कत्तो बिजुरी नाहीं चमकल
एक्को बुन्नी नाहीं बरसल
धरती धूप ताप धधायल
कइसे कही कि सावन आयल !
कउने डांड़े बदरा-बदरी
खेलत हउवन पकरा-पकरी ?
सूरूज से अंखिया चुंधियायल
कइसे कही कि सावन आयल !
पुरूब नीला, पच्छुम पीयर
नीम, अशोक, पीपरो पीयर
केहू ना जरको हरियायल
कइसे कही कि सावन आयल !
का भोले बाबा का कइला
बुन्नी के जटवा मा धइला ?
खोला ! बरसे दा ! हहरायल
कइसे कही कि सावन आयल!
भीड़ देख अझुरायल हउवा?
भाँग छान बहुरायल हउवा?
बुधिया जरल बीज से घायल
कइसे कही कि सावन आयल !
..................................
मौज मनाओ, सावन आयो।
ReplyDeleteबहुत लाजवाब.
ReplyDeleteरामराम.
कमाल का(लोक)गीत !
ReplyDeleteएक ही सवाल- लोक के अलग-अलग रंगों में । खूबसूरत लोकगीत !
ReplyDeleteफर्जी सावन :)
ReplyDeleteबहुत खूब!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ....
ReplyDeleteमस्त है आदरणीय-
ReplyDeleteसधे हुवे लयबद्ध बिम्ब-
इसी विधा पर अभ्यास की कोशिश है आदरणीय-
सादर -
खेत मढैया बहि-बहि जाई |
जब बिहार का बाँध टुटाई |
शहर गाँव सब कुछ बह जाई
उड़नखटोला आय बचाई |
तब सावन आगमन बुझाई-
बड़ी बेहैया खुब हरियाई -
विद्यालय मा शिविर चलाई -
कुल राहत अधिकारी खाई |
मतनी कोदों चलो पकाई -
तब सावन आगमन बुझाई-
जे बात...
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ReplyDeleteबहुत खूब !
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वाह! कैलाश गौतम की याद हो आयी!
ReplyDeleteआह! मेरे प्रिय कवि याद आये..! घूरे के भाग जगे, धन्य हुआ।..आभार।
Deleteवाह .. कौज, मस्ती और दिल्लगी ..
ReplyDeleteमज़ा ही आ गया इस लोकगीत शैली का ...
आभार आपका कविवर।
ReplyDeleteबनारस में नाहीं आयल, मगर मुंबई में ओकर बाप आ गयल.
ReplyDeleteअब का करबा ये भईया..
ReplyDeleteअब का करबा ये भईया..
ReplyDeleteसुंदर लोक गीत ...!!
ReplyDeleteशुभकामनायें ।
जबरदस्त - बहुरायल =(बौरायल )
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत गीत । सचमुच ऐसी दशा में सावन का आना कैसे माना जाए । बहुत खूब । सहज और सुन्दर ।
ReplyDeleteक्या बात है बहुत ही बेहतरीन ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया है
ReplyDeleteटुकड़ों में फ़ेसबुक पर दिखा था।
ReplyDeleteपूरा मामला यहाँ है। वाह !!!
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 23 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteकुछ समझ आया कुछ नहीं बहुत बढ़िया
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