे खिंच दी आपने बुन्नी बरिखा वाले माहोल का
ReplyDeleteवर्षा के बढ़ते पानी का सजीव चित्रण ।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर और सामयिक रचना.
ReplyDeleteरामराम.
सब के सब क्रियाशील हो जाते हैं।
ReplyDeleteजिन पौधों के प्रार्थना पे ये सावन आया था कहीं उन्हें ही ना उखाड़ डाले...
ReplyDeleteसमय की विडम्बना ।
वर्षा सब की भरपाई कर देती है।
ReplyDeleteबहुत उम्दा लाजबाब प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteवर्षा का स्वागत - सब का अपना-अपना ढंग!
ReplyDeleteवर्षा की भीगी सी अनुभूतियाँ । लेकिन हमने तो अब झींगुर-मेंढकों वाली झमाझम बारिश जाने कब की देखी है । तब कई दिनों सूरज के दर्शन नही होते थे । प्रकृति के खेल हैं कहीं बाढ से तबाही तो कहीं खेत वर्षा के इन्तजार में सूख रहे हैं ।
ReplyDeleteसुंदर अनुभूति .. सुंदर चित्रण
ReplyDeleteवाह
सावधान रहिये!
ReplyDeleteये तो आपने मेरे पुराने घर के बारिश का पोट्रेट सामने रख दिया!!अब यहाँ जहाँ हूँ..ऐसा कुछ भी महसूस नहीं होता :(
ReplyDeleteमेंढ़कों झींगुरों की आवाजों वाली बारिशें कहीं पीछे छूटीं !
ReplyDeleteवर्षा दिख रही है कविता में !
sunder chitran
ReplyDeleteमुझे तो डर है कि ये बर्षा रानी भी अपना काम धंधा छोड़कर कहीं इफ्तार पार्टी और कांवड़ियों के भोज में न सम्मिलित हो जाए :)
ReplyDeleteबहुत ख़ूब!
ReplyDeleteआओ!
सुन्दर प्रस्तुति है आदरणीय देवेन्द्र जी-
ReplyDeleteशुभकामनायें-
सुन्दर वर्णन ।
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ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें ,कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
यह सुखद अनुभूति है कि मेरी इतनी व्यस्तता, मित्रों के लिखे पर समय न दे पाने के बावजूद, आप सभी मेरे लिखे को पढ़ते ही नहीं प्रतिक्रिया भी देते हैं। आभार व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। कठिन समय के सभी साथियों का हृदय से आभारी हूँ।
ReplyDeleteसजीव चित्रण
ReplyDeleteकविता सुन्दर है.बरगदी पेडों को देखकर डर लगता है.
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