27.7.13

धरो धीर...


दिन भर गर्मी थी
शाम को
बरसा पानी
एहसास हुआ
शीतलता का

धूप में
तप रहा था जिस्म
रौशनी से
चुंधिया रही थीं आँखें
मन निराश था
डूबा था कहीं
घने अंधेरे में।

अभी
हो रही है बारिश
बाहर अंधेरा है
भीतर
फैली हुई है
रौशनी।

सुन रहा हूँ
कह रही हैं
वर्षा की बूँदें
धरो धीर
बदलते हैं
प्रकृति के रंग।
....................

14 comments:

  1. बहुत सुंदर प्रकृति के रंग बदलते हैं बस मानव उसे बदरंग न करे ।

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  2. गहन अभिव्यक्ति ....!!

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  3. बाहर के साथ भीतर के भी रंग बदलते हैं..

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  4. चक्रों के पथ पर चल कर हर बार चली आती है वर्षा की बूँदें, धरा का अधर भरने।

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  5. सुन्दर बारिश का नज़ारा ।

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  6. वर्षा की बूंदों का मधुर पैगाम ... पर धीर धरो ...
    बेहतरीन रचना ...

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  7. वर्षा आधारित सुन्दर अभिव्यक्ति !
    latest post हमारे नेताजी
    latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु

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  8. सुन्दर रचना देवेन्द्र जी आभार।

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  9. बढ़िया है आदरणीय -
    आभार -

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  10. बहुत ही सुन्दर , कोमल रचना..
    बेहतरीन...
    :-)

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  11. धीर ने नीर बरसने का आनंद दिलाया है.
    सुन्दर रचना।

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  12. भावुक मन की अभिब्यक्ति.

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