3.7.12

गंगा चित्र-8 (गंगा घाट के खेल)


पिछली पोस्ट में आपने बनारस के घाटों की तश्वीरें देखी और खूब सराहा। इसके लिए धन्यवाद। आज मैं आपको घाटों के कुछ और रंग दिखाना चाहता हूँ। तश्वीरें खूबसूरत नहीं हैं लेकिन इन तश्वीरों के माध्यम से जो कहना चाहता हूँ वह रोचक है। यहाँ तैराकी, नौकायन के अलावा बहुत से खेल भी खेले जाते हैं। जहाँ कहीं घाट पर चौड़े फर्श मिल गये घाट किनारे के युवक उसे खेल का मैदान बनाने में जरा भी देर नहीं करते। मौसम जाड़े का हो या गर्मी का, कोई फर्क नहीं पड़ता। जाड़े में दिनभर तो गर्मी में सुबह-शाम का समय खेलों के लिए सुहाना होता है। देखिये कुछ तश्वीरें....

(1) क्रिकेटः- घाट किनारे स्थान-स्थान पर क्रिकेट जमकर खेली जाती है। एक सर्वमान्य नीयम है। गेंद पानी में गयी तो आऊट। रबड़ की गेंदों से लगने वाले चौके-छक्के देखते ही बनते हैं।  क्रिकेट के अलावा गुल्ली-डंडा भी खूब खेला जाता है।


(2) बैटमिंटनः- यह गर्मी की एक सुबह है। घाट किनारे कितना खूबसूरत बैटमिंटन कोर्ट बनकर तैयार हो गया है!


(3)स्केटिंगः- यह राजेंद्र प्रसाद घाट की वह चिकनी फर्श है जिसमे बड़े-बड़े सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। गंगा महोत्सव के समय यह मंच खूब जगमग रहता है। कोई भी संगीतकार इस मंच पर अपनी प्रस्तुति देकर खुद को धन्य समझता है। पहली अप्रैल के दिन होने वाला प्रसिद्ध महामूर्ख सम्मेलन भी इसी मंच पर होता है। सामने घाट की सीढ़ियों पर बैठकर दर्शक आनंद लेते हैं। इस मंच को कितनी कुशलता से स्केटिंग का मैदान बना दिया गया है ! गर्मी की एक सुबह और स्केटिंग के जूते पहने हॉकी लिये गेंद को साधता एक युवक। तश्वीर भले सुंदर न हो लेकिन फर्श, युवक और सीढ़ियाँ देखकर आप अंदाज लगा सकते हैं कि यह कितना रोचक है।


(4) तास:-  खाली समय में जमाई जाने वाली 'तास' की अड़ी तो है ही।:)


(4) इन खेलों के अलावा गंगा को पवित्र करने के लिए भी कुछ  खेल चलता रहता है। घाट के फर्श का प्रयोग धोबी अपने कपड़े सुखाने के लिए भी जमकर करते हैं। जाड़े के समय खींची गई एक तश्वीरः-


(5) इस खेल को देखकर बताइये..अक्ल बड़ी या भैंस?



मजे की बात यह कि सभी कहते हैं... गंगा मैया की जय ! 


...............................

26 comments:

  1. हर रंग समेटे गंगा के घाट...!

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  2. हाँ सभी में हमारा स्वर भी है

    जै गंगा मैया की

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  3. बढ़िया चित्र गंगा घाट के ...आभार देवेंदर जी

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  4. सार्वजनिक स्थलों का अपने तरीके से उपयोग/दुरुपयोग करने में हमारा कोई सानी नहीं।

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  5. वाराणसी के जीवन की मस्ती - खूब अच्छी तरह दिखाई दे रही है !

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  6. जै गंगा मैया की। किसी दिन अघोरियों के कारनामें दिखाईए।

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  7. बहुत खूबसूरत तस्वीरें हैं, इन्हें देखकर सचमुच मन यही कहता है "गंगा मैया की जय"

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  8. अद्भुत! अद्भुत!! अद्भुत!!!
    एक संवेदनशील रचनाकार यदि एक उत्कृष्ट फोटोग्राफर भी हो तो ऐसी पोस्ट बनतीhai|

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  9. वहाँ मुरगा था यहाँ भैस । हमारा कोई है करके सुकून होता है।

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  10. घाट घाट के खेल -जीवन ऐसे ही विविधताओं में पसरा है यहाँ !

