31 जुलाई 2012 से बनारस में तीन दिवसीय मुंशी प्रेमचंद लमही महोत्सव मनाया जा रहा है। आज लमही स्थित उनके आवास में विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये गये। मैने सोचा ब्लॉगर मित्रों को उनके गांव, पैत्रिक आवास की कुछ तस्वीरें दिखाई जांय और देखा जाय कि वहाँ वास्तव में हो क्या रहा है! सो पहुँच गया लमही गांव। पाण्डेपुर चौराहे से लगभग तीन किलोमीटर दूर स्थित उनके गांव तक जाने वाली मुख्य सड़क बेहद खराब हाल में है। इस चौराहे से गुजरते वक्त इस चौराहे पर लगी आदमकद प्रेमचंद की मूर्ति का स्मरण हो आया जो फ्लाई ओवर निर्माण के दौरान उठा कर लमही भेज दी गई थी। इन रास्तों पर चलते-चलते अहसास हो गया कि जन-जन के दुःख उकेरने वाले महान साहित्यकार के घर ही जा रहे हैं। बिना दर्द सहे उनके गांव के दर्शन भी कहाँ संभव है! :)
लमही जाने के मुख्य मार्ग पर बना है
मुंशी प्रेमचंद स्मृति द्वार
द्वार के बायें बाजू में उनकी कथाओं के पात्रों की शानदार मूर्तियाँ
दायें बाजू में भी सुंदर मूर्तियाँ
मुंशी प्रेमचंद जी का पैतृक निवास स्थल
घर के आगे का कुआँ
दाईं तरफ से ली गई घर की तस्वीर
घर के पिछवाड़े स्थित तालाब
पैत्रिक घर के भीतर का दृश्य
ओह! चौराहे की मूर्ति का मलबा यहाँ सुरक्षित है।
इस घर में सभी कमरे खाली दिखे।
पैत्रिक आवास के सामने स्थित नये आवास में स्थापित प्रतिमा
यहीं मनाया जा रहा है महोत्सव।
आज के समारोह में सम्मानित होने वाले वरिष्ठ साहित्यकार
साहित्यकारों, साहित्य प्रेमियों की भीड़
यहाँ खेले गये नाटक "बड़े भाई साहब" के पात्र
नाटक का एक दृश्य
दीवारों में ये तस्वीरें लगी दिखीं।
दरवाजे और खिड़कियाँ
यहाँ भी उनकी कृतियों की तस्वीरें लगी थीं।
महोत्सव के शेष कार्यक्रम सांस्कृतिक संकुल में आयोजित होने हैं। बिजली फेल हो जाने के कारण इसे पोस्ट करने में देरी हुई। अभी क्रमशः लिखकर इसे पोस्ट किये देता हूँ।
सच तस्वीर बोलतीं हैं बतियातीं हैं ,
ReplyDeleteगुज़रे कल की याद लाती हैं .बढ़िया चित्रांकन .सजीव कर दिया उत्सव को झालिकियां दिखला कर .
बहुत जीवंत चित्र .... आपके माध्यम से मुंशी प्रेमचंद का पैतृक आवास देख सके ... आभार
ReplyDeleteपैतृक-आवास की झाँकियाँ दिखाने हेतु आभार !
ReplyDeleteतश्वीर को तस्वीर लिखें तो और भी सुंदर लगेगा !
ReplyDeleteउस ज़माने के हिसाब से मुंशी जी काफी बड़े और आलीशान मकान में रहते थे !
लमही में बिठाये लम्हे सार्वजानिक करके आपने बहुत अच्छा किया ! सार्थक कार्य ! बस एक शिकायत कि आप एक ही पोस्ट में इतनी ज्यादा फोटो डाल देते हैं कि उन्हें तरतीब से याद रखना और फिर कमेन्ट करना मुश्किल हो जाता है !
