शुरू के दोनों फोटो सुंदर हैं पर उन्हें देख कर याद आया कि एफ.सी.आई. के गोदामों के बाहर खुले मैदानों में सड़ रही धान की हजारों / लाखों बोरियों से पता चलता है कि सरकार भी सावन की अंधी होती है यानि कि उसे बारहों महीना हरा हर सूझता है !
देवेन्द्र पाण्डेय जी यू पी के गाँव में जाकर देख सकते हैं धान लगाती स्त्रियाँ यहाँ तक कि श्रीनगर कश्मीर में भी ये नज़ारे पिछले महीने मुझे देखने को मिले पर अफ़सोस बंद गाड़ी में होने के कारण फोटो नहीं ले सकी बहुत ही सुन्दर चित्र हैं अंतिम चित्र के पौधे को हम आख का पौधा कहते हैं जो दवाई के काम आता है सभी चित्र सुन्दर हैं
पहली फोटो तो मुग्ध कर गयी..
ReplyDeleteधान और मदार....
ReplyDeleteसुन्दर
अनु
वही तो
ReplyDeleteपहली इसीलिये
मुग्ध करने के
लिये लगा रखी है
तीसरी को ताकी
ना देखे कोई
जिसमें कली मुँह
खोल के अपना
सबको चिढा़ रही है ।
बहुत सुंदर सुंदर फोटो खींच के आये हैं
Deleteपाण्डेय जी धान की रोपती दिखाये हैं
मदार की खिलती कलियों से कुछ
बातें वाते भी शायद कर के आये हैं ।
ज्यामिति का यह पाठ है, या खेलों का ट्रैक ।
Deleteपथ मैराथन रेस का, एक वर्ष का पैक ।
एक वर्ष का पैक, स्वेद-जल से यह लथ-पथ ।
बड़े खड़े वे पेड़, देखते अपना स्वारथ ।
भाग-दौड़ का खेल, लड़े कुदरत से कुश्ती ।
तब पावें भरपेट, करें थोड़ी सी मस्ती ।।
कितना आनंद है प्रकृति के करीब रहने का ......!
ReplyDeleteप्रकृति के करीब तो घंटे आध घंटे ही रह पाता हूँ।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteअंतिम फोटो को बनारस का विशेष आग्रह मान रहा हूं :)
ReplyDeleteशुरू के दोनों फोटो सुंदर हैं पर उन्हें देख कर याद आया कि एफ.सी.आई. के गोदामों के बाहर खुले मैदानों में सड़ रही धान की हजारों / लाखों बोरियों से पता चलता है कि सरकार भी सावन की अंधी होती है यानि कि उसे बारहों महीना हरा हर सूझता है !
बनारस का विशेष आग्रह!..सही कहा आपने, यही होगा।
Deleteसावन में मदार की खिलती कलियाँ भी 'बोल बम' कहती हैं।
बहुत दिन बाद धान की ये पौध देखने को मिली....काश ! इसे रोपती ,गाती स्त्रियाँ भी दिखा देते :-)
ReplyDeleteरोपती, गाती स्त्रियाँ तो मैने भी नहीं देखी। 'मदर इंडिया' फिर से देखनी पड़ेगी।
Deleteमैंने अपने बचपन में गाँव में खूब देखी हैं,पर तब ब्लॉगर नहीं था...!
Deleteअनुशासित, व्यवस्थित कृषक कर्म और जीवन.
ReplyDeleteधान के खेत, और उनमे इतना पानी ...बरसों बीते देखे हुए !
ReplyDeleteअच्छी तस्वीरें !
वाह मन हरिया गया
ReplyDeleteदेवेन्द्र पाण्डेय जी यू पी के गाँव में जाकर देख सकते हैं धान लगाती स्त्रियाँ यहाँ तक कि श्रीनगर कश्मीर में भी ये नज़ारे पिछले महीने मुझे देखने को मिले पर अफ़सोस बंद गाड़ी में होने के कारण फोटो नहीं ले सकी
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर चित्र हैं अंतिम चित्र के पौधे को हम आख का पौधा कहते हैं जो दवाई के काम आता है सभी चित्र सुन्दर हैं
धान लगाती तो दिखती हैं, गाती नहीं दिखतीं। संतोष जी रोपती, गाती स्त्रियाँ लिखे हैं।:)
Deleteसुंदर कमेंट के लिए आभार।
पांडेयजी,यह बात किससे कही है...?
Deleteधान का पौधों को देख सच में लगा सावन आ गया ..कभी खूब रोपते थे धान के पौधे अब तो .सावन देखने को भी तरस गए हैं..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति
हरियाली ने भर दिये, सावन में सब रंग।
ReplyDeleteधान लगाये खेत में, हमने मिलकर संग।।
सुन्दर फोटो ....तीसरा वाला बहुत शानदार आया है ।
ReplyDeleteफोटोज की सिमिट्री बता रही है -- आप कुशल फोटोग्राफर बन चुके हैं .
ReplyDeleteशानदार चित्र !
धन्यवाद। आपकी प्रशंसा से अधिक खुशी मिली। आपके दिये टिप्स को याद कर एक फोटू खींची है। लगाउंगा दो एक रोज में।
DeleteVaah ... Savan ke mast rang .. Aur aakde ke fool ... Bade din baad dekhne ko mile ...
ReplyDeleteबहुत ही खबूसूरत फोटो खींचे हैं, पहला फोटो तो घंटो तक देखने का दिल कर रहा है... इतनी देर देखा लेकिन दिल ही नहीं भरा....
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