आज रविवार है। गंगा मैया के दर्शन किये बहुत दिन हुए। सोचा आज मार्निंग वॉक छोड़ गंगा वॉक किया जाय। खेल में शतरंज और घुमक्कड़ी में गंगा के घाट, ताजगी के मामले में दोनो का ज़वाब नहीं । जितनी बार भी गंगा जी गया एक नया एहसास, एक नई ताजगी लेकर लौटा हूँ। हर बार नये दृश्य देखने को मिलते हैं। आइये आज की कुछ ताजा तश्वीरें दिखाता हूँ...
(1) सुबह के साढ़े छ बज चुके हैं। सूर्योदय हो चुका है। नावें खुल चुकी हैं। पर्यटक सन राइज का आनंद लेकर घाट किनारे बने लॉजों में लौटने की तैयारी में हैं। नदी किनारे तैयार हो रही नाव की बेचैनी समझी जा सकती है। कब तैयार हो और गंगा मैया की लहरों में घूमने का मजा मिले।
(2) मढ़ी के ऊपर बिखरे दाने चुगते परिंदे।
(3) दशाश्वमेध घाट पर उमड़ी भक्तों की भीड़। आज कोई विशेष पर्व नहीं है। यह रोजमर्रा की जिंदगी है।
(4) केदार घाट के सामने दक्षिण भारतीय भक्त और दक्षिण भारतीय पंडा। मिनी भारत की छवि देखनी हो तो गंगा के घाटों का नज़ारा लीजिए। सभी धर्मों, संप्रदायों की मिली जुली संस्कृति का नजारा दिखेगा। शायद ही कोई राज्य हो जिसका प्रतिनिधित्व बनारस के घाट न करते हों।
(5) यह अनूठा दृश्य दिखा। दक्षिण भारतीय महिलाएँ और पुरूष दोनो सर मुढ़वा कर स्नान के बाद तैयार होते हुए।
(6) इन दो विदेशी युवतियों को शांत भाव से गंगा को निहारते देखा।
(7) लौटा तब भी ये लोग यहीं बैठे मिले।
(8) घाट किनारे बसे युवक तो रोज लेते ही हैं तैराकी का मजा।
(9) हरिश्चंद्र घाट के पास यह मुर्गा भी दिखा। मसान भूमि पर इस मुर्गे के होने का रहस्य तो आलसी ही सही ढंग से बता सकते हैं। कहीं यह किसी तांत्रिक की साधना का सामान तो नहीं!
स्थान. समय और फोटूग्राफर तो आप जान ही गये। दिनांक भी पोस्ट लिख ही देगा।..नमस्कार।
बाभैया ज्ञानदत्त जी भी पीछे छूटे-आगे बढ़ चला अपना यह गंगा का छोरा आनंद:)
ReplyDeleteजो भी कहिये , मामला पाण्डेय से पाण्डेय तक ही तो सीमित है !
Deleteहा हा! गंगा माई का पट्टा पांड़े लोग लिखाये हैं! :-)
Delete:)
Deleteदोनों पांडे को साष्टांग प्रणाम ...
DeleteBade bhayi, kahe sharminda karte hain? apnavala pranam bhi Agraj Gyandutt ji ke sri charno me samarpit karta hoon. Mujhhe to Apki SHUBHKAMNAYEN hi chahiye.
Deleteपांडेजनो को परनाम
Deleteआज तो सुबह सुबह बनारस का गंगा घाट घुमा दिया ... सुंदर चित्र
ReplyDeleteपक्षी दाना चुग रहे, मुर्गा है तैयार ।
ReplyDeleteबारी गंगा-लाभ की, जाना सागर पार ।
जाना सागर पार, बनारस घूम सकारे ।
हो जाए उद्धार, मनौती गंग किनारे ।
मानव देश-विदेश, आय के महिमा जाना ।
खाय उड़े परदेश, आत्मा पक्षी दाना ।।
वाह! रविकर कविराज कुंडली गज़ब निकाली
Deleteमुर्गा है तैयार! बतिया लिख दी मन वाली।:)
गंगा के किनारे,
ReplyDeleteशरण पाते सारे..
आपके चित्र सहज ही पहुंचा देते हैं इस बनारसी को बनारस
ReplyDeleteअद्भुत
सुन्दर चित्र , कबूतरों तक बात ठीक थी पर स्वस्थ मुर्गे का चित्र डाल के आपने मित्रों की हिंसक प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन दिया है / जगाने की कोशिश की है !