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  11. विविधताओं और विसंगतियों का जमघट है जिंदगी ..
    बहुत ख़ूबसूरती से इन चित्रों को सहेजा है

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  12. अकल रही पगुराय, निगल के काला पैसा ।

    हड़बड़ करके खाय, शुरू में काला भैंसा ।

    हल न पाय चलाय, फील्ड में हल हो जाता।

    युवा आज का आय, फील्ड में रंग जमाता।

    गंगा तट पर खुब जमाते, गुल्ली-डंडा लाय के ।

    मोबाइल के गेम भूलता, जाता मन बहलाय के

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  13. यही तो खासियत है .. पुरातन के साथ साथ नए खेल का आनंद भी है गंगा किनारे ...

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  14. वाह ... बेहतरीन

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  15. आप तो पक्के फोटूग्रफर हो गए हैं जनाब....बढ़िया लगे।

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  16. वाह !
    लेकिन बस इतने से खेल ! दिल नहीं भरा . कुछ और बताइये ना . :)

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    1. बहुत कुछ है। अभी तो जितना खींच पा रहा हूँ..

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  17. सारे के सारे अनोखे, और भी निकालिये..

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  18. ये तस्वीरें फिर से इस तथ्य को दर्शा गयीं...अच्छे खेल के मैदानों की कितनी कमी है..हमारे देश में.
    मुंबई में तो जगह ही नहीं हैं....जिन शहरों में खाली जगह है...वहाँ भी खेलने के लिए मैदान तैयार नहीं किए जाते.
    यही वजह थी कि एथलीट मधु सप्रे ने 'विश्व सुंदरी प्रतियोगिता' के फाइनल राउंड में यह पूछे जाने पर कि " अगर अपने देश की प्रधानमन्त्री बना दी गयीं तो क्या बदलाव लायेंगी??"
    और उन्होंने जबाब दिया था,"पूरे देश में अच्छे खेल के मैदान बनवा दूंगी" वो खिताब उन्हें नहीं मिला...क्यूंकि भूख-बेरोजगारी हटाने जैसे रटे रटाये उत्तर की अपेक्षा की जाती है.
    पर उनकी चिंता हमारे देश की इस बड़ी कमी की ओर तो इशारा कर गयी. जबकि यह करीब बीस बरस पहले की बात है...आज भी कुछ नहीं बदला.

    चित्र अच्छे हैं...बहुत ही जीवंत...पर दुखती रग छेड़ गए.

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  19. सही व सार्थक कमेंट।

    खेल के मैदान का अभाव बहुत खलता है। शहरों का असंतुलित विकास भी सार्वजनिक स्थलों को नुकसान पहुँचाता है। घाट किनारे के युवक कहाँ जांय खेलने के लिए? धोबी कहाँ जांय कपड़े धोने के लिए? भैंस नहाने के लिए किसी बाथरूम में तो जायेगी नहीं! तालाबों को पाटकर उनमें मकान खड़े किये जा रहे हैं। नई कालोनियों में न खेल के मैदान हैं न घूमने के लिए बाग।

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  20. घाटों के आस-पास की दुनिया भी कुछ वैसी ही है जो हमारे इर्द-गिर्द होती है.ये चित्र यही बताते हैं कि नदी और घाट का महत्त्व केवल आस्था की वजह से नहीं है,वे हमारे दैनिक जीवन में भी घुले-मिले हैं !

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  21. बहुत सुन्दर .. वाह...

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  22. लगता है आप बहुत कुछ उजागर करना चाहते हैं,मगर कर नहीं पा रहे.गंगा को पवित्र करने वाले खेलों की तस्वीरें देख पायेंगें या नहीं ,पता नहीं,मगर जो भी खेल उजागर हुये हैं,वो बी कम नहीं .

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