23.7.13

कइसे कही कि सावन आयल !


कत्तो बिजुरी नाहीं चमकल 
एक्को बुन्नी नाहीं बरसल

धरती धूप ताप धधायल
कइसे कही कि सावन आयल !

कउने डांड़े बदरा-बदरी
खेलत हउवन पकरा-पकरी ?

सूरूज से अंखिया चुंधियायल
कइसे कही कि सावन आयल !

पुरूब नीला, पच्छुम पीयर
नीम, अशोक, पीपरो पीयर

केहू ना जरको हरियायल
कइसे कही कि सावन आयल !

का भोले बाबा का कइला
बुन्नी के जटवा मा धइला ?

खोला ! बरसे दा ! हहरायल
कइसे कही कि सावन आयल!

भीड़ देख अझुरायल हउवा?
भाँग छान बहुरायल हउवा?

बुधिया जरल बीज से घायल
कइसे कही कि सावन आयल !
..................................

25 comments:

  1. बहुत लाजवाब.

    रामराम.

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  2. एक ही सवाल- लोक के अलग-अलग रंगों में । खूबसूरत लोकगीत !

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  3. मस्त है आदरणीय-
    सधे हुवे लयबद्ध बिम्ब-

    इसी विधा पर अभ्यास की कोशिश है आदरणीय-
    सादर -
    खेत मढैया बहि-बहि जाई |
    जब बिहार का बाँध टुटाई |
    शहर गाँव सब कुछ बह जाई
    उड़नखटोला आय बचाई |
    तब सावन आगमन बुझाई-

    बड़ी बेहैया खुब हरियाई -
    विद्यालय मा शिविर चलाई -
    कुल राहत अधिकारी खाई |
    मतनी कोदों चलो पकाई -
    तब सावन आगमन बुझाई-

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  4. वाह! कैलाश गौतम की याद हो आयी!

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    1. आह! मेरे प्रिय कवि याद आये..! घूरे के भाग जगे, धन्य हुआ।..आभार।

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  5. वाह .. कौज, मस्ती और दिल्लगी ..
    मज़ा ही आ गया इस लोकगीत शैली का ...

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  6. बनारस में नाहीं आयल, मगर मुंबई में ओकर बाप आ गयल.

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  7. अब का करबा ये भईया..

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  8. अब का करबा ये भईया..

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  9. सुंदर लोक गीत ...!!
    शुभकामनायें ।

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  10. जबरदस्त - बहुरायल =(बौरायल )

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  11. बेहद खूबसूरत गीत । सचमुच ऐसी दशा में सावन का आना कैसे माना जाए । बहुत खूब । सहज और सुन्दर ।

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  12. क्या बात है बहुत ही बेहतरीन ।

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  13. बहुत बढ़िया है

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  14. टुकड़ों में फ़ेसबुक पर दिखा था।
    पूरा मामला यहाँ है। वाह !!!

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  15. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 23 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  16. कुछ समझ आया कुछ नहीं बहुत बढ़िया

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