ReplyDeleteशायद आप सही कह रहे हों.. रविकर जी भी कह रहे हैं..मुर्गा है तैयार! लेकिन नज़र गड़ाने से पहले सावधान होने की जरूरत है। मुर्गा किसी तांत्रिक का लगता है। :)
Deleteसाथ में उसे भी खिला लेंगे :)
Deleteघोर - अघोर सब सत्य/शास्वत है यहाँ पर ...
Deleteक्या बात है!!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 02-07-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-928 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
आभार।
Deleteकबूतरों और मुर्गे साथ
ReplyDeleteसुबह सुबह गंगा घाट ,
साथ में विदेशी साथ
पाण्डे जी , क्या बात !
आज दिन सफल हो गया ... सुबह सुबह का गंगा जी का नज़ारा देख लिया ... दर्शन हो गए ... जय राम जी की ...
ReplyDeleteजय हो गंगा मैया की ...
ReplyDeleteसुन्दर मनोरम दृश्य... सचमुच गंगा मैया का दर्शन ताजगी से भर देता है...
ReplyDeleteगंगाजी का अपना आकर्षण है चाहे फिर वह गढ़ गंगा हो या हर की पौड़ी .बनारस के घाटों का आँखों देखा हाल सजीव कर दिया आपने .बहुत सुन्दर है . बहुत बढ़िया प्रस्तुति .. .कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteram ram bhai
रविवार, 1 जुलाई 2012
कैसे होय भीति में प्रसव गोसाईं ?
डरा सो मरा
http://veerubhai1947.blogspot.com/
बहुत सुन्दर चित्र , आखिर मेरा जन्म स्थान जो है :)
ReplyDeleteकड़कनाथ मुर्गा बहुत जोरदार है।
ReplyDeleteमनोरम चित्र,
ReplyDeleteक्या ये मुर्गा वही तो नहीं जिसका जिक्र काशी के अस्स्सी में है...
खैर मुर्गा महाराज को अमरत्व तो प्राप्त होगा नहीं.
बदिया लगा जी - लगे हाथ हमने भी २ बूँद पानी सर पर छिड़क कर हर हर गंगे बोल दिया ...:)
रुका नहीं जा रहा था भाई :)
ऊ तो गया सिंह के पिता जी थे जिसे राम जी राय खाय चबा गये। ई मसान में मिला है। को जाने पुनर्जन्म हुआ हो। अभहीं फोटू हींचे हैं अता पता लगाना ही पड़ेगा ई आया कहाँ से!:)
Deleteबोल गंगा माई की जै
ReplyDeleteओह पूर्व टीप लगा है गंगा में गोता लगाने गई .... निकाल लाना (स्पैम से) पाण्डेय जी.
ReplyDeleteसुंदर मोहक सैर....
ReplyDeleteजय गंगा मैया की...
sundar aur shandar photo
ReplyDeletebanaras kabhi jana nahi hua...ghanton ko ghoomkar dekhkar bada accha sa lag raha hai....
ReplyDeleteबहुत सूंदर मुर्गा भी एक जरूरी था अंत में ।
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट के बहाने हमने भी आज बनारस का घांट घूम लिया...जय हो मैया की... आभार
ReplyDeleteसुन्दर चित्र
ReplyDeleteबहुत सुन्दर! अच्छा लगा देखकर!
ReplyDeleteचित्र भी गंगा की बदहाली को वयां कर रहे हैं ....हम भी कितने भोले हैं जिसे हम बड़ी श्रद्धा से पूजते हैं ....जिसे हम प्राण रक्षक मानते हैं ....उसके साथ ऐसा खिलवाड़ .....! अब इसे अद्भुत न कहें तो क्या कहें .....??????
ReplyDeleteवैसे तो अभी गंगा नहाये नही मगर यहाँ देख कर ही आनन्द आ गया। धन्यवाद।
ReplyDeleteचित्र देखने में जिदनी साफ लगती हैं गंगा उतनी हैं नहीं।
Deleteगंगा किनारे के विभिन्न चित्र अपनी ही कहानी कहते हैं.
ReplyDelete...पण्डे और मुर्गे का चित्र एक साथ देखकर ताज्जुब नहीं हुआ,पण्डे तो शिकार की तलाश में रहते ही हैं.
ए हो मर्दे! ई काहे नईं खे कहत कि अपने घर के मुर्गा हौ, सैर कराये खातिर लइले हौ। छिपाय के कौनो ज़रूरत नईं खे, हम कुल राज जानतनी। बाकी गंगाघाट के सैर कराये खातिर हमार धन्यवाद ले के जइह। खाली जइब त बहुरिया से ढेर पिटइब, बूझ ल।
ReplyDeleteबेहद सुन्दर चित्र.
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