10.7.12

सावन


गड़गड़ कड़कड़, घन उमड़ घुमड़
टिप् टिप् टिप् टिप् टिप् टिपिर टिपिर
धरती पर बूंदें गिरती हैं
झर झर झर झर, झर झरर झरर।

मन फर फर फर फर उड़ता है
तन रूक रूक छुक छुक चलता है
सावन की रिम झिम बारिश में
दिल धक धक धक धक करता है।

यादों की खिड़की खुलती है
इक सुंदर मैना दिखती है
पांखें फैलाती झटक मटक
तोते से हंसकर मिलती है।

वो लंगड़े आमों की बगिया
वो मीठे जामुन के झालर
वो पेंग बढ़ा नभ को छूना
वो चोली को छूते घाघर।

पर इंद्र धनुष टिकता कब है?
कुछ पल में गुम हो जाता है
मोती वाले पल मिलते हैं
चलना मुश्किल हो जाता है।

कुछ कीचड़ कीचड़ रूकता है
फिर एक कमल खिल जाता है
कुछ भौंरे गुन गुन करते हैं
दिन तितली सा उड़ जाता है।

……………………

इस गीत को अर्चना जी (मेरे मन की) के मधुर स्वरों में नीचे सुन सकते हैंः-



नोटः चित्र मनोज जी के ब्लॉग से उड़ाया हूँ।

30 comments:

  1. बाबा रे आज तो लग रहा है जैसे स्कूल के कोर्स की किताब में किसी महान कवि की कविता पढ़ ली.

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  2. प्रकृति के प्रत्येक रंग को समेटे आपकी यह कविता निश्चित रूप से आजकल के मौसम में बहुत रोमांचकारी है ...!

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  3. शिखा जी सत्य कह रही हैं।

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  4. कविता के शिल्प से निराला के बादल राग की याद आ गई -- !
    इस कविता की भाषा की लहरों में जीवन की हलचल हम साफ देख सकते हैं।

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  5. बहुत खूब! मैना का तोते से हंसकर मिलना और चोली का घाघर से मिलना बहुत सुन्दर है।

    बहुत अच्छा लगा इसे पढ़कर!

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  6. बहुत सुंदर रचना .... सावन का दृश्य नज़रों के सामने आ गया ॥

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  7. यहाँ तो लगा कि कविता तो कविता,सावन बोलने लगा...!

    ..नए अंदाज़ में प्राकृत-रचना !

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  8. पूरे सावन को हृदय के सत्य से भिगो कर शब्द दे दिये .....
    सुंदर भाव ...सुंदर शब्द ...
    बहुत सुंदर रचना ...!!
    शुभकामनायें...!!

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  9. ग्रीष्म के सन्नाटे को टिपिर टिपिर ने तोड़ दिया..

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  10. रिमझिम- गुनगुन झूला- पींगे तोता- मैना...
    पर इन्द्रधनुष और तितली सा उड़ जाता है पल !
    सुन्दर कविता !

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  11. बरखा का सजीव चित्रण आपके शब्‍दों से हो रहा है ... अनुपम प्रस्‍तुति।

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  12. म्यूज़िकल रचना.....

    सुन्दर!!!

    अनु

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  13. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 12 -07-2012 को यहाँ भी है

    .... आज की नयी पुरानी हलचल में .... रात बरसता रहा चाँद बूंद बूंद .

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  14. जैसे बारिश का एक विशाल केनवास खड़ा कर दिया आपने आँखों के सामने ... सजीव चित्रण बरखा का ...

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  15. सचमुच ऐसे दिन तितली से उड़ जाते हैं..
    मनभावन कविता...

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  16. सुन्दर ऐसा लगा आप गा रहे हैं :-)

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  17. पर इंद्र-धनुष टिकता कब है -
    सुन्दर प्रस्तुति |
    बधाई स्वीकारें ||

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  18. अब बारिस न भी आए तो हम तो आपकी कविता की मधुर ध्वनियाँ कल्पित कर आनंद विभोर हो लेंगे . :)

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  19. सुमधुर,सुन्दर गीत

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  20. बेहद खूबसूरत कविता।

    सादर

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  21. waah machlti ...gumadh gumadh barsati rachna ...

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  22. sundar si kavita hai....baarish aajkal ho rahi hai to ye kavita padhne mein aur bhi maza aa raha hai :)

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  23. जब से गीत मिला है बस गा ही रही हूँ..टिप टिप टिप टिप टिपिर टिपिर....

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  24. बहुत सुन्दर वर्णन किया है आपने |
    आशा

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  25. सुन्दर रचना

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  26. वाह !जीते रहो और यैसा ही मस्त गीत लिखा करो.शब्दों का अछ्छा सयोजन हुआ है.अर्चनाजी का गायन भी प्यारा और बहुत स्पष्ट है.साथ में आर्केष्ट्रा भी होता तो बहुत मजा आता.

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  27. नैसर्गिक शब्दों का सुन्दर प्रयोग और अर्चना चाव जी के सुन्दर स्वर के लिए हार्दिक बधाई

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  28. खुबसूरत कविता ,खुबसूरत आवाज

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