तस्वीर लिखने पर वाकई अधिक सुंदर लगने लगा।:)..धन्यवाद।
Deleteपैत्रिक आवास की मरम्मत, पुनर्निमाण का कार्य भी हुआ है।
फोटो अधिक हैं शब्द कम। शब्दों की भरपाई फोटो से कर ली।:) घर, समारोह, नाटक, गांव सभी तो दिखाना था।
मुंशी प्रेमचंद्र के विषय में सार्थक और ज्ञानप्रद पोस्ट आभार
ReplyDeleteअच्छे फोटो हैं। शुक्रिया !
ReplyDeleteThank you. He was a communist and did not use caste title in his name but in Blog world Kayasth writers are again and again emphasising 'Srivastav' as his surname though no proof is available he ever used it. Have a keen look at the personalities they cover,almost all will be Kayasths. Such castist revivalism should be abhorred as poison to society.
ReplyDeletePremchand is only modern Hindi writer who has laudable international recognition.
ReplyDeleteYes, his house is comparatively big. He made some money from film writing though in his last days. He also was in money lending business for quite a long duration.
ReplyDeleteतस्वीरों ने तसल्ली दी कि प्रेमचंदजी को बिसराया नहीं गया है !
ReplyDeleteसजीव दर्शन के लिए आभार !
बाभैया पहुँच गए थे आप-रश्क है आपसे!
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत चित्र लिए हैं आप!
और इस सुन्दर रिपोर्ताज के क्या कहने ?
ReplyDeleteसुना है प्रेमचंद्र ने सारा जीवन बदहाली ने ही बिता दिया था और अब उनकी मौत के बाद ये समारोह.............. क्या कहे |
ReplyDeleteसभी फोटो के लिए धन्यवाद उनके घर के ठीक से देख लिया , वैसे बनारस और उसके आस पास इतने बड़े घर का होना आम बात है बड़े घर का मतलब सम्पन्न होना नहीं होता था | वैसे कार्यक्रम का झलक कल टीवी पर देख लिया था और बड़े भाई साहब सबसे पसंदीदा कहानियो में एक है |
प्रेमचंदजी के आवासगृह और उसके आस-पास की आज की अवस्था को फोटो के माध्यम से चित्रित करने के लिये हार्दिक आभार ब्यक्त करता हूँ. मैं उनकी लगभग सारी रचनाओं को पढते वक्त तहे-दिल से वाह क्या लिखा है प्रेमचंदजी ने कह चुका हूँ.शायद प्रेमचंदजी जैसा लेखक अब आगे हो न हो .
ReplyDelete@Dr. V B - Its not necessary to be a communist to not accept the cast ism in society.Those ,who want to add surname on his name are certainly
the peoples of old age having this attitude.
बड़ा अच्छा और आवश्यक लेख, आभार उनको याद दिलाने के लिए !
ReplyDeletebhai bharat desh main jeete ji kisi ko kuch nahi milta hai lakin marne ke baad sab amar ho jaate hai...
ReplyDeleteis report ke liye aap badhai ke patra hai...bahut bahut badhai...
jai baba banaras.....
shukriya , itne bade lekhak ke lamhi me paida hone se lamhi ki dharti bhi dhany ho uthi...
ReplyDeleteआप खासे रिपोर्टर हुए जाते हैं, देखकर अच्छा लग रहा है कि समय का सदुपयोग कर पा रहे हैं|
ReplyDeleteतारीफ़ के काबिल बात है जी इसी लिए तारीफ की है, इसमें भी कोई छुपे मायने न ढूंढ लिए जाएँ:)
कहानी के चितेरे की कहानी देखी, चित्रों के माध्यम से..
ReplyDeleteअबकी लमही जाना तय रहा, बढ़िया रिपोर्टिंग रही।
ReplyDeleteआभार आपका, इस चित्रमय प्रस्तुति के लिए।
ReplyDeleteमज़ा आ गया देव बाबू आपके साथ साथ हम भी घूम आये......बहुत ही अच्छा लगा प्रेमचंद जी तो वैसे ही मेरे पसंदीदा है ।
ReplyDeleteअच्छा लगा इन चित्रों को पुन: देखना। आनंदम् ....आनंदम् !
ReplyDeleteबेहद सार्थक और सशक्त पोस्ट
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चित्रण! बधाई आपको
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चित्रण! बधाई आपको
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