दिन भर गर्मी थी
शाम को
बरसा पानी
एहसास हुआ
शीतलता का
धूप में
तप रहा था जिस्म
रौशनी से
चुंधिया रही थीं आँखें
मन निराश था
डूबा था कहीं
घने अंधेरे में।
अभी
हो रही है बारिश
बाहर अंधेरा है
भीतर
फैली हुई है
रौशनी।
सुन रहा हूँ
कह रही हैं
वर्षा की बूँदें
धरो धीर
बदलते हैं
प्रकृति के रंग।
....................
बहुत सुंदर प्रकृति के रंग बदलते हैं बस मानव उसे बदरंग न करे ।
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति ....!!
ReplyDeleteबाहर के साथ भीतर के भी रंग बदलते हैं..
ReplyDeleteबेहतरीन.
ReplyDeleteरामराम.
चक्रों के पथ पर चल कर हर बार चली आती है वर्षा की बूँदें, धरा का अधर भरने।
ReplyDeleteसुन्दर बारिश का नज़ारा ।
ReplyDeleteवर्षा की बूंदों का मधुर पैगाम ... पर धीर धरो ...
ReplyDeleteबेहतरीन रचना ...
ReplyDeleteवर्षा आधारित सुन्दर अभिव्यक्ति !
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सुन्दर रचना देवेन्द्र जी आभार।
ReplyDeleteबढ़िया है आदरणीय -
ReplyDeleteआभार -
बहुत ही सुन्दर , कोमल रचना..
ReplyDeleteबेहतरीन...
:-)
धीर ने नीर बरसने का आनंद दिलाया है.
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
अद्भुत भाव
ReplyDeleteभावुक मन की अभिब्यक्ति.